भारत : युवा देश का बुजुर्ग संसद

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युवाओं का अर्थ है स्वयं में दृढ़ विश्वास रखना, अपने आशावादी निश्चय तथा संकल्प का अभ्यास करना और संस्कृति के सुंदर कार्य में अच्छे इरादों की इच्छा रखना, हाथ बाँध,आँख मूंद किसी भी समय में अच्छे समय की परिकल्पना करना बेवकूफी भरी कल्पना ही कही जाएगी, किसी भी गलत का विरोध करने पर ही परिवर्तन की उम्मीद की जाती है,
सर्व विदित है कि देश का युवा ही समाज में नवनिर्माण,नवचेतना, का संचार देश का प्रतिनिधित्व कर समाजिक, वैचारिक क्रांति करता रहा है, परिवर्तन का नाम ही युवा है इसलिए भारत में परिवर्तन की जो अंगराई ली है उसको पूरा करने में भारत के नौजवानों को अपनी भूमिका तलाशनी चाहिए,बदलाव एक निर्यात है जिसे रोका नहीं जा सकता है हर समय हर परिस्थिति में बदलाव होता रहता है,
अब रही बात कि बदलाव का स्वरूप कैसा है उसकी संरचना उसकी सार्थकता किस प्रकार से तय की जा रही है लोगों में कुछ करने, कुछ पाने की क्षमता तो उसके प्रति दृढ़ संकल्प प्रतियोगिता का दिखना चाहिए, मगर किसके लिए केवल व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ति के लिए या फिर सामूहिक हित के लिए, भारत एक प्रजातांत्रिक देश है, आज भारत में दूसरे देशों से सबसे ज्यादा युवा बसता है,युवा देश को युवा सोच और युवा सांसदों की जरूरत है.
युवा एक ऐसा वर्ग है जो शारीरिक व मानसिक रूप से सबसे ज्यादा ताकतवर होता है, जो देश और अपने परिवार के विकास के लिए हर संभव प्रयत्न करते हैं, आज भारत का युवा वर्ग ऊंचाई को छूना चाहता है, भारत का युवा वर्ग तैयार है एक नए युवा क्रांति के लिए लेकिन अफसोस की बात है कि इस ऊंचाई को नया रूप देने के लिए आज का राजनीतिक माहौल एक राह का पत्थर बना हुआ है,
भारत की राजनीति में बुजुर्ग लोगों का ही बोलबाला है और चंद गिने चुने युवा ही राजनीति में हैं,वो भी किसी राजनीति परिवार की ही उपज है, चांदी की चम्मच से खाने बाले इन युवा नेता से युवाओ की बिकास की कल्पना करना भी एक बेईमानी ही होगी, इन्हे किया पता की एक छोटी सी कमरे में रहकर रूखी सुखी खाकर जीवन का आधा हिस्सा परिवारहित,
समाजहित देश हित के लिए कितने समस्याओ से सामना करना पड़ता है, वर्तमान राजनीति में देश प्रेम की भावना की जगह परिवारवाद जातिवाद और संप्रदायवाद ने ली है आज लोकतंत्र लोकतांत्रिक राजतंत्र में बदल रहा है और राजनीति परिवार में पैदा होने वाले राजाओं पर लोकतंत्र का मुहर लग रहा है,आज देश की सभी राजनीतिक पार्टियां किसी ने किसी परिवार या किसी व्यक्ति के जेब में है,इसमें युवाओ की एंट्री का सबाल ही नहीं उठता हैं, सिर्फ सभी जगह युवा की चर्चा ही होती हैं,
इसी चर्चे से हमारा ध्यान एक दिन टीवी पर संसद की कार्यवाही के दौरान टेबल थपथपाते हाथों पर गई तो देखा कि देश की संसद में युवा सफेद चावलों के बीच कंकर के समान नजर आ रहे हैं मतलब युवा देश की संसद से युवा ही गायब है, ये युवा नजर आते हैं किसी राजनीतिक पार्टी के लिए टारगेट ओरिन्टेड बनकर हिंसा भड़काने में हड़ताल करने में ,
प्रदर्शन करने में रैली को सफल बनाने में युवा भीड़ का उपयोग होता हैं जब युवा को पार्टी में पद और टिकट देने की बात आती है इन नेताओं को सिर्फ अपने परिवार में ही युवा नजर आते हैं या नेता जब जिंदगी की ढलान पर होता है बुजुर्ग होने लगता है या पार्टी में किसी भी तरह का कोई कार्यवाही इनके ऊपर हो जाती है पार्टी में तो वह अपनी राजनीतिक भागीदारी किसी कर्मठ और समर्पित युवा कार्यकर्ता के हाथों में ना देकर अपने परिवार के किसी युवा को देते हैं ,
जैसे इनकी बपौती सम्पति हो, अब युवाओं को ट्रोल और भीड़ बनने के बजाय राजनीतिक का विकल्प बनना होगा हम कुल मत का 65% मत युवा के द्वारा ही दिया जाता है और हमें बतानी होगी किसी भी राजनीतिक पार्टी को की जितनी हमारी हिस्सेदारी है लोकतंत्र में उतनी ही हमें भागीदारी मिलनी चाहिए, लोकतंत्र में राजा का ही बेटा राजा बने ये जरुरी नहीं हैं .

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