डॉ. विनय अग्रवाल: कोविड-19 उचित प्रबंधन के लिए भारतीय चिकित्सा सेवाओं की तत्काल आवश्यकता
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भारत दूसरा सबसे अधिक आबादी वाला देश है और दुनियाभर में कोरोना वायरस के सक्रिय मामलों में अब यह तीसरे स्थान पर पहुंच गया है। कोविड के मामलों में निरंतर वृद्धि, बढ़ता समुदायी प्रसारण, स्वास्थ्य सेवाओं पर भार, महा
मारी की स्थिति के बावजूद प्राइवेट सेक्टर द्वारा इलाज के खर्च में वृद्धि आदि भारत की हेल्थ इमरजेंसी को दर्शाते हैं। इससे हमारे देश में स्वास्थ्य देखभाल के क्षेत्र से संबंधित बनी नीतियों पर एक बड़ा सवाल खड़ा होता है। ‘स्वास्थ’ एक बड़ा कान्सेंप्ट है और अच्छे स्वास्थ्य प्राप्ति के लिए उचित नीतियों और रणनीतियों की आवश्यकता है। जिससे वे लोग भी आसानी से इलाज करा सकें, जिन्हें ठीक से दो वक्त की रोटी भी नसीब नहीं होती है। हालांकि, हेल्थकेयर के थ्री-टियर संगठनों (प्राथमिक, माध्यमिक, तृतीयक) को उन सभी से अधिक पहचान मिली, जो संबंधित स्तरों पर आवश्यक निवारक और उपचारात्मक टेक्नोलॉजी, संस्थानों और कर्मियों की जरूरत को बखूबी पूरा नहीं कर पा रहे हैं।
लेकिन वर्षों से, सरकारें और ब्यूरोक्रैट्स स्वास्थ्य के मजबूत सिस्टम की जरूरत को अनदेखा करते आ रहे हैं। आईएएस लॉबी अपना फैसला सुनाने से पहले न तो आवश्यक हितकारियों को शामिल करता है और न ही हेल्थकेयर सेक्टर के साथ कोई विचार-विमर्श करना जरूरी समझता है। यहां तक कि कोविड 19 की विश्वव्यापी महामारी के दौरान, जीमीनी स्तर के फैसले प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा तय किए गए, जिससे मौजूदा स्वास्थ्य सेवा संरचना की खामियां उजागर होती हैं। सरकारों ने भी इस थ्री-टियर सिस्टम को फिर से शुरू करने में अपनी लाचारी व्यक्त की है। वहीं ब्यूरोक्रैट्स स्वास्थ्य को केवल एक चिकित्सा विषय के रूप में देखते हैं। दरअसल, नीति निर्माता नीतियां बनाते वक्त बीमारी को खत्म करने वाले महत्वपूर्ण पहलुओं को अनदेखा कर देते हैं, जिसके कारण स्वास्थ्य नीतियों और जमीनी तथ्यों में एक बड़ा अंतर दिखाई देता है। चूंकि, कोविड 19 एक नया वायरस है, इसलिए ज्ञान में विकास और दृष्टिकोण में बदलाव जरूरी है। लेकिन जमीनी तथ्यों की कमी के कारण वर्तमान की नीतियों में बहुत जल्दी-जल्दी बदलाव किए जा रहे हैं और वो भी हर 1-2 दिनों में। ऐसा स्वास्थ्य विशेषज्ञों की सलाह के बिना किया जा रहा है, जिसके कारण जनता भ्रमित हो रही है, स्वास्थ्य कर्मी निराश हो रहे हैं और सरकार के ऊपर से विश्वास उठता जा रहा है।
बनाई गई नीतियों और जमीनी सच्चाई में साफ फर्क दिखाई दे रहा है। उदाहरण, इन 4 महीनों की महामारी की नीतियों में अबतक 4 हजार बदलाव किए जा चुके हैं। परीक्षणों, आईसोलेशन, क्वारंटीन, मरीज को भर्ती करने, मरीज को डिस्चार्ज करने, बेड से संबंधित स्टेटस, कोविड 19 और नॉन-कोविड बीमारियों के प्रबंधन, स्त्रोतों आदि से जुड़ी नीतियों में अबतक कई बदलाव देखे गए हैं। मरीजों की जान बचाते हुए हजारों डॉक्टर कोरोना से संक्रमित हो चुके हैं और 100 से अधिक ने अपनी जान गंवा दी। इसके अलावा कर्मी सुरक्षा उपकरण की कमी (पीपीई), कोविड पॉजिटिव मरीजों से संबंधित दृष्टिकोण और प्रबंधन में स्पष्टता की कमी, अनियमित काम के घंटे, परीक्षण और क्वारंटीन की सुविधाओं का अभाव और संक्रमित लोगों की बढ़ती संख्या आदि एक बड़ी चिंता का विषय बन गया है।
अस्पतालों को सील करना, इलाज करने वाले डॉक्टरों के खिलाफ केस दर्द करना, समाज में स्वास्थ्य कर्मियों को कलंकित करना, उन्हें समाज की गतिविधियों से दूर रखना और छोटे अस्पतालों में कोविड मरीजों के लिए केवल 20 प्रतिशत बेड की इजाजत देना आदि जैसे कठोर फैसले न केवल विरोधाभासी रहे बल्कि इस घातक स्थिति को बढ़ावा देने का कारण भी बने।
ऽ चूंकि, सार्वजनिक सवास्थ्य और चिकित्सा जरूरतों को संबंधित करने के लिए हेल्थकेयर डिलीवरी सिस्टम के लिए एक अलग कैडर टीम मौजूद नहीं है, इसलिए विशेषज्ञों की कमी के कारण कोविड का प्रबंधन करने में हम विफल रहे हैं।
# सरकार द्वारा हेल्थकेयर को केवल 1-1.2 प्रतिशत की जीडीपी आवंटित करने के कारण पब्लिक सेक्टर में इंफ्रास्ट्रक्चर, टेक्नोलॉजी, सुविधाओं और स्त्रोतों की कमी हुई है।
# खराब भू-वितरण- गांवों और छोटे कसबों के खराब विकास के कारण स्वास्थ्य कर्मी ऐसे स्थानों पर काम करने के लिए राजी नहीं है। परिणामस्वरूप शहरी केद्रित उपचारात्मक देखभाल सोच से भी अधिक मंहगी है।
# रिसोर्स प्रबंधन समस्याएं- मानव और वित्तीय, प्रोटोकॉल के प्रवर्तन, खरीद और सूची प्रबंधन, स्वच्छता और सैनिटरी स्थिति के लिए सिस्टम तैयार करना आदि स्वास्थ्य क्षेत्र में एक बड़ी कमी को दर्शाते हैं। अन्य क्षेत्रों के विपरीत, स्वास्थ्य प्रबंधन में महत्वपूर्ण तकनीकी आयाम हैं, जिन्हें सामान्य प्रबंधन सिद्धांतों के साथ जोड़ने की आवश्यकता है।
चूंकि, ये सभी बातें स्वास्थ्य प्रशासन में व्यावसायिकता की कमी की ओर इशारा करते हैं, जिससे स्वास्थ्य देखभाल संरचना में एक खास टीम यानी कि भारतीय स्वास्थ्य सुविधाओं की आवश्यकता बढ़ती नजर आ रही है। सार्वजनिक स्वास्थ्य और प्रबंधन क्षमताओं के अपर्याप्त ज्ञान के कारण आईएमएस की बढ़ती जरूरत को पहले 1995 के एडमिनिस्ट्रेटिव स्टाफ कॉलेज में और फिर 2005 में नेशनल कमीशन मैक्रोइकोनॉमिक्स एंड हेल्थ में दिखाया गया। 2017 में मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया ने भी भारत सरकार को भारतीय स्वास्थ्य सुविधाओं का गठन करने की सलाह दी थी। स्वास्थ्य प्रशासक जो आमतौर पर चिकित्सा अधिकारी और जनता के स्वास्थ्य के प्रभारी होते हैं, उन्हें चिकित्सा का तो ज्ञान होता है, लेकिन उनमें प्रशासनिक क्षमता की कमी होती है।
यह अंतर आईएएस-आईपीएस की तरह इंडियन मेडिकल सर्विस (आईएमएस) की जरूरत को भी बढ़ा रहा है, जहां लोगों को प्रशासनिक क्षमता और सही नीतियां तैयार करने के लिए उचित ट्रेनिंग दी जाती है। हमें ऐसी टीम की तत्काल आवश्यकता है, जो जिला चिकित्सा अधिकारी से लेकर विभिन्न रोग नियंत्रण कार्यक्रमों के परियोजना अधिकारी और केंद्रीय और राज्य स्वास्थ्य मंत्रालय सचिवों के विभिन्न रैंकों और अन्य संबंधित पदों तक की प्रशासनिक जिम्मेदारियों को बखूबी निभा सकें। आईएमएस चिकित्सा पेशवरों को नीति बनाने का एक हिस्सा बनने और प्रशासन में सक्रिय नेतृत्व की भूमिका निभाने का अवसर प्रदान करता है, जिससे हमारी स्वास्थ्य प्रणाली स्थिर हो सकेगी। किसी भी विकसित राष्ट्र के लिए स्वास्थ्य उसके विकास को दर्शाता है और हमारे समाज को स्वस्थ बनाने के लिए आईएमएस एक विकल्प साबित होगा।
डॉ. विनय अग्रवाल
पूर्व राष्ट्रीय अध्यक्ष, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन
एग्जीक्युटिव मेंबर,दिल्ली मेडिकल काउंसिल
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