सीतापुर जनपद का खैराबाद कस्बा अपनी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है।खैराबाद का ताल्लुक नवाबों से रहा है,जिस कारण से इसे खैराबाद अवध भी कहा जाता है।खैराबाद के चप्पे चप्पे पर नवाबी शान और ऐतिहासिक इमारतों की छाप है।ऐसी ही एक नायाब इमारत है मक्का जमादार का इमामबाड़ा ।जो कि वास्तु कला का एक नायाब नमूना है।
इस इमामबाड़े के बनने की कहानी भी कम दिलचस्प नही है।खैराबाद के जाति से दर्ज़ी मक्का लखनऊ के नवाब वाजिद अली शाह की सल्तनत में दरोगा थे(तब के पुलिस विभाग में जमादार एक पद होता था)।ढाका से आया हुआ एक व्यापारी नवाब को मलमल का एक कपड़ा भेंट कर गया था, जिसमे बहुत खूबसूरती से काढ़ा हुआ गुलाब का फूल बना हुआ था।नवाब कपड़ों के शौकीन थे,क्योंकि अंग्रेज़ों से मित्रता के कारण उन्हें भी यूरोपियन शैली के कपड़े भाने लगे थे।
नवाब चाहते थे कि उस कपड़े से शेरवानी सिली जाए ,मगर शर्त ये थी कि वो गुलाब का फूल ठीक उनकी शेरवानी में सीने पर दिल के पास आये।बड़े बड़े दर्ज़ियों ने अपना हुनर आजमा लिया मगर नवाब संतुष्ट ना हुए।आखिर में किसी दरबारी ने मक्का का जिक्र किया।मक्का को बुलाया गया और नवाब ने अपनी शर्त बताई।मक्का ने अपने हुनर की बदौलत उस कपड़े में नवाब के मन मुताबिक गुलाब को सीने पर दिल के पास ले कर शेरवानी तो सिल ही दी,एक टोपी भी उसी कपड़े में निकाल दी।
उस शेरवानी को पहन कर नवाब की खुशी का ठिकाना ना रहा।नवाब वाजिद अली ने मक्का से इनाम मांगने को कहा।मक्का ने बजाय अपने लिए कुछ मांगने के खैराबाद में खुदा की इबादत के लिए इमामबाड़ा बनवाने की मांग की। नवाब ने खुश होकर खैराबाद में इमामबाड़ा ,कदम रसूल का निर्माण लखनऊ के इमामबाड़ा की तर्ज़ पर करवाया,और इमामबाड़े को मक्का जमादार का इमामबाड़ा का नाम दिया,यही नही नवाब ने मक्का के कहने पर 3 पुलों का निर्माण भी कराया।बताया जाता है कि इस इमामबाड़े में एक भूलभुलैया भी है, जिसका रास्ता सीधे लखनऊ के इमामबाड़े में निकलता था।
जिसका रास्ता किसी वजह से बाद में बंद करा दिया गया।
आज इतिहास की यह अनोखी विरासत देखरेख के अभाव,सरकारी तंत्र की लापरवाही के कारण जर्जर हालत में अपनी बेकद्री पर आंसू बहा रही है।ना तो स्थानीय प्रशासन और ना ही राज्य पुरातत्व विभाग कई बार ध्यान आकृष्ट कराने के बावजूद भी इस ऐतिहासिक इमारत पर कोई ध्यान नही दे रहा है।
मनीष अवस्थी सीतापुर ब्यूरो चीफ राष्ट्रीय जजमेंट ✍️