सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरण की मांग, फिर भी सराय काले खां रैन बसेरों में टॉयलेट–बाथरूम और फ्लोरिंग का निर्माण

नई दिल्ली: दिल्ली के सराय काले खां में रैन बसेरों को लेकर चल रहा विवाद अब नया मोड़ ले चुका है। एक ओर दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड ने रैन बसेरों के स्थानांतरण को लेकर सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है, वहीं दूसरी ओर उसी परिसर में लाखों रुपये खर्च कर बाथरूम, टॉयलेट और फ्लोरिंग का निर्माण कार्य जोरों पर है। इस विरोधाभासी स्थिति ने प्रशासन की मंशा और प्राथमिकताओं पर सवाल खड़े कर दिए हैं।

डूसिब ने आईएसबीटी के पुनर्विकास का हवाला देकर सराय काले खां के रैन बसेरों को स्थानांतरित करने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है। ये रैन बसेरे बेघर और जरूरतमंद लोगों के लिए आश्रय स्थल हैं, जो विशेष रूप से सर्दियों में उनकी जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। डूसिब का तर्क है कि इन रैन बसेरों का स्थानांतरण क्षेत्र के विकास और बुनियादी ढांचे के लिए आवश्यक है। हालांकि, इस का विरोध सामाजिक संगठनों और कार्यकर्ताओं द्वारा किया जा रहा है, जो इसे बेघर लोगों के हितों के खिलाफ मानते हैं।

2023 में भी सराय काले खां के रैन बसेरों को लेकर विवाद सुर्खियों में रहा था, जब डूसिब ने कुछ आश्रय स्थलों को हटाने की योजना बनाई थी। तब कई सामाजिक कार्यकर्ताओं ने इसे बेघर लोगों के प्रति असंवेदनशील कदम बताया था।

डूसिब की याचिका के बीच, सराय काले खां में रैन बसेरों के आसपास बाथरूम, टॉयलेट और फ्लोरिंग का निर्माण कार्य तेजी से चल रहा है। एक्स पर की गई पोस्ट्स में दावा किया गया है कि इस कार्य पर जनता के लाखों रुपये खर्च किए जा रहे हैं। यह स्थिति इसलिए सवालों के घेरे में है, क्योंकि एक तरफ रैन बसेरे हटाने की बात हो रही है और दूसरी तरफ उसी क्षेत्र में सुविधाओं का निर्माण किया जा रहा है। पोस्ट्स में दिल्ली के उपराज्यपाल, मुख्यमंत्री और मंत्री को टैग करते हुए इस मुद्दे पर जवाब मांगा गया है। हालांकि, अभी तक दिल्ली सरकार या डूसिब की ओर से कोई आधिकारिक बयान जारी नहीं किया गया है। खबर लिखे जाने तक डूसिब के रैन बसेरा संबधित कई अधिकारियों से भी संपर्क करने की कोशिश की गई पर अधिकारियों ने फोन नही उठाया।

सामाजिक कार्यकर्ता व सेंटर फॉर हॉलिस्टिक डेवलपमेंट-सीएचडी के कार्यकारी निदेशक सुनील कुमार आलेडिया का कहना है कि यदि रैन बसेरों को हटाने या स्थानांतरित करने की योजना है, तो इन निर्माण कार्यों का औचित्य समझ से परे है। जब रैन बसेरे ही नहीं रहेंगे, तो इन बाथरूम और टॉयलेट का उपयोग कौन करेगा? यह जनता के पैसे की बर्बादी है। ऐसा ही जवाहर श्रमिक स्थल पर दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश पर बने आश्रय गृहों को भी तोड़ दिए गए थे, विभाग को जानकारी थी कि दिल्ली उच्च न्यायालय के आदेश से लगभग 2 करोड़ रुपए लागत से बने आश्रय गृह को एक महीने में ही तोड़ दिया गया था। ऐसे में जवाबदेही तय होनी चाहिए।

सुनील कुमार आलेडिया ने बताया कि सुप्रीम कोर्ट में डूसिब की याचिका पर जल्द सुनवाई होने की संभावना है। यह मामला न केवल सराय काले खां, बल्कि दिल्ली के अन्य रैन बसेरों के भविष्य को भी प्रभावित कर सकता है। साथ ही, निर्माण कार्यों पर हो रहे खर्च की जांच भी होनी चाहिए।

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