सुप्रीम कोर्ट का फैसला आने से पहले ही सीबीआई डायरेक्टर आलोक वर्मा (फोर्स लीव पर) के सीनियर और जूनियर वकील आपस में उलझ गए, जिसके बाद जूनियर वकील गोपाल शंकरनारायणन ने यह केस छोड़ दिया। उन्होंने अंग्रेजी अखबार टीओआई से कहा, “मैं साफ करना चाहता हूं कि
मैंने सोमवार शाम इस मामले से अपने हाथ पीछे खींच लिए थे। मैं इसी वजह से मंगलवार को सुनवाई के वक्त नहीं था। पर मेरे और वर्मा के मैत्रीपूर्ण रिश्ते जारी रहेंगे। यह महज पेशेवर जुड़ाव था, जो कि अब खत्म हो गया है।”
मंगलवार को सुनवाई में जब चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया (सीजेआई) रंजन गोगोई ने मीडिया में केस से संबंधित रिपोर्ट लीक होने पर नाराजगी जताई थी, तब वर्मा का पक्ष रखने के लिए केवल वरिष्ठ वकील फली नरीमन ही वहां मौजूद थे। उन्होंने 19 नवंबर को मामले में और मोहलत मांगने की बात पर वर्मा के बयान दर्ज कराने के लिए शंकरनारायणन पर सवालिया निशान लगाए थे। उन्होंने इसके साथ ही उसे अनाधिकृत बताया था।
शंकरनारायणन ने इसे लेकर कहा था उनके व वरिष्ठ वकील के दफ्तर के बीच में संवाद की कमी रही, जिसके कारण ऐसा हुआ। वर्मा के संपर्क में सीधे तौर पर वरिष्ठ वकील का दफ्तर था, जबकि सोमवार सुबह वर्मा का जवाब जमा करने के बाद उन्होंने इस केस को अलविदा कह दिया था।
मंगलवार को जूनियर वकील ने बेंच को यह साफ किया था कि वर्मा की ऑन रिकॉर्ड वकील पूजा धर ने बयान के अधिक मोहलत मांगने की बात को अधिकृत किया था। नरीमन को इस बारे में बताया गया था, जबकि फली ने उसे अनाधिकृत करार देते हुए कहा कि
उन्हें शंकरनारायणन की तरफ से कोई संदेशा नहीं आया। नरीमन ने उस दौरान यह कहा था कि अगर केस वरिष्ठ वकील के पास पहुंच, तो फिर उसमें उसके संज्ञान के बगैर कुछ भी नहीं होना चाहिए,