नयी दिल्ली : देश में सबसे भीषण मंदी की आशंका ?

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नयी दिल्ली। कोरोना वायरस के रोकथाम के लगाए गए देशव्यापी लॉकडाउन का असर अर्थव्यवस्था पर पड़ा है और इसकी वजह से आर्थिक गतिविधियां भी पूरी तरह से ठहर गई थी। जिसके बाद अब कहा जा रहा है कि भारत को सबसे भीषण मंदी का सामना करना पड़ सकता है।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने कहा कि भारत अबतक की सबसे खराब मंदी की स्थिति का सामना कर रहा है। उसने कहा कि आजादी के बाद यह चौथी और उदारीकरण के बाद पहली मंदी है तथा यह संभवत: सबसे भीषण है।

आर्थिक मंदी

रेटिंग एजेंसी के अनुसार कोरोना महामारी तथा उसकी रोकथाम के लिए जारी लॉकडाउन से अर्थव्यवस्था में चालू वित्त वर्ष में 5 फीसदी की गिरावट आने की आशंका है।
क्रिसिल ने भारत के जीडीपी के आकलन के बारे में कहा कि पहली तिमाही यानी की अप्रैल से जून तक के वक्त में 25 फीसदी की बड़ी गिरावट की आंशका है। एजेंसी ने आगे बताया कि वास्तविक आधार पर करीब 10 फीसदी जीडीपी स्थायी तौर पर खत्म हो सकती है। ऐसे में हमने महामारी से पहले जो वृद्धि दर देखी है। अगले तीन वित्त वर्ष तक उसे देखना या हासिल करना काफी मुश्किल होगा।
एजेंसी क्रिसिल ने उपलब्ध आंकड़ों के आधार पर बताया कि पिछले 69 साल में देश में केवल तीन बार-वित्त वर्ष 1957-58, 1965-66 और 1979-80 में मंदी की स्थिति आई है। इसके पीछे हर बार कारण एक ही था और वह था मानसून का झटका जिससे खेती-बाड़ी पर असर पड़ा और फलस्वरूप अर्थव्यवस्था का बड़ा हिस्सा प्रभावित हुआ। लेकिन इस बार जो स्थिति उत्पन्न हुई है उसमें कोरोना वायरस के रोकथाम के लिए जारी लॉकडाउन को सबसे बड़ी समस्या के तौर पर देखा जा रहा है।
रेटिंग एजेंसी क्रिसिल ने कहा कि चालू वित्त वर्ष 2020-21 में मंदी कुछ अलग है क्योंकि इस बार कृषि के मोर्चे पर राहत है और यह मानते हुए कि मानसून सामान्य रहेगा, यह झटके को कुछ मंद कर सकता है। प्रवृत्ति के अनुसार इसमें वृद्धि का अनुमान है।
क्रिसिल के अनुसार, ‘‘चालू वित्त वर्ष की पहली तिमाही सर्वाधिक प्रभावित हुई। न केवल गैर कृषि कार्यों बल्कि शिक्षा, यात्रा और पर्यटन समेत अन्य सेवाओं के लिहाज से पहली तिमाही बदतर रहने की आशंका है। इतना ही नहीं इसका प्रभाव आने वाली तिमाहियों पर भी दिखेगा। रोजगार और आय पर प्रतिकूल असर पड़ेगा क्योंकि इन क्षेत्रों में बड़ी संख्या में लोगों को कामकाज मिला हुआ है।’’
रेटिंग एजेंसी ने आशंका जताई कि ऐसे राज्य जहां पर कोरोना के मामले ज्यादा हैं और उससे निपटने के लिए लंबे समय तक लॉकडाउन को जारी रखा जा सकता है वहां पर आर्थिक गतिविधियां काफी समय तक प्रभावित रह सकती हैं। हालांकि, लॉकडाउन-4 की मियाद पूरी होने से पहले केंद्र सरकार एक बार जरूर राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बातचीत कर आगे की रणनीति बनाने की कोशिश करेगी।
कहा जा रहा है कि इस बार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जब मुख्यमंत्रियों के साथ बातचीत करेंगे तो कोविड-19 के हालातों से निपटने के कार्यों की समीक्षा के साथ-साथ आर्थिक गतिविधियों पर भी जोर देने के विषय पर भी बातचीत कर सकते हैं और कोशिश यही रहेगी कि कैसे इन समस्या से उबरकर आर्थिक गतिविधियों को तेजी प्रदान किया जा सकें।
क्रिसिल ने कहा कि इन सबका असर आर्थिक आंकड़ों पर दिखने लगा है और यह शुरूआती आशंका से कहीं अधिक है। मार्च में औद्योगिक उत्पादन में 16 फीसदी से अधिक की गिरावट आई है।
वहीं, अप्रैल में निर्यात में 60.3 फीसदी की गिरावट आई और नए दूरसंचार ग्राहकों की संख्या 35 फीसदी तक कम हुई है। इतना ही नहीं रेल के जरिए माल ढुलाई में सालाना आधार पर 35 प्रतिशत की गिरावट आई है।
विकास दर को लेकर एसबीआई की शोध रिपोर्ट इकोरैप भी सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार जीडीपी वृद्धि के पिछले वित्त वर्ष 2019-20 में 4.2 प्रतिशत और वित्त वर्ष 2020-21 में नकारात्मक 6.8 प्रतिशत रहने का अनुमान है और जीवीए वृद्धि करीब नकारात्मक 3.1 प्रतिशत रहेगी।
रिपोर्ट के मुताबिक सबसे अधिक नुकसान रेड जोन में हुआ, जहां देश के लगभग सभी बड़े जिले स्थित हैं। कुल नुकसान में रेड जोन और ऑरेंज जोन की करीब 90 प्रतिशत हिस्सेदारी है।

 

हरि शंकर पाराशर राष्ट्रीय जजमेंट संवाददाता की रिपोर्ट ✍️

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