सपा में अब ‘चुगलखोरों’ और ‘चापलूसों’ का राज है: शिवपाल सिंह यादव

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लखनऊ। समाजवादी पार्टी से अलग होकर समाजवादी सेक्युलर मोर्चा का गठन करने वाले शिवपाल सिंह यादव इन दिनों अपनी पार्टी को मजबूत करने में जुटे हुए हैं।

 

परिवार के विवाद पर बोलने में अब उन्हें कोई संकोच नहीं, हालांकि वह यह भी कहते हैैं कि यह सब अतीत की बातें हैं।
इस सवाल पर कि उनकी मजबूती भाजपा को फायदा पहुंचाएगी, शिवपाल कहते हैैं कि किसको फायदा हो रहा है, किसको नुकसान, यह मेरा विषय नहीं।
फिर इसकी चिंता हम क्यों करें। संवाददाता ने उनसे बातचीत की-
बागी तेवर अपनाने में आपने काफी समय लिया। क्या अपनों से दूरियां बनाने में कोई संकोच आड़े आ रहा था?
मैैं दिल से चाहता था परिवार में एकता रहे, इसलिए इंतजार करता रहा लेकिन, अपमान जब बर्दाश्त से बाहर हो गया तो यह फैसला लेना पड़ा। मैैं समाजवादी पार्टी का प्रदेश अध्यक्ष रह चुका हूं लेकिन, मुझे किसी बैठक में बुलाया तक नहीं जाता था।
अखिलेश आप पर आरोप लगाते रहे हैैं कि आप भाजपा की बी टीम हैैं?
हम समाजवादी हैैं। भारतीय जनता पार्टी से हम हमेशा संघर्ष करते रहे हैैं। मैैं तो समाजवादी पार्टी को ही मजबूत करना चाहता था। तब क्यों नहीं मेरी मदद ली गई।
मैैं तो अखिलेश यादव को ही मुख्यमंत्री बनाना चाहता था। जनेश्वर मिश्र पार्क में हुई रैली में मैैंने स्पष्ट कहा था कि अखिलेश यादव के नाम का प्रस्ताव मैैं खुद रखूंगा।
फिर भी आपके मजबूत होने से भाजपा को फायदा तो होगा?
– किसका फायदा होगा और किसका नुकसान, अब यह मेरा विषय नहीं। इसकी चिंता हम क्यों करें। हम कदम आगे बढ़ा चुके हैैं और जिसे जो सोचना हो, हमारे बारे में सोचे।
लेकिन भाजपा सरकार तो आप पर बहुत मेहरबानी दिखा रही है?
– क्या मेहरबानी दिखा रही है? मुझे तो ऐसा कभी नहीं लगा। रही बात बंगले की तो क्या मैैं अकेला हूं, जिसे बंगला मिला है। खुद अखिलेश यादव ने ऐसे लोगों को बंगले दिए थे, जो विधायक भी नहीं थे।
योगीजी से भी आप मिल चुके हैैं?
इसमें गलत क्या है। मैैं विधायक हूं और वह मुख्यमंत्री हैैं। लोगों की समस्याओं को लेकर उनसे मिला था और बाहर आकर जब पत्रकारों से बात की थी तो सरकार के कामकाज की कड़ी आलोचना भी की थी।
सपा के बहुत सारे लोग आपसे जुड़ रहे हैैं। कितने विधायक आपके साथ आ सकते हैैं?
– विधायकों को अभी नहीं छेडऩे जा रहा हूं। हां, बड़ी संख्या में पूर्व विधायक आ रहे हैैं। समाजवादी पार्टी ही नहीं, सभी दलों के असंतुष्टों के लिए दरवाजे हमने खोल रखे हैैं। चुनाव से पहले हम ऐसी ताकत होंगे, जिसकी उपेक्षा करना संभव न होगा।
यह ताकत अकेले हासिल करेंगे?
– मैैं अकेला कहां हूं। अभी हाल ही में चालीस राजनीतिक दलों के सम्मेलन में मुझे बुलाया गया था। और भी दल हमारे साथ आएंगे। समान विचारधारा वाले जितने लोग हैैं, सभी के साथ मिलकर चुनावी लड़ाई लड़ेंगे।
विपक्षी दलों में महागठबंधन की कवायद चल रही है। क्या आपकी पार्टी उसमें शामिल होगी?
– ऐसा कोई प्रस्ताव आता है तो पार्टी में रखेंगे। मिलकर निर्णय किया जाएगा? पहले भी कह चुके हैैं कि समान विचारधारा वाले दलों के साथ जाने में कोई एतराज नहीं है।
सपा और बसपा में यदि किसी एक से गठबंधन करने का विकल्प हो, तो किसके साथ जाना चाहेंगे?
– जब ऐसी स्थिति आएगी तो विचार किया जाएगा। फिलहाल, सपा से तो उम्मीद नजर नहीं आती।
आपकी पार्टी का नाम प्रगतिशील समाजवादी पार्टी है। समाजवाद के साथ पहली बार प्रगतिशील का प्रयोग दिखाई पड़ रहा है। इसके पीछे कोई खास संदेश देने की मंशा है?
– ऐसा कुछ नहीं है। प्रगतिशील लगाने से नाम आसानी से मिल गया। समाजवाद तो पार्टी के नाम में रखना ही था ताकि लोगों में सीधा संदेश जाए कि हम लोहिया और गांधी के सिद्धांतों को मानने वाले लोग हैैं।
नेताजी न आपका मोह छोड़ पा रहे हैैं और न अखिलेश का। क्या अभी सपा के साथ आने की कुछ गुंजायश है?
– अब नहीं। अपने स्तर पर हमने काफी कोशिश की थी लेकिन, हर बार मेरा अपमान किया गया। पदाधिकारियों तक पर यह पाबंदी लगा दी थी कि कोई मुझसे न मिले। हां, जब वोट की जरूरत थी तब जरूर निमंत्रण दिया।
फोन करके सूचना दी। रही बात नेताजी की तो मैैंने उनकी अनुमति से ही पार्टी खड़ी की है। नेताजी जानते हैैं कौन सही है।
आपकी पार्टी के लोग कहते हैैं कि सपा बिगड़ैल नौजवानों की पार्टी रह गई है?
– इसी वजह से ही यह नौबत आई। जितने नए लोग थे, उन्होंने पैसा कमाया, बंगलों पर कब्जा कराया। अब सपा में चुगलखोरों और चापलूसों का राज है। अपने नेता को हमेशा सही जानकारी देनी चाहिए लेकिन, सपा में अब किसी में यह साहस नहीं।
पार्टी का गठन कब तक पूरा कर लेंगे?
– दिसंबर में राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाने का इरादा है। सभी जिलों में अध्यक्ष घोषित कर दिए हैैं।
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जल्द ही एक सम्मेलन बुलाकर राष्ट्रीय और प्रांतीय कार्यकारिणी घोषित कर दी जाएगी।

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