ठंड की ठिठुरन में मरते बेघर, सरकार की रेस्क्यू टीमें सोती रहीं, 21 रेस्क्यू रिक्वेस्ट में सिर्फ एक को मिला आश्रय, बाकी में लीपापोती

नई दिल्ली: कड़ाके की ठंड ने दिल्ली को अपनी गिरफ्त में जकड़ लिया है। रात का पारा चार डिग्री तक लुढ़क जाता है। हीटर और मोटी रजाइयों में दुबके लोग भी ठिठुर रहे हैं, लेकिन फुटपाथों, फ्लाईओवरों के नीचे और खुली सड़कों पर पड़े सैकड़ों बेघरों के पास न रजाई है, न छत। पिछले पांच दिनों में ही ठंड से राजधानी में कम से कम दस बेघरों की जान जा चुकी है। ये वही दिन हैं जब दिल्ली सरकार और दिल्ली अर्बन शेल्टर इंप्रूवमेंट बोर्ड (DUSIB) दिन-रात ढोल पीट रहा हैं कि “बेघरों के लिए रैन बसेरे तैयार हैं, 15 रेस्क्यू टीमें 45 से ज्यादा कर्मचारियों के साथ सड़क पर हैं, कोई बेघर ठंड में नहीं मरेगा।” मगर हकीकत इसके ठीक उलट है।

रेस्क्यू टीम की जमीनी स्थिति की पड़ताल के लिए पांच–छह दिसंबर शुक्रवार की रात को DUSIB की आधिकारिक “रैनबसेरा” ऐप पर 21 रेस्क्यू की शिकायतें दर्ज की गईं। इनमें 50 से ज्यादा बेघरों की सटीक लोकेशन, फोटोग्राफ्स और लैंडमार्क भेजा गया था। सुबह हुई तो चौंकाने वाला सच सामने आया – 21 रेस्क्यू रिक्वेस्ट में से सिर्फ एक बेघर को ही रेस्क्यू टीम रैन बसेरा ले जा पाई। बाकी बीस शिकायतों को अलग-अलग बहानों से बंद कर दिया गया। किसी रेस्क्यू रिक्वेस्ट में “व्यक्ति मौके पर नहीं मिला”, किसी में “बेघर ने खुद मना कर दिया”, तो कई शिकायतों में साफ-साफ दर्ज किया है – “रेस्क्यू टीम ने DUSIB कंट्रोल रूम का फोन ही नहीं उठाया”।

शिकायत नंबर 5121 से 5128 तक लगातार एक ही बात लिखी हुई है – “रेस्क्यू टीम ने फोन नहीं उठाया”। ये आठों शिकायतें 6 दिसंबर सुबह 11:30 बजे तक भी खुली पड़ी थीं। यानी रात दस बजे की चीख पर अगले दिन दोपहर तक कोई नहीं पहुंचा। कुल 21 में से 11 शिकायतें सुबह तक अनसुलझी थीं। कंट्रोल रूम बार-बार फोन करता रहा, लेकिन रेस्क्यू टीमें या तो सो रही थीं या जानबूझकर फोन नही उठा रही थीं।

हालत सिर्फ रेस्क्यू टीमों तक सीमित नहीं है। रैन बसेरों की जमीनी सच्चाई भी दयनीय है। शुक्रवार मध्यरात्रि करीब 12 बजे तिलक नगर स्थित एक रैन बसेरा का गेट बंद था, ताला लटक रहा था। अंदर रोशनी जल रही थी, लेकिन बाहर ठंड से काँपते बेघरों के लिए कोई दरवाजा नहीं खुला। जब हमारे ही एक साथी ने बेघर बनकर गेट खटखटाया तो पहले केयरटेकर ने कहा – “जगह नहीं है”। जब जोर दिया गया तो बोला – “ID कार्ड दिखाओ”। ID नहीं होने पर साफ मना कर दिया गया। जबकि सुप्रीम कोर्ट का ऑर्डर और DUSIB का अपना सर्कुलर स्पष्ट कहता है कि किसी भी बेघर से पहचान-पत्र नहीं मांगा जाएगा। फिर भी खाली पड़े बेडों वाले रैन बसेरों के दरवाजे बेघरों के लिए बंद हैं।

सामाजिक कार्यकर्ता और वे लोग जो रात-रात भर सड़कों पर कंबल बाँटते हैं, वे कहते हैं – “ये दस मौतें सिर्फ ठंड से नहीं हुईं, ये सरकारी सिस्टम की लापरवाही से हुई हत्याएँ हैं। वे बताते हैं कि कई बार बेघर खुद चल नहीं पाते, नशे में होते हैं या इतने कमजोर हो चुके होते हैं कि मना करने की हालत में नहीं होते। ऐसे में कुछ भी बता कर रेस्क्यू रिक्वेस्ट बंद करना जानबूझकर की गई लीपापोती है।

DUSIB के एक अधिकारी ने बताया कि, सभी SMA को ज़रूरी निर्देश दे दिए गए हैं और यह पक्का किया जाएगा कि रेस्क्यू ड्राइव ध्यान से की जाए। हमारी टीम मामले को रिव्यू कर रही है ताकि यह पक्का हो सके कि रेस्क्यू ड्राइव गाइडलाइंस के हिसाब से अच्छे से किया जाए।

ये हाल तब है जब सरकार हर साल करोड़ों रुपए रैन बसेरों और विंटर एक्शन प्लान पर खर्च करने का दावा करती है। लेकिन जमीनी स्तर पर न रेस्क्यू टीमें फोन उठाती हैं, न रैन बसेरों के केयरटेकर दरवाजा खोलते हैं। नतीजा यह है कि राजधानी की चकाचौंध भरी सड़कों पर हर रात कोई न कोई बेघर ठंड से नीली पड़ती साँसों के साथ दम तोड़ देता है।

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