लखनऊ-आगरा एक्सप्रेसवे मुआवजा मामले में फंस सकते हैं कई अफसर, कई की भूमिका संदिग्ध, DM करेंगे जांच

राष्ट्रीय जजमेंट

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजधानी से निकलकर ताजनगरी तक जाने वाले लखनऊ-आगरा एक्सप्रेस-वे मुआवजा मामले में कई बड़े अफसर फंस सकते हैं। राजस्व परिषद ने अब इस पूरे मामले की जांच लखनऊ के डीएम को सौंपी है। इस मामले में तत्कालीन एसडीएम, तहसीलदार, राजस्व निरीक्षक और लेखपाल की भूमिका संदिग्ध है।राजस्व परिषद के अध्यक्ष अनिल कुमार ने मुआवजे से जुड़े सभी मामलों की जांच करने के निर्देश दिए हैं और दो सप्ताह में रिपोर्ट मांगी है। आरोपित अधिकारियों, कर्मचारियों और लाभार्थियों से गलत ढंग से जारी मुआवजा राशि की वसूली के भी निर्देश उन्होंने दिए हैं।तत्कालीन लेखपाल ने लाभार्थी और उसके पड़ोसी के बयान के आधार पर अपनी रिपोर्ट में उस भूमि पर वर्ष 2007 से पहले से अनुसूचित जाति के लाभार्थियों को कास्तकार दिखाया था। तत्कालीन राजस्व निरीक्षक, तहसीलदार और एसडीएम ने भी उसी रिपोर्ट के आधार पर लाभार्थी को मुआवजा की राशि जारी कर दी।
उसके बाद दो नवंबर 2022 को अपर आयुक्त प्रशासन लखनऊ मंडल को पुनरीक्षण के लिए दिए गए एक आवेदन में दावा किया गया कि लाभार्थी को जिस भूमि के लिए मुआवजा दिया गया है, उसमें चौहद्दी का उल्लेख नहीं है। इसके बाद 18 मार्च, 2024 को लाभार्थी के वकील ने राजस्व परिषद में पुनरीक्षण को चुनौती दी।
परिषद के अध्यक्ष अनिल कुमार की अदालत ने इस मामले को लेकर यूपीडा से भूमि अधिग्रहण का सारा रेकॉर्ड मांगा तो सामने आया कि भू-अभिलेखों में हेराफेरी कर ग्राम समाज की जमीन पर अनुसचित जाति के व्यक्तियों का कब्जा दिखाकर उन्हें मुआवजे का भुगतान भी कर दिया। लखनऊ के सरोसा-भरोसा के अलावा नटकौरा, दोना और तीन अन्य गांवों सहित एक्सप्रेस-वे से जुड़े आठ अन्य जिलों में भी इस प्रकार की गड़बड़ी की आशंका है।यह था मामलाआगरा-लखनऊ एक्सप्रेस-वे को लेकरतत्कालीन मुख्य सचिव ने मई 2013 में लखनऊ, आगरा, फिरोजाबाद, मैनपुरी, इटावा, औरैया, कन्नौज, कानपुर नगर, उन्नाव और हरदोई के जिलाधिकारियों को उत्तर प्रदेश एक्सप्रेस-वे औद्योगिक विकास प्राधिकरण (यूपीडा) को भूमि उपलब्ध करवाने के निर्देश दिए थे। उसी समय 302 किलोमीटर के एक्सप्रेस-वे का एलाइनमेंट भी जारी कर दिया गया।राजस्व अधिकारियों ने लखनऊ के सरोसा-भरोसा गांव की भूमि के गाटा संख्या-तीन की 68 बीघा से अधिक भूमि के करीब दो बीघा हिस्से पर अनुसूचित जाति के भाई लाल और बनवारी लाल को वर्ष 2007 से पहले से काबिज दिखा कर 1,09,86,415 रुपये का मुआवजा जारी कर दिया।

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