दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रो. श्यौराज सिंह बेचैन की आत्मकथा ‘मेरा बचपन मेरे कंधों पर’ के छात्र संस्करण का भव्य लोकार्पण

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय में प्रसिद्ध लेखक, चिंतक और प्रोफेसर श्यौराज सिंह बेचैन की आत्मकथा ‘मेरा बचपन मेरे कंधों पर’ के छात्र संस्करण का लोकार्पण समारोह आयोजित हुआ। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने अपने कर-कमलों से पुस्तक का लोकार्पण किया। समारोह में कुलसचिव डॉ. विकास गुप्ता, हिंदी विभागाध्यक्ष प्रो. सुधा सिंह, वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक श्री अरुण माहेश्वरी, लेखक प्रो. श्यौराज सिंह बेचैन सहित विश्वविद्यालय के अनेक प्राध्यापक, शोधार्थी और सैकड़ों विद्यार्थी उपस्थित रहे। कार्यक्रम का शुभारंभ मुख्य अतिथि प्रो. योगेश सिंह, कुलसचिव डॉ. विकास गुप्ता, प्रो. श्यौराज सिंह बेचैन, प्रो. सुधा सिंह और श्री अरुण माहेश्वरी द्वारा दीप प्रज्वलन के साथ हुआ।

मुख्य अतिथि के रूप में अपने संबोधन में कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा, “प्रो. श्यौराज सिंह बेचैन की आत्मकथा ‘मेरा बचपन मेरे कंधों पर’ हर उस सामान्य बच्चे की कहानी है जो जीवन में कठिनाइयों के बावजूद आगे बढ़ना चाहता है। यह पुस्तक उनके संघर्षों, दृढ़ता और सफलता की प्रेरक गाथा है। उनकी लेखन शैली अनूठी और प्रभावशाली है, जो पाठक के सामने जीवंत चित्र प्रस्तुत करती है। इस आत्मकथा में संवेदनाएं, बिंब और जीवन के विभिन्न रंग हैं, जो इसे विशिष्ट बनाते हैं। यह केवल प्रो. श्यौराज की व्यक्तिगत कहानी नहीं, बल्कि पूरे समाज की कहानी है। यह पुस्तक हमें सिखाती है कि इच्छाशक्ति और मेहनत से कोई भी असंभव को संभव कर सकता है। मैं सुझाव देता हूं कि इसे दिल्ली विश्वविद्यालय के स्नातक और स्नातकोत्तर पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए, ताकि विद्यार्थी इससे प्रेरणा ले सकें। दिल्ली विश्वविद्यालय को प्रो. श्यौराज सिंह बेचैन पर गर्व है।”

पुस्तक के लेखक प्रोफेसर श्यौराज सिंह बेचैन ने अपने उद्बोधन में कहा, “मेरे लिए यह आत्मकथा लिखना एक भावनात्मक यात्रा थी। एक बच्चा, जिसके पास कुछ भी नहीं था, जिसने बचपन में अभाव, अपमान और कठिन परिस्थितियों का सामना किया, उसका इस मुकाम तक पहुंचना मेरे लिए भी कभी-कभी अविश्वसनीय लगता है। यह आत्मकथा मेरे निजी अनुभवों से कहीं अधिक है; यह उस समाज की सच्चाई है जिसमें मैंने जन्म लिया। मैं चाहता हूं कि युवा पीढ़ी, विशेषकर विद्यार्थी, इस आत्मकथा को पढ़कर यह समझें कि चाहे परिस्थितियां कितनी भी विपरीत हों, मेहनत और संकल्प से हर लक्ष्य हासिल किया जा सकता है। इस छात्र संस्करण का उद्देश्य यही है कि युवा मेरे जीवन-संघर्ष से प्रेरणा लें और अपने भीतर आत्मविश्वास जगाएं।”

लोकार्पण समारोह में उपस्थित सैकड़ों विद्यार्थियों और प्राध्यापकों ने प्रो. श्यौराज सिंह बेचैन की आत्मकथा की सराहना की। समारोह में उपस्थित शोधार्थियों और विद्यार्थियों ने प्रो. बेचैन के साथ संवाद किया और उनकी जीवन-यात्रा से प्रेरणा ली।

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