आगरा पनवारी कांड; 32 दोषियों को हाईकोर्ट से मिली जमानत, पांच-पांच साल की कोर्ट ने सुनाई है सजा, 35 साल पहले हुआ था जातीय संघर्ष

राष्ट्रीय जजमेंट

प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने 35 साल पुराने आगरा पनवारी कांड में जातीय संघर्ष में दोषसिद्ध 32 लोगों की जमानत स्वीकार कर ली है. यह आदेश न्यायमूर्ति शेखर कुमार यादव ने अपील करने वाले जयदेव व 31 अन्य की अर्जी पर वकील राजीव लोचन शुक्ल व सरकारी वकील को सुनकर दिया है. बता दें, 28 मई 2025 को कोर्ट ने 36 को दोषी करार दिया था. 30 मई 2025 को पांच-पांच साल की सजा सुनाई थी.

कोर्ट ने कहा कि अभियुक्तों को रिहाई की तारीख से 15 दिन के भीतर ट्रायल कोर्ट द्वारा निर्धारित जुर्माने की राशि जमा करनी होगी. वकील राजीव लोचन शुक्ल ने अपील करने वालों को झूठा फंसाए जाने की बात कहते हुए तर्क दिया कि अभियोजन पक्ष की ओर से 27 गवाहों से पूछताछ की गई है, लेकिन उनके बयानों में विरोधाभास हैं. सत्र न्यायालय ने इस पर विचार नहीं किया.
अधिकतर दोषी बुजुर्ग : उन्होंने यह भी कहा कि अपील करने वालों में अधिकतर 65 वर्ष से अधिक आयु के हैं और कई बीमारियों से पीड़ित हैं. सत्र न्यायालय ने साक्ष्यों को गलत पढ़ा और दोषी ठहराया. अभियोजन पक्ष मामले को उचित संदेह से परे साबित करने में विफल रहा. कोर्ट को बताया गया कि अपीलार्थी मुकदमे के दौरान जमानत पर थे और उन्होंने किसी भी स्तर पर जमानत का दुरुपयोग नहीं किया. सभी गत 28 मई से जेल में हैं. भविष्य में अपील की शीघ्र सुनवाई की कोई संभावना नहीं है, इसलिए अपील के लंबित रहने तक जमानत पर रिहा किए जाने के पात्र हैं.
कोर्ट ने कहा कि अपीलार्थी देवी सिंह को गत चार अगस्त के आदेश से अल्पकालिक जमानत पर रिहा कर दिया गया है. लगभग 95 वर्षीय देवी सिंह आगरा के जेल अस्पताल में भर्ती हैं. कोर्ट ने कहा कि यह ध्यान में रखते हुए कि अपील के अंतिम निस्तारण में कुछ समय लग सकता है, मामले के गुण-दोष पर कोई टिप्पणी किए बिना अपीलार्थियों को जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए.
1990 में हुआ था पनवारी कांड, बुलानी पड़ी थी सेना : 21 जून 1990 थाना सिकंदरा के गांव पनवारी में भरत सिंह कर्दम की बहन मुंद्रा की बारात आई थी. जाट बाहुल्य इस गांव में दबंगों ने बारात चढ़ने का विरोध किया. इसके बाद विवाद जातीय हिंसा में बदल गया.लोहामंडी, जगदीशपुरा, शाहगंज, सिकंदरा, अछनेरा सहित अन्य इलाकों में घटनाएं हुईं. जाट बाहुल्य गांवों में भी हिंसा हुई. खूनी संघर्ष में कई लोगों की जान भी गई. स्थिति को देखते हुए सेना के साथ ही सीआरपीएफ को बुलाया गया था. पनवारी के साथ ही आधे शहर में कर्फ्यू लगाया गया था. दंगाइयों को देखते ही गोली मारने के आदेश दिए गए थे.

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