पारदर्शिता की बात करने वाली सरकार आखिर क्यों नहीं देना चाहती पीएम केयर फंड का लेखा- जोखा ?

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केन्द्र की मोदी सरकार समूचे देश की जनता, देश के तमाम संसाधनों को लूटने के लिए सत्ता में आई है. इसको देश की आवाम से कोई लेेना-देना नहीं है. अचानक की गई देशव्यापी लॉकडाऊन से जहां देश के करोड़ोंं लोग सड़क पर आ गये वहीं हजारों लोग भूख-प्यास और पुलिस पिटाई से मार डाले गये. यहां तक कि प्रवासी मजदूरों की घर वापसी के लिए चलाये गये भूखे लोगों से भी न केवल पैसा वसूल किया गया बल्कि ट्रेनों को बकायदा मोदी सरकार के आदेश पर यहां वहां वेवजह दौड़ाया गया, जिस कारण हजारों लोग भूख प्यास से मर गयेे.
मोदी सरकार ने इस कोरोना आपदा के नाम पर, जो वास्तव में कहीं है हीं नहीं, पीएम केयर नाम का एक विशाल ब्लैक होल झोला बनाया है, जिसमें हजारों करोड़ रुपया दान के नाम पर लोगों से छीन लिया है. इसमें सरकारी कर्मचारियों के वेतन से बकायदा अच्छी खासी राशि काटी गई है, जो अगले एक साल तक जारी रहेगी. विदेशी कंपनियों समेत और न जाने किस किस लोगों से चंदे के नाम पर हजारों करोड़ रुपये वसूल लिए.
जानकारों का मानना है कि पीएम केयर फंड नामक इस ब्लैक होल झोला में लाखों करोडों रुपये समाहित हो चुके हैं, जिसका किसी भी प्रकार का कोई लेखा जोखा मोदी सरकार देश को नहीं देना चाहती. हालिया अरविंद वाघमारे ने अपनी याचिका में मांग की है कि सरकार आधिकारिक वेबसाइट पर इस बात की जानकारी दे कि उसे इस फंड में अबतक कितनी राशि मिली है और उसने कितना खर्च किया है ? लेेकिन ईमानदार और पारदर्शिता का ढोंग करने वाली मोदी सरकार इसके खिलाफ थोथी दलील दे रही है.
इसके साथ ही मोदी सरकार ने एक ओर ईएमआई की वसूली पर 6 माह की रोक लगाने का लॉलीपॉप फेका था, जो अब लोगों के लिए भारी पड़ रहा है. अब वह इस अवधि के ईएमआई न लेने के एवज में अतिरिक्त ब्याज वसूलने जा रही है, जिसका विरोध करने पर अपने ऐजेंट आरबीआई के माध्यम से 2 लाख करोड़ के नुकसान का हवाला दे रहा है, यानी मोदी सरकार ने लोगों को सीधे तौर पर 2 लाख करोड़ रुपया का चूना लगाया है.
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल एक जनहित याचिका में कहा गया है कि लॉकडाउन के दौरान लोगों की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. उन्हें 6 महीने तक बैंक से लिए गए कर्ज की किश्त न देने की राहत दी गई है. लेकिन बैंक इस अवधि के लिए ब्याज वसूल रहे हैं. यह गलत है. सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर रिजर्व बैंक से जवाब मांगा था.
अब रिजर्व बैंक ने हलफनामा दाखिल कर कहा है कि लोगों को 6 महीने का EMI अभी न देकर बाद में देने की छूट दी गई है. लेकिन अगर इस अवधि के लिए ब्याज भी नहीं लिया गया तो बैंकों की वित्तीय सेहत पर इसका बहुत बुरा असर पड़ेगा. सिर्फ सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों को ही लगभग दो लाख करोड़ रुपये का नुकसान उठाना पड़ेगा. आरबीआई ने बताया है कि निजी क्षेत्र के बैंक और गैर बैंकिंग फाइनेंशियल कंपनियों को इससे होने वाले नुकसान का अभी आंंकलन नहीं किया गया है. यानी, ब्याज के नाम पर होने वाले कथित नुकसान का हवाला देकर देशवासियों को कई लाख करोड़ रुपया का चूना मोदी सरकार लगाने जा रही है.
कोर्ट में दाखिल हलफनामे में आरबीआई ने बताया है कि बैंकों की खस्ता स्थिति का असर देश की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ेगा. बैंकों के लिए अपने पास पैसा जमा कराने वाले ग्राहकों को ब्याज देना भी मुश्किल हो जाएगा. इसलिए, बैंकों को अपने कर्ज़दारों से इस अवधि का ब्याज न लेने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता. आरबीई ने कोर्ट से दरख्वास्त की है कि वह 6 महीने की मोरेटोरियम अवधि के लिए ब्याज माफ करने का आदेश न दे.
जनता के घरों में डाका डाल चुकी मोदी सरकार केवल इन दो तरीकों से लाखों करोड़ रुपया की अवैध वसूली कर रही है, जिसका सीधा फायदा देश के उन गिने चुने औद्योगिक घरानों और देश का लाखों करोड़ रुपये लेकर भाग चुके चोरों को होगा. मोदी सरकार देश की जनता पर एक महामारी है, जिससे शीघ्र पीछा छुटता नजर नहीं आ रहा है, जिसकी कीमत लाखों लोगों को अपनी और अपने बच्चों की जान देकर चुकानी है.

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