सीतापुर: जानें स्वतंत्रता आंदोलन में यहाँ भी हुआ था जलियांवाला बाग जैसा गोली कांड

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सीतापुर।

1858 में लखनऊ पर अंग्रेजों ने पताका फहरा ली, लेकिन सीतापुर जिला अपनी बहादुरी के चलते काफी बाद तक स्वतंत्र रहा। जिले का सारा क्षेत्र अक्टूबर 1858 तक अंग्रेजों के कब्जे से बाहर रहा, जो यहां के सपूतों की बहादुरी का सबसे बड़ा प्रमाण है।
 भारत के इतिहास और स्वतंत्रता आंदोलन में सीतापुर जनपद का समृद्ध इतिहास रहा है।जब भी मातृभूमि ने पुकारा सीतापुर के क्रांतिकारी अपनी जान की बाजी लगाने से पीछे नही हटे।बीते कालखंड में सीतापुर में भी जलियांवाला बाग जैसे कांड की पुनरावृत्ति हुई थी।
18 अगस्त सन 1942 की सुबह महात्मा गांधी के करो या मरो के नारे से प्रभावित होकर आजादी के मतवाले सीतापुर के लालबाग पार्क में सभा के लिए एकत्र हो रहे थे।सभा शांतिपूर्ण होनी थी, मगर पुलिस और प्रशासन ने सभा की अनुमति नही दी थी, बावजूद इसके दूर दराज से सैकड़ों आज़ादी के मतवाले स्वतः स्फूर्त भाव से लालबाग पार्क की तरफ बढ़ रहे थे।
तत्कालीन डिप्टी कलेक्टर कैलाश चंद्र त्रिवेदी जो कि अंग्रेज़ों का पिट्ठू था,को ख़ुफ़िया तंत्र से जानकारी मिली,जानकारी मिलते ही पुलिस ने लालबाग पार्क का घेराव कर लिया।सशस्त्र पुलिस को देखकर क्रांतिकारियों की सभा मे हलचल मची, अचानक किसी ने एक पत्थर चला दिया,
जो कि डिप्टी कलेक्टर कैलाश चन्द्र त्रिवेदी के हैट पर लगा।हैट के गिरते ही वो आग बबूला हो उठा, और सिपाहियों को गोली चलाने का आदेश दे दिया।सिपाहियों के कंधों पर तनी बंदूकें गरजने लगी।
पार्क में चारों तरफ अफरा तफरी मच गई। क्रांतिकारियों की तरफ से पत्थर चल रहे थे और पुलिस की तरफ से गोलियां। पुलिस की बिना चेतावनी की गई फायरिंग में
सीतापुर के 6 क्रांतिकारी स्व.चंद्रभाल मिश्र, मुन्ना लाल मिश्र, रघुबर दयाल, बाबूराम भुर्जी, मैकूलाल, मोहर्रम अली और पास से गुजर रहा दस वर्षीय बालक कल्लू राम शहीद हो गए।इस फायरिंग में शहीदों की संख्या तो कहीं ज्यादा थी, मगर नाम यही मिले।घायलों में लल्लू राम मिश्र और राज किशोर मेहरोत्रा का नाम ही ज्ञात है।
इसी लालबाग पार्क में सन 1930 में गांधी जी के नमक सत्याग्रह में पंडित शिवराम वैद्य की अगुवाई में नमक बनाकर अंग्रेज़ों का कानून तोड़ा गया था।
सभी ज्ञात और अज्ञात शहीदों की स्मृति में लालबाग शहीद पार्क में शहीद स्मारक का निर्माण कराया गया।मगर प्रशासनिक उपेक्षा के कारण आज यह स्मारक गंदगी और अतिक्रमण के कारण उपेक्षित है।

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