दिल्ली पुलिस ने 1.10 करोड़ की साइबर ठगी का किया भंडाफोड़, गोवा से ठग गिरफ्तार

लिंक्डइन के जरिए नौकरी का झांसा, फर्जी कंपनियों और दस्तावेजों से उड़ाए पैसे

नई दिल्ली: दिल्ली पुलिस की द्वारका साइबर थाना इकाई ने 1.10 करोड़ रुपये की साइबर ठगी के एक बड़े मामले का पर्दाफाश करते हुए गोवा से मुख्य आरोपी को गिरफ्तार किया है। आरोपी कुणाल सतीश हेलकर (24) ने लिंक्डइन के जरिए एक महिला और उसके परिवार को फर्जी नौकरी, कंपनी पार्टनरशिप और निवेश योजनाओं का झांसा देकर ठगा। उसने यूनेस्को इंडिया और डीडीए जैसे प्रतिष्ठित संगठनों से कथित संबंध दिखाकर जाली दस्तावेजों और फर्जी पहचान के जरिए ठगी को अंजाम दिया।

द्वारका जिले के डीसीपी अंकित सिंह ने बताया कि साइबर थाने में दिक्षा कनोजिया की शिकायत पर एनसीआरपी शिकायत दर्ज की गई। शिकायतकर्ता ने बताया कि 20 फरवरी 2024 को कुणाल ने लिंक्डइन के जरिए उनसे संपर्क कर “विजया डिजिटल कॉरपोरेशन” में डिजिटल एसोसिएट न्यूज एडिटर की नौकरी का ऑफर दिया, जिसका वेतन 45,000 रुपये बताया गया। इसके बाद, उसने प्लानर मीडिया ग्रुप, स्पीक कम्युनिटी नेटवर्क और विजया डिजिटल कॉरपोरेशन जैसी फर्जी कंपनियां बनाकर पीड़िता और उनके परिवार को ठगने का जाल बिछाया। फर्जी ऑफर लेटर, रसीदें, डीडीए फ्लैट आवंटन और इंटर्नशिप शुल्क जैसे बहानों से उसने 1.10 करोड़ रुपये हड़प लिए।

आरोपी ने खुद को कई फर्जी कंपनियों का सीईओ बताकर लिंक्डइन जैसे प्रोफेशनल नेटवर्किंग प्लेटफॉर्म का इस्तेमाल किया। उसने यूनेस्को और डीडीए जैसे संगठनों के फर्जी दस्तावेज, ईमेल और वेबसाइट बनाकर पीड़ितों का भरोसा जीता। फर्जी नौकरी, डीडीए फ्लैट, गैजेट खरीद और संदिग्ध लोन ऐप्स के जरिए पीड़ितों के बैंक खातों तक अनधिकृत पहुंच बनाई और ऋण लेकर ठगी की। वह पीड़िता के परिवार के साथ रोजाना संपर्क में रहता था और उनके घर पर सीसीटीवी कैमरे तक लगवाए थे।

द्वारका साइबर थाने ने मोबाइल नंबर, ईमेल, वित्तीय लेनदेन और डिजिटल साक्ष्यों का विश्लेषण कर जांच शुरू की। तकनीकी निगरानी और डिजिटल ट्रैकिंग के जरिए आरोपी को गोवा में छिपे होने का पता चला। पुलिस ने त्वरित छापेमारी कर कुणाल को गिरफ्तार कर लिया और जाली दस्तावेज, फर्जी ईमेल, चेक और संचार लॉग बरामद किए। पूछताछ में उसने 1 करोड़ से अधिक की ठगी की बात कबूल की।

डीसीपी अंकित सिंह ने बताया कि आरोपी को गोवा से ट्रांजिट रिमांड पर दिल्ली लाया गया है। पुलिस ठगी की रकम का पता लगाने, सह-अपराधियों की पहचान और डिजिटल साक्ष्यों की जांच कर रही है। अन्य संभावित पीड़ितों और फर्जी संस्थाओं की भी जांच की जा रही है।

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