तिलमिलाते पेट और लड़खड़ाते कदम, कैसे भी घर पहुंच जाएं, अब न जाएंगे परदेश।

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कासगंज: ये कहना उन तमाम प्रवासी श्रमिकों/कामगारों का है जो दो वक्त रोटी कमाने अपने घर से सैकड़ों किलोमीटर दूर परदेश को गए। कोरोना आपदा के चलते अब इनको बापस अपने घर लौटना पड़ रहा है।

Majdur

कोई पैदल तो कोई साइकिल से, इन्हें सैकड़ों किलोमीटर बस यूं ही चलते जाना है, न रहना है, न खाना है, इन्हें हर हाल में अपने घर जाना है।
पलायन का दर्द ऐसा कि इन तिलमिलाते पेट लड़खड़ाते कदम और मुंह से निकलती आह देखने और सुनने वालों को ताउम्र पीछा करेंगीं।कोई जयपुर से निकला है और बरेली तक जाना है।
कोई कोटा से निकला है और पीलीभीत तक जाना है।
कोई पलवल से निकला है और बिहार के सीवान और मुजफ्फरपुर जाना है।
Majdur
किसी को 400 किलोमीटर तो किसी को 700 किलोमीटर तो किसी को 1000 किलोमीटर जाना है।
इस चुनौती भरे सफर में किसी को 5 दिन लगेंगे, किसी को 10 तो किसी 15 दिन।
जेब में फूटी कौड़ी नहीं है, पोटली में दाना नहीं है, सफर करने को मोटर वाहन नहीं है, पर इन सबके पास परदेश से चलकर अपने अपने घर पहुंचने का दृढ़ संकल्प जरूर है।
ये कहानी लालबहादुर, रवि, रामकुमार, रमेश, सर्वेश, अनिल, रंजीत, दिलसुख, सुधीर, जयचंद, अनिल, राहुल, परमा, मुन्ना, वसीम, सफी और कयूम जैसे न जाने कितने पलायन कर रहे श्रमिकों की है
जो दो वक्त की रोटी कमाने घर से हज़ारों किलोमीटर दूर महाराष्ट्र गुजरात राजस्थान दिल्ली हरियाणा और पंजाब को गए और बापस लौटे तो इस कदर कि पता ही नहीं घर की चौखट कब नसीब होगी।
ईश्वर करे कि सभी सुरक्षित अपने अपने घर पहुंच जाएं।
अमित तिवारी राष्ट्रीय जजमेंट ब्यूरो चीफ की रिपोर्ट ✍️

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