कचरे का पहाड़ खत्म करने की मुहिम तेज, MCD लाएगा 4 नए प्लांट

नई दिल्ली: दिल्ली नगर निगम (MCD) ने राजधानी को कचरे के बोझ से मुक्त करने की दिशा में बड़ा कदम उठाया है। MCD द्वारा भलस्वा, सिंघोला, ओखला और नरेला-बवाना में 5100 मीट्रिक टन प्रतिदिन की क्षमता वाले चार नए ठोस अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्र लगाए जाएंगे। कुल 361.42 करोड़ रुपये की इस परियोजना से दिल्ली में रोज पैदा होने वाले 11,500 टन कचरे का शत-प्रतिशत वैज्ञानिक निपटान सुनिश्चित होगा। सबसे बड़ी राहत यह कि अगले छह महीनों में लैंडफिल साइटों पर नया कचरा डालना पूरी तरह बंद हो जाएगा।

MCD के पास फिलहाल नरेला-बवाना (1300 टन), ओखला (1550 टन), तेहखंड (2000 टन) और गाजीपुर (1300 टन) में चार प्लांट हैं, जिनकी कुल क्षमता 6550 टन प्रतिदिन है। कुछ छोटी विकेन्द्रीकृत इकाइयों को मिलाकर भी रोजाना 4712 टन कचरा भलस्वा, ओखला और गाजीपुर की लैंडफिल साइटों पर फेंका जा रहा है। यही वजह है कि ये साइटें विशाल कचरे के पहाड़ बन चुकी हैं।

महापौर सरदार राजा इकबाल सिंह ने बताया, “परियोजना के प्रस्ताव पारित हो चुके हैं। निविदाएं आमंत्रित कर दी गई हैं। जैसे ही प्लांट चालू होंगे, लैंडफिल पर ताजा कचरा डालने की जरूरत ही खत्म हो जाएगी।” उन्होंने जोर दिया कि स्वच्छ भारत मिशन के तहत दिल्ली को साफ-सुथरा बनाने का संकल्प MCD पूरा करेगा।

2019 से चल रही बायोमाइनिंग से अब तक भलस्वा में 25 एकड़, ओखला में 10 एकड़ और सिंघोला में 7.2 एकड़ जमीन मुक्त हो चुकी है। नरेला-बवाना में अतिरिक्त 10 एकड़ उपलब्ध हैं। नए प्लांट इन्हीं मुक्त इलाकों में लगेंगे, जिससे नई जमीन की जरूरत नहीं पड़ेगी।

दिल्ली नगर निगम द्वारा प्रस्तावित चार नए अपशिष्ट प्रसंस्करण संयंत्रों में भलस्वा में 1800 टन प्रतिदिन, ओखला में 1400 टन प्रतिदिन, नरेला-बवाना में 1200 टन प्रतिदिन तथा सिंघोला में 700 टन प्रतिदिन क्षमता होगी। इन चारों संयंत्रों की संयुक्त प्रसंस्करण क्षमता 5100 टन प्रतिदिन होगी, जो वर्तमान में भलस्वा, ओखला और गाजीपुर लैंडफिल साइटों पर डाले जा रहे 4712 टन अप्रसंस्कृत कचरे को पूरी तरह कवर कर लेगी। इसके फलस्वरूप, नए संयंत्रों के चालू होने पर लैंडफिल साइटों पर ताजा कचरे का जमाव शून्य हो जाएगा। गौरतलब है कि मौजूदा चार संयंत्रों की कुल क्षमता 6550 टन प्रतिदिन है, जिसके साथ नए संयंत्र जुड़ने पर दिल्ली में दैनिक 11,500 टन कचरे के मुकम्मल वैज्ञानिक प्रसंस्करण की व्यवस्था हो जाएगी।

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