ब्रिटेन मांगे व्यापार, भारत को चाहिए वैश्विक नेतृत्व…मोदी की लंदन यात्रा के गहरे निहितार्थ हैं

राष्ट्रीय जजमेंट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी आज लंदन यात्रा पर रवाना हो गये जहां उनकी मौजूदगी में भारत और ब्रिटेन के बीच एक ऐतिहासिक मुक्त व्यापार समझौते ) पर हस्ताक्षर किये जायेंगे। यह समझौता दोनों देशों के लिए न केवल आर्थिक दृष्टि से बल्कि राजनीतिक और रणनीतिक स्तर पर भी एक बड़ी उपलब्धि माना जा रहा है, विशेषकर उस दौर में जब वैश्विक व्यापार अमेरिका के संरक्षणवादी रुख के चलते अस्थिरता का सामना कर रहा है।हम आपको बता दें कि ब्रेक्जिट के बाद वैश्विक व्यापार में अपनी भूमिका को फिर से स्थापित करने की कोशिश कर रहे ब्रिटेन के लिए यह समझौता अब तक का सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक समझौता है। वहीं भारत के लिए यह एशिया से बाहर का पहला बड़ा मुक्त व्यापार करार है, जो उसकी वैश्विक आर्थिक भागीदारी की दिशा में एक निर्णायक कदम है। हम आपको बता दें कि प्रधानमंत्री मोदी की यह चौथी ब्रिटेन यात्रा है, जिसमें वे अपने समकक्ष कीर स्टारमर के साथ व्यापार, रक्षा, तकनीकी सहयोग और सुरक्षा जैसे विषयों पर व्यापक वार्ता करेंगे। साथ ही मोदी किंग चार्ल्स से शिष्टाचार भेंट भी करेंगे।हम आपको बता दें कि भारत ने समझौता वार्ताओं के दौरान कुछ प्रमुख बिंदुओं पर कठोर रुख अपनाया और माना जा रहा है कि कामकाजी वीज़ा, पेशेवर योग्यताओं की मान्यता तथा यूके में अस्थायी रूप से काम कर रहे भारतीयों के लिए राष्ट्रीय बीमा योगदान से छूट जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर रियायतें प्राप्त की हैं।इस प्रस्तावित समझौते की कुछ महत्वपूर्ण बातों पर गौर करें तो आपको बता दें कि इससे भारतीय निर्यात को लाभ होगा। इस समझौते के तहत भारत के 99% निर्यात— जैसे रत्न, वस्त्र, इंजीनियरिंग उत्पाद, चमड़ा, परिधान और प्रसंस्कृत खाद्य पदार्थ पर अब शून्य शुल्क लगेगा। वहीं ब्रिटिश निर्यात पर असर की बात करें तो आपको बता दें कि यूके को भारत के 90% निर्यात पर चरणबद्ध शुल्क कटौती का लाभ मिलेगा। स्कॉच व्हिस्की पर शुल्क तुरंत 150% से घटाकर 75% किया जाएगा, जो आगामी 10 वर्षों में घटकर 40% तक आ जाएगा। इसके अलावा, मेडिकल डिवाइसेज, फार्मास्यूटिकल्स, एयरक्राफ्ट पार्ट्स और इलेक्ट्रॉनिक्स पर भी शुल्क में छूट दी जाएगी। वहीं ब्रिटिश कारों पर वर्तमान में 100% से अधिक शुल्क है, जिसे अब एक कोटा व्यवस्था के अंतर्गत 10% तक घटाया जाएगा।मोदी सरकार को उम्मीद है कि यह समझौता ‘मेक इन इंडिया’ कार्यक्रम को नई गति देगा और प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) को पुनर्जीवित करेगा, जो हाल के वर्षों में धीमा पड़ा है। विश्लेषकों का मानना है कि भारत के 50 लाख से अधिक निर्यात-आधारित रोजगार इस समझौते से जुड़े हो सकते हैं। हम आपको बता दें कि भारत ने कृषि क्षेत्र को इस समझौते से बाहर रखा है, जो देश की 40% से अधिक कार्यबल को रोजगार देता है। यह एक रणनीतिक निर्णय है, जिसने अमेरिका के साथ चल रही व्यापार वार्ताओं को भी रोक रखा है। हालांकि, शराब और कारों पर चरणबद्ध शुल्क कटौती जैसे प्रावधान घरेलू उद्योगों के विरोध का कारण बन सकते हैं। हम आपको बता दें कि भारतीय शराब उत्पादक पहले ही विदेशी प्रतिस्पर्धा के “अनुचित लाभ” को लेकर चिंता जता चुके हैं।इसके अलावा, इस समझौते के तहत पहली बार ब्रिटिश कंपनियों को भारत के सार्वजनिक खरीद बाजार में प्रवेश मिलेगा, जो स्वच्छ ऊर्जा, परिवहन और अधोसंरचना क्षेत्रों में बड़ा बदलाव ला सकता है। हालांकि, वित्तीय और कानूनी सेवाओं को इस समझौते में शामिल नहीं किया गया है, क्योंकि द्विपक्षीय निवेश संधि पर वार्ता अब तक अधूरी है। साथ ही, ब्रिटेन द्वारा प्रस्तावित कार्बन बॉर्डर टैक्स (CBAM) को भी समझौते से अलग रखा गया है, जिसे भारत विकासशील देशों के साथ भेदभाव मानता है।देखा जाये तो यह मुक्त व्यापार समझौता भारत के परंपरागत संरक्षणवादी दृष्टिकोण से एक बड़ा परिवर्तन दर्शाता है। हालांकि इसकी पूर्ण रूपरेखा और प्रभाव का मूल्यांकन अंतिम दस्तावेज के सामने आने के बाद ही हो सकेगा, फिर भी यह स्पष्ट है कि भारत और ब्रिटेन अब एक दीर्घकालिक रणनीतिक और आर्थिक भागीदारी की दिशा में अग्रसर हैं।इसके अलावा, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रिटेन यात्रा केवल एक राजनयिक दौरा नहीं, बल्कि भारत-ब्रिटेन संबंधों में एक निर्णायक मोड़ के रूप में देखी जा रही है। मोदी का यह दौरा केवल व्यापार तक सीमित नहीं है बल्कि इसके रणनीतिक, भू-राजनीतिक, रक्षा और वैश्विक कूटनीतिक मायने भी हैं। हम आपको बता दें कि ब्रिटेन इंडो-पैसिफिक रणनीति में सक्रिय हो रहा है और भारत इस क्षेत्र में एक अहम शक्ति है। दोनों मिलकर चीन की आक्रामक नीतियों का सामूहिक संतुलन बनाना चाहते हैं। इसके अलावा, प्रधानमंत्री मोदी विकासशील देशों के नेतृत्व में भारत की भूमिका को आगे बढ़ा रहे हैं, वहीं ब्रिटेन इस भूमिका का समर्थन कर पश्चिमी ताकतों से संवाद के लिए भारत को एक सेतु मानता है। साथ ही दोनों देशों के बीच रक्षा उत्पादन, साइबर सुरक्षा, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और क्वांटम टेक्नोलॉजी में सहयोग की संभावनाएं हैं। यह भारत की ‘आत्मनिर्भर भारत’ नीति के अनुरूप भी है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की ब्रिटेन यात्रा दर्शाती है कि भारत अब केवल “उभरता हुआ बाज़ार” नहीं, बल्कि एक वैश्विक नीति-निर्माता बन रहा है। भारत-ब्रिटेन संबंध इस यात्रा के बाद व्यापार से आगे बढ़कर रणनीतिक साझेदारी, वैश्विक स्थिरता और तकनीकी सहयोग के नए आयामों तक पहुंच सकते हैं। प्रधानमंत्री ने लंदन यात्रा पर रवाना होने से पहले कहा भी है कि भारत और ब्रिटेन के बीच एक व्यापक रणनीतिक साझेदारी है, जिसमें हाल के वर्षों में महत्वपूर्ण प्रगति हुई है। उन्होंने कहा है कि हमारा सहयोग व्यापार, निवेश, प्रौद्योगिकी, नवाचार, रक्षा, शिक्षा, अनुसंधान, सतत विकास, स्वास्थ्य और लोगों से लोगों के संबंधों सहित कई क्षेत्रों में फैला हुआ है। उन्होंने कहा है कि मेरी ब्रिटेन के प्रधानमंत्री माननीय सर कीर स्टारमर से मुलाकात के दौरान हमें दोनों देशों की समृद्धि, विकास और रोजगार सृजन के उद्देश्य से हमारी आर्थिक साझेदारी को और मजबूत करने का अवसर मिलेगा। इस यात्रा के दौरान मैं महामहिम राजा चार्ल्स तृतीय से भी शिष्टाचार भेंट करूंगा। प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि मुझे विश्वास है कि यह यात्रा हमारे नागरिकों को प्रत्यक्ष लाभ पहुंचाएगी।

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