आत्मसुधार से जगत सुधार तक: 78वें निरंकारी संत समागम का भव्य समापन

समालखा: निरंकारी मिशन के 78वें वार्षिक संत समागम का सोमवार देर रात प्रेम और भक्ति के गरिमामय वातावरण में समापन हो गया। लाखों श्रद्धालुओं को संबोधित करते हुए सतगुरु माता सुदीक्षा जी महाराज ने आत्ममंथन की दिव्य शिक्षाओं पर जोर देते हुए कहा कि परमात्मा की सृष्टि हर कण में सुंदर है, बस इसे विवेकपूर्ण सदुपयोग करना चाहिए, दुरुपयोग नहीं।

सतगुरु माता ने कहा, ‘‘निरंकार दातार ने जो जगत रचा है, उसकी हर वस्तु अत्यंत खूबसूरत है। मनुष्य इसका आनंद ले, लेकिन विवेक बुद्धि जागृत रखते हुए। हर कर्म में निरंकार को शामिल करें, तभी मन की उथल-पुथल थमेगी और शांति का अनुभव होगा।’’ उन्होंने आत्ममंथन को तनाव से मुक्ति का सबसे कारगर उपाय बताया।

एक बगीचे के उदाहरण से दृष्टिकोण की शक्ति समझाते हुए उन्होने कहा, ‘‘एक व्यक्ति कांटों को देखकर परेशान होता है, दूसरा फूलों की सुंदरता में डूब जाता है। यह नजरिये का फर्क है। भक्त हमेशा सकारात्मकता अपनाते हैं, गुणों के ग्राहक बनते हैं।’’

समागम में चार दिनों तक चले कवि दरबार में 38 कवियों ने हिंदी, पंजाबी, अंग्रेजी, हरियाणवी, मुलतानी, मराठी और उर्दू में ‘आत्ममंथन’ पर कविताएं पेश कीं। बाल कवियों से लेकर महिलाओं और पुरुषों तक ने दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर दिया।

समापन सत्र में संत निरंकारी मंडल के सचिव जोगिंदर सुखीजा ने सतगुरु माता और निरंकारी राजपिता का आशीर्वाद के लिए शुक्राना अदा किया। उन्होंने साध-संगत और सहयोगी सरकारी विभागों का आभार जताते हुए कहा कि इस बार रिकॉर्ड संख्या में श्रद्धालु पहुंचे, जो मिशन की बढ़ती लोकप्रियता का प्रमाण है।

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