कटखने बंदरों को लेकर इलाहाबाद हाईकोर्ट सख्त; प्रमुख सचिव से पूछा- समस्या से निपटने के लिए क्या कर रहे?

 

राष्ट्रीय जजमेंट

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने गाजियाबाद में बंदरों के आतंक पर सुनवाई करते हुए नगर विकास विभाग के प्रमुख सचिव से जवाब मांगा है. कोर्ट ने विभाग से बंदरों की समस्या से निपटने के लिए उठाए गए कदमों की जानकारी मांगी है. पूछा है कि स्थानीय निकायों ने बंदरों की समस्या से निपटने के लिए क्या कदम उठाए हैं? कोर्ट ने उनसे इस संदर्भ में हलफनामा मांगा है.यह आदेश मुख्य न्यायमूर्ति अरुण भंसाली एवं न्यायमूर्ति क्षितिज शैलेंद्र की खंडपीठ ने विनीत शर्मा व अन्य की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया है. कोर्ट ने कहा कि बैठकें की जा रही हैं और इस जिम्मेदारी को एक दूसरे पर डाला जा रहा है. जबकि, निकायों का कर्तव्य है कि वे जनता की सुरक्षा सुनिश्चित करें. कोर्ट ने यह भी कहा कि नगर निकाय नगर विकास विभाग के अधीन हैं, इसलिए उन्हें भी मामले में पक्षकार बनाना उचित है।गाजियाबाद के डीएम ने हलफनामा दाखिल कर बताया कि उन्होंने 20 अगस्त को शहरी विकास विभाग व पर्यावरण विभाग को पत्र लिखकर गाइडलाइन और एसओपी तैयार करने की सिफारिश की थी. याचिकाकर्ताओं ने बताया कि बंदरों के कारण कई जिलों में लोग परेशान हैं फसलें बर्बाद हो रही हैं और बच्चों की सुरक्षा खतरे में है.याचिकाकर्ता का कहना है कि राज्य के लगभग सभी जिलों में लोग बंदरों से परेशान हैं. भोजन के अभाव में बंदर भूखे-प्यासे रह रहे हैं. इस संबंध में हाईकोर्ट में एक याचिका दायर की गई थी. याचिकाकर्ताओं ने अदालत में कहा कि कौशांबी, प्रयागराज, सीतापुर, बरेली और आगरा समेत कई जिलों में बंदरों ने लोगों का जीना मुश्किल कर दिया है. फसलें बर्बाद हो रही हैं, स्कूलों में बच्चों की सुरक्षा चुनौती बनी हुई है. कई जगह पर लोग डर के मारे घरों में कैद रहने को मजबूर हैं.अदालत को बताया गया कि वन्यजीव संरक्षण अधिनियम से बंदरों को हटाए जाने के बाद, अब वे नगर निगमों और नगर पालिकाओं के अधिकार क्षेत्र में आते हैं. इन निकायों का कर्तव्य है कि वे जनता की सुरक्षा और सुविधा सुनिश्चित करें. याचिका में तत्काल कार्ययोजना, पशु चिकित्सालयों और बचाव वैन की व्यवस्था, बंदरों को जंगलों में पुनर्वास, भोजन की व्यवस्था और 24 घंटे हेल्पलाइन पोर्टल की स्थापना की मांग की है.

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