मध्य प्रदेश : शिवराज और सिंधिया के बीच सब कुछ सामान्य नहीं है ?

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शिवराज-महाराज की दोस्ती तल्खियों की तरफ, बागियों के टिकट के साथ-साथ राज्यसभा सीट पर भी संशय
बीजेपी और सिंधिया के बीच कमलनाथ सरकार गिराने और बीजेपी सरकार बनाने को लेकर शुरू हुयी वर्ष 2020 की सबसे बड़ी राजनीतिक डील अब टूटती नजर आ रही है। मध्यप्रदेश के साथ-साथ पूरे देश में कियासों का बाज़ार गर्म है। वही बीजेपी दफ्तर और सिंधिया खेमें से मिल रहे अपुष्ट संकेत भी अब इस बेमेल जोड़ी की उम्र लम्बी नहीं बता रहे हैं।
माह फरवरी-मार्च के बीच हुए मध्यप्रदेश की राजनीति के अपनी तरह के इस पहले अनैतिक समझौते के तहत सिंधिया को राज्यसभा और केन्द्रीय मंत्री, सिलावट को उपमुख्यमंत्री और विधायक का टिकट एवं शेष सभी को कैबिनेट मंत्री और विधायक के टिकट व अन्य गोपनीय लेनदेन के तहत कमलनाथ सरकार को गिराने की डील हुयी थी।
बीजेपी एवं सिंधिया दोनों ही इस महाडील के नफा का तो पूरा-पूरा आकलन कर रहे थे, पर नुकसान का आकलन करने की जहमत किसी ने भी नहीं उठाई। तयशुदा डील के मुताबिक सिंधिया का राज्यसभा नामांकन हो गया और इधर कमलनाथ की 15 महीने पहले 15 साल बाद बनीं कांग्रेस की सरकार भी गिर गई।
असली खेल अब शुरू हुआ जब नरोत्तम, भार्गव, तोमर, झा, विजयवर्गीय और वीडी की पसंद और दावेदारी को धता बताते हुए शिवराज सिंह चौहान मुख्यमंत्री पद की कुर्सी पर जा चिपके। चूंकि जनता के द्वारा चुनी हुई सरकार तो थी नहीं, इसलिए इस बात की किसी ने परवाह भी नहीं की कि जनता मुख्यमंत्री के रूप में किसे पसंद करेगी।
शिवराज ने मुख्यमंत्री बनने के पहले ही सिंधिया को विभीषण बताकर अपना इरादा स्पष्ट कर दिया था। शपथ के बाद शिवराज फिर से ताकतवर हुए और उन्होंने सबसे पहले मंत्रीमंडल गठन में सिंधिया को उनका कद बार-बार नाप-नापकर बताया और शर्मिंदा किया। सिंधिया दिल्ली-भोपाल की दौड़ लगाते रहे लेकिन ग्वालियर-चम्बल संभाग के बीजेपी नेताओं की कड़ी आपत्ति के कारण उस क्षेत्र से किसी भी सिंधिया समर्थक को मंत्रीमंडल में शामिल नहीं किया गया।
सिंधिया ने बैंगलोर समझौते के इस उल्लंघन पर जैसे ही गहरा ऐतराज जताया, पूरी बीजेपी ने सिंधिया को ही नैतिकता, अनुशासन, पार्टी परंपरा, संगठन, सर्वसम्मति एवं कैडर का पाठ पढ़ाकर उनकी सभी मांगों को सिरे से खारिज कर दिया।
इसी बीच बीजेपी ने इन बागियों की वजह से रिक्त सीटों पर गोपनीय सर्वे कराया जिसके बाद बीजेपी के होश उड़ गए। बीजेपी के सर्वे के अनुसार 22 में से 19 बागियों की पराजय निश्चित है, वहीं 3 सीटों पर कांग्रेस बीजेपी के बीच कड़ी टक्कर होने की सम्भावना है।
अब बीजेपी को सत्ता और सिंधिया दो में से किसी एक को चुनना था, लिहाजा बीजेपी ने सिंधिया को सारी बातें साफ़-साफ़ बताकर इन 22 में से 12 बागियों के टिकट काटने और मंत्रीमंडल में भी जगह नहीं देने की बात बताई। बीजेपी ने सिंधिया के सामने दो ही विकल्प रखे पहला विकल्प कि आप हमारी शर्तों पर बागियों के टिकट काटने के लिए तैयार हो जाइये, और दूसरा विकल्प कि हम अपना समझौता यहीं ख़त्म करते हैं।
सिंधिया के पास शर्तों को मानने के अलावा कोई विकल्प नहीं था, नतीजतन सिंधिया ने अपनी राज्यसभा की उम्मीदवारी बचाने का निर्णय लिया और सभी बागियों को अपने स्तर पर ही टिकट के लिए प्रयास करने या दबाव बनाने की खुली छूट दे दी।
दूसरे दिन से ही प्रभुराम चौधरी, महेंद्र सिसोदिया, प्रद्युमन तोमर, इमरती देवी जैसे कई बागियों ने भोपाल एवं स्थानीय बीजेपी दफ्तरों का रूख किया और मंत्री बनाने के लिए दबाव बनाना शुरू कर दिया। लेकिन अब तक बीजेपी को सिंधिया के ख़त्म हो चुके अस्तित्व और गिरते कद का पूरा अंदाजा हो चुका था,
लिहाज़ा बीजेपी ने मौके की नजाकत को देखते हुए सिंधिया समर्थक 6 पूर्व मंत्रियों के आख़री 6 माह के कार्यकाल की जांच कराने की घोषणा कर दी। बीजेपी के इस मास्टर स्ट्रोक ने 6 पूर्व मंत्रियों को कई कदम पीछे कर दिया वहीं सिंधिया को भी सन्देश दे दिया कि “आवाज नीचे”..!
अब बीजेपी को सिंधिया और बागियों से जो भी मिलना था, वो सब मिल चुका है। अब ये भाजपा के लिए केवल एक बोझ और सरदर्द के अतिरिक्त कुछ भी नहीं हैं, इसलिए भाजपा चाहती है की सिंधिया किसी भी तरह से नाराज हों और हमारा पीछा छोड़ें। अब जब लक्ष्य ही नाराज करना है तो फिर क्या राज्यसभा, क्या केन्द्रीय मंत्री, क्या विधायकी और क्या समझौता…?
कुल मिलकर बीजेपी एक बार फिर जल्द ही बोलेगी “माफ़ करो महाराज, हमारा नेता शिवराज..!”

पढ़ें : हरि शंकर पाराशर( कटनी) की रिपोर्ट ~✍️

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