योगी के मंत्रिमंडल में होगा फेरबदल!
लखनऊ,। योगी सरकार के मंत्रिमंडल में विस्तार की संभावना बढ़ने लगी है। पिछड़ों और दलितों के सम्मेलन के बाद या इस बीच ही कुछ नये मंत्रियों को शपथ दिलाई जा सकती है और
कसौटी पर खरे नहीं उतरने वाले मंत्रियों की छुट्टी हो सकती है। ऐसे मंत्रियों को विभागों में बदलाव भी किया जा सकता है।
हालांकि राजनीतिकों का एक धड़ा इस संभावना को सिरे से नकारता नजर आता है। उसका मानना है कि चुनावी साल में मंत्रिमंडल में फेरबदल जैसा जोखिम सरकार नहीं उठाना चाहेगी।
योगी मंत्रिमंडल में फेरबदल की कवायद लंबे समय से चल रही है। पिछले वर्ष भाजपा संगठन ने मंत्रिमंडल विस्तार पर यह कहकर रोक लगा दी कि अभी सरकार के एक वर्ष पूरे नहीं हुए हैं।
हाल में विधानसभा सत्र के पहले भी फेरबदल की सुगबुगाहट हुई लेकिन, प्रदेश कार्यसमिति और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के निधन के चलते बात नहीं बन पाई।
अब लोकसभा चुनाव की चुनौती सामने है। इन दिनों भाजपा का पिछड़ों और दलितों का सम्मेलन शुरू हो गया है। उप मुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य की अगुवाई में सभी पिछड़ी उप जातियों का सम्मेलन पिछले माह से ही चल रहा है।
प्रमुख सम्मेलनों में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और भाजपा प्रदेश अध्यक्ष डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय भी शामिल हो रहे हैं।
वोट के लिहाज से प्रदेश में प्रभाव रखने वाली कुछ जातियों की मांगें सरकार पूरी कर रही है जबकि कुछ का सियासी रुतबा बढ़ाने पर भी विचार हो रहा है।
योगी आदित्यनाथ, केशव प्रसाद मौर्य और डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय के अलावा संगठन महामंत्री सुनील बंसल की सहमति से ही यह प्रस्ताव बनना है और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह की मुहर लगने के बाद ही मंत्रिमंडल का विस्तार होना है। सरकार में गुर्जर समेत कुछ पिछड़ी जातियों के प्रतिनिधित्व पर जोर है।
स्वतंत्र प्रभार के कुछ मंत्रियों को कैबिनेट की जिम्मेदारी दी जा सकती है। एससी-एसटी एक्ट को लेकर सवर्णों में आये उबाल को देखते हुए कुछ क्षत्रिय-ब्राह्मण नेताओं को भी मौका मिल सकता है।
संभव है कि स्वतंत्र प्रभार के राज्यमंत्रियों को कैबिनेट मंत्री बना दिया जाए या फिर कुछ समय पहले विधान परिषद के लिए चुने गये सदस्यों को मौका मिल जाए।
कुछ पुराने चेहरों की जगह पर अब नए चेहरों को लाने की जरूरत
अवध, कानपुर, गोरखपुर और वेस्ट यूपी के बीच क्षेत्रीय संतुलन
बिखरे विभागों को केंद्र सरकार के विभागों की तरह समन्वयन
यूपी के 95 विखरे विभागों को 57 विभागों में समेटने का प्रस्ताव
उपचुनाव के परिणामों को देखते संतुलन और समन्वय की जरूरत
लोकसभा चुनाव 2019 के पहले ही जातीय समीकरण को ध्यान
विभागों में समेटने का प्रस्ताव
नीति आयोग ने उत्तर प्रदेश के बिखरे विभागों को केंद्र सरकार के विभागों की तरह समन्वित करने की अपेक्षा की है। 95 विभागों को 57 विभागों में समेटने का प्रस्ताव है।
इस सिलसिले में मुख्यमंत्री कई बार अधिकारियों के साथ बैठककर सलाह मशविरा कर चुके हैं। ऐसी बैठकों में प्रस्ताव के अवलोकन की हिदायतों के बाद मंत्रियों से लेकर सत्ता के गलियारे में मंत्रिमंडल में फेरबदल के लिए विभागों के पुनर्गठन की चर्चा तेज है।
यदि विभागों का पुनर्गठन होता है तो मंत्रिमंडल के आकार में भी बदलाव होगा और उसी के अनुरूप मंत्रयों का समायोजन होगा।
फेरबदल की संभावना के चलते मंत्रियों को भी अपने विभाग बदले जाने और छिन जाने का खतरा सताने लगा है। सवा साल की सरकार में कुछ मंत्रियों ने बेहतर रिजल्ट दिए तो
कई मंत्री जनता, विधायकों और कार्यकर्ताओं के साथ ही मुख्यमंत्री और भाजपा संगठन की कसौटी पर भी खरा नहीं उतर सके। अब ऐसे लोगों पर खतरा मंडरा रहा है।
हालांकि तजुर्बेकार कहते हैं कि सामने 2019 का लोकसभा चुनाव होने की वजह से मंत्रियों के हटाने का जोखिम सरकार नहीं ले सकती है।