मध्य प्रदेश की राजनीति में उमा भारती की वापसी, शिवराज के राजनीतिक सफ़र के अंत का आरम्भ

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मध्यप्रदेश की राजनीति में मार्च 2020 से शुरू हुई उथलपुथल थमने का नाम नहीं ले रही है। शिवराज और सिंधिया की नई-नवेली जोड़ी ने कमलनाथ के विधायक लेकर सरकार तो बना ली पर शायद इसके दूरगामी परिणामों के आकलन में शिवराज से भारी चूक हो गई। शिवराज और नरोत्तम मुख्यमंत्री की कुर्सी के लिये लड़ने में इतने मशगूल रहे कि उन्हें मध्यप्रदेश की राजनीति में परदे के पीछे तैयार हो रहा तीसरा समीकरण नजर ही नहीं आया, और आज जब सब कुछ दिख रहा है तो इस पर प्रतिक्रिया देना भी किसी जोखिम से कम नहीं।
इशारा तो आप समझ ही गए होंगे, पिछले करीब 16 वर्षों से मध्यप्रदेश की राजनीति में हासिये पर चल रही उमा भारती अचानक से मध्यप्रदेश की राजनीति का केंद्र बनती नजर आ रही हैं। राजमाता सिंधिया द्वारा राजनीति में लाई गईं उमा भारती के सिंधिया घराने से पुराने पारिवारिक ताल्लुकात और सिंधिया की बीजेपी में बढ़ती हैसियत ने जहाँ उमा भारती और सिंधिया के लिए संभावनाओं के कई द्वार खोल दिए हैं वहीं शिवराज और नरोत्तम जैसे कई नेताओं के पट बंद होते नज़र आने लगे हैं।
पहले उमा भारती की खजुराहो, टीकमगढ़ और बड़ामलहरा से बिदाई और फिर केंद्रीय नेतृत्व के दखल से मध्य प्रदेश की राजनीति से उनका सुनियोजित पृथकीकरण जिसने उन्हें झांसी से चुनाव लड़ने पर विवश किया, आज भी उनके जीवन की सबसे बड़ी टीस है, जिसके जवाब का वक़्त बेहद नजदीक नजर आ रहा है।

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