राजनीति किसके लिए ?
वर्तमान समय में बिहार सहित पूरे देश की राजनीति व्यवस्था को बदलने की तरप और बेचैनी सभी में है विशेषकर भटके हुए सहमे हुए राजनीति के शिकार युवा वर्ग जो बिहार सहित देश में नई क्रांति लाने के लिए तत्पर और बेचैन है इतिहास इस बात का गवाह है कि राज्य और राष्ट्र में नवनिर्माण नवचेतना का संचार देश का प्रतिनिधित्व कर सामाजिक और राजनीतिक बदलाव युवा ही लाए हैं क्योंकि परिवर्तन का नाम ही युवा है
और यह भी सत्य है कि बदलाव एक निर्यात है जिसे रोका नहीं जा सकता है अब रही बात कि बदलाव का स्वरूप कैसा हो इस बदलाव का संरचना और सार्थकता किस प्रकार से तय की जा रही है क्या बदलाव लाने के लिए यहां के हवा पानी और पौधे को बदलने की जरूरत है और बदलाव किसके लिए किया जाए अपने व्यक्तिगत स्वार्थ की पूर्ति के लिए या फिर सामूहिक हीत और राज और राष्ट्रहित के लिए प्रश्न उठता है कि कैसा बदलाव इस बदलाव का नायक कौन होगा दुनिया के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की वर्तमान राजनीति व्यवस्था में बदलाव की जरूरत है
जो अब मूल्य हीन और जर्जर हो चुकी है और राज और राष्ट्र के विकास में राजनीति का अहम योगदान है हमारी जमीन सिर्फ आजाद हुई है परंतु हमारा जमीर तो आज भी गिरवी इन परिवारवाद, जातिवाद, संप्रदायवाद, से परिपूर्ण राजनीति पार्टी के पास है लोकतंत्र की कुर्सी का सम्मान करना हम सभी का राष्ट्र धर्म है क्योंकि इस कुर्सी पर मानव नहीं चरित्र बैठता है लेकिन हमारे लोकतंत्र की त्रासदी ही कही जाये कि इस पर स्वार्थी, लोभी, महत्वाकांक्षा बेईमानी, भ्रष्टाचारी, ही आकर इस कुर्सी पर बैठी रही है
लोकतंत्र की टूटती सांसों को जीत की उम्मीद देना जरूरी है और यह भी सत्य है कि इसके नायक को किसी कारखाने में पैदा करने की चीज नहीं है इस समाज में ही खोजना होता है लोकतंत्र की मजबूती एवं राजनीतिक शुद्धिकरण की दिशा में जब-जब प्रयास हुआ है समाज का पूरा समर्थन भी मिला है अच्छी बात और सौभाग्य की बात है कि भारत जैसे देश में 50 से 60% हिस्सा भारतीय युवा हैं जो सांसों में नई जान डाल सकते हैं क्योंकि इस वर्ग में सबसे ज्यादा ऊर्जा और संभावनाएं होती है युवा लोकतंत्र से लेकर अर्थ तंत्र की रीढ़ होती है युवाओं को सोचना होगा कि ट्रोल और भीड़ बनने के बजाय राजनीतिक विकल्प बनना होगा और निर्माण से जुड़ना होगा
राजनीति को युग धर्म मानते हुए जीवन पद्धति का हिस्सा बनाना होगा इन्हें अपने कंधों पर राष्ट्र, राज्य, का संचालन की जिम्मेदारी लेनी होगी परंतु राजनीति में प्रवेश एक चुनौती से कम नहीं है वर्तमान समय में काबिलियत और अच्छे चरित्र वाले युवा बहुत हैं पर परिवारवाद जातिवाद भ्रष्टाचार व कालाधन इनहे आगे नहीं आने देता है लोकतंत्र होने के बावजूद राजनीति में युवाओं का प्रवेश की सबसे बड़ी समस्या एंट्री पॉइंट की है, जर्जर हो चुकी भारतीय राजनीतिक निचले स्तर तक गिर चुकी नेताओं की संवाद शैली भ्रष्टाचार के आकंठ में डूबी राजनीति पार्टी इन युवाओं को सिर्फ टारगेट ओरिएंटेड बनाकर हिंसा भड़काने, हड़ताल करने में, प्रदर्शन रैली में भीड़ का उपयोग करते हैं
जातिवाद की लड़ाई हो या धर्म संप्रदाय की लड़ाई सभी में युवाओं का प्रयोग करते हैं बिल्कुल सत्य है कि इस गंदी राजनीति को शुद्ध भी युवाओं के द्वारा ही संभव है वर्तमान समय की राजनीति परिभाषा बिल्कुल वास्तविक परिभाषा से भिन्न है राजनीति में युवाओं की भागीदारी सहित शुद्ध राजनीति करने की विचार जब मेरे मन में आई तो वर्तमान राजनीति में प्रवेश की योग्यता मुझे अंदर से झकझोर दिया इसकी योग्यता के रूप में कुछ जरूरी चीज मैंने देखा कि कैसे जनता को ठगना है कैसे झांसा देना है कैसे जनता से वादा खिलाफी और दगाबाजी करनी है
या फिर किस प्रकार से जनता को विभाजित कर अलग अलग समुदाय जाति संप्रदाय में विभक्त करके वोट की राजनीति करनी है उपर्युक्त योग्यता से मेरा मन भी राजनीति से दूर हो रहा था क्योंकि मैंने तो पढ़ा था कि राजनीति सामाजिक समस्याओं को हल करने की कला और विज्ञान है जो वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था परिभाषा से बिल्कुल भिन्न है कुल मिलाकर मेरा मानना है जितना नुकसान इन राजनीतिक पार्टियों से नहीं हो रही उससे ज्यादा नुकसान पढ़े लिखे और प्रतिभाशाली युवाओं पर चुप रहने से भी हो रहा है
युवाओं को खाओ पियो मौज करो कि संस्कृति से निकलकर देश की सत्ता व्यवस्था में सक्रिय भागीदारी दिखानी होगी युवा को लोकतंत्र में अपनी भागीदारी सुनिश्चित करनी होगी पुणः मैंने सोचा कि राजनीतिक किसके लिए है क्या मैं इस में सक्षम नहीं हूं क्योंकि लोकतंत्र में परिवारवाद को देखते हुए मेरा नजर अपने परिवार पर गया फिर मुझे लगा कि नहीं मैं नेता बनने लायक नहीं हूं क्योंकि ना तो मेरे पिताजी या अन्य कोई सदस्य किसी राजनीतिक पार्टी के सदस्य हैं वास्तविकता मुझे पता था कि लोकतांत्रिक देश में परिवार की कल्पना नहीं की जा सकती है वर्तमान समय में देश की राजनीति में जो माहौल बना हुआ है
वह लोकतंत्र में राजशाही व्यवस्था को जन्म देने वाला गुढ़ अर्थ बता रहा है वर्तमान लोकतंत्र में सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय राजनीति पार्टी में परिवारवाद सोच हावी हो गया है आज देश की राजनीतिक स्वार्थ हितों के लिए इतनी बेचैन हो गई है कि समाज और देश के हितों का परित्याग कर चुके राजनीति पार्टी राजतंत्र की ओर जा रही है राजनीति में बढ़ते परिवारवाद और राजशाही की वजह से ही अयोग्य व्यक्ति सत्ता पर बैठ जाते हैं
वर्तमान समय में जैसा कि लगता है नेता बनने के लिए नेता परिवार में ही जन्म लेना होता होगा क्या राजनीति पार्टी एक प्राइवेट कंपनी है क्या जिसका बागडोर किसी विशेष लोग के पास ही रहता है राजतंत्र में परिवार तंत्र चलना स्वभाविक है लेकिन लोकतंत्र में परिवार तंत्र का चलन स्वभाविक नहीं माना जाता है लोकतंत्र में जरूरी नहीं होता है कि राजा का बेटा ही राजा बने इस तंत्र में तो योग्यता क्षमता पर लोकतंत्र का सेवक का चयन होना चाहिए आज लोकतंत्र लोकतांत्रिक राजतंत्र में बदल गया है और राजनीति परिवार में पैदा होने वाले राजाओं पर राजाओं के बेटा पर लोकतंत्र का मुहर लग गया है
लोकतंत्र में अपनी राजनीतिक पार्टी का पैतृक संपत्ति के रूप में देखते हैं फिर मैंने अपने विचार में अपने मन को एक साहस दिया फिर मेरे मन में सवाल आया कि राजनीतिक किसके लिए युवा लोकतंत्र के लिए वृद्ध तो नहीं बनना होगा अर्थात सिर्फ वृद्ध लोगों के लिए ही तो यह लोकतंत्र नहीं बना है पर भारत में 50 से 60% युवा है अच्छा हां युवा देश में बुजुर्ग सांसद थोड़ा अटपटा जरूर लगता है
परंतु जब हमारे ध्यान एक टीवी पर संसद की कार्यवाही के दौरान टेबल थपथपाते हाथों पर गई तो देखें कि देश की संसद में युवा सफेद चावल के बीच कंकर के समान नजर आ रहे थे तब हमको लगा कि सच में युवा देश की संसद से युवा ही गायब है अर्थात बिल्कुल सत्य दिखा कि सच में युवा देश का नेतृत्व इन वृद्ध लोग के हाथ में है यह सभी प्रश्न से हमें अंदर से काफी झकझोर दिया है कृपया कर इन प्रश्नों का आप लोगों के पास कोई जवाब हो तो मुझे देने का कष्ट करें और इस परेशानी से मुझे मुक्त करें
आशुतोष कुमार( राष्ट्रीय जजमेंट संवाददाता )पटना की रिपोर्ट ✍️