सियासी हंगामों से रायता निकलता है, नतीजा नहीं: कुमार विश्वास

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‘वसंत पंचमी की शुभकामनाएं महाकवि!’ हाजी झूमते हुए आए और गले मिलने के बाद सोफे में धंस गए। मैंने लगभग उखड़ते हुए कहा, ‘यार एक तो आधी रात के बाद आए हो, वसंत पंचमी का दिन गुजर चुका। ऊपर से वसंत पंचमी के अलावा और भी कुछ है आज!’ हाजी के जवाब देने की तैयारी जिस स्तर की होती है, वैसी अगर सरकार की हो जाए तो विपक्ष पानी मांगने लगे।
बोले, ‘ऐसा है भई, मुझे लगा सुबह से जन्मदिन की बधाई समेट-समेट कर बोर हो गए होंगे, तो कुछ नया कह दिया। बाकी जन्मदिन का पता तो पूरी दुनिया को है ही। इधर वालों ने भी ट्वीट किए हैं और उधर वालों ने भी! दोनों तरफ केक काट रिए हो! मैंने कहा, ‘अमां हाजी, हर बात में सियासत न घुसेड़ो! निजी शुभकामनाओं का पक्ष-विपक्ष से क्या काम?’ हाजी नरम पड़े, ‘अरे नाराज न हो महाकवि! अच्छा जाने दो।
ये बताओ कि इतने लोग आए थे जन्मदिन पर। कुछ सर्वे-वर्वे किया? कुछ हवा का अंदाजा लगाया?’ मैंने पूछा, ‘फिर वही बात! मेहमानों से ये सब थोड़ी पूछूंगा मैं। तुम बताओ, क्या नतीजा निकला ममता दीदी के हंगामे का?’ हाजी हंसे, ‘अभी तो कह रहे थे कि मेहमानों से राजनीति की बात नहीं करते। अब मुझसे ही पूछ रहे हो। रही ममता दीदी के हंगामे की बात, तो सियासी हंगामों से रायता निकलता है, नतीजा नहीं।
अपना वाला भूल गए? वैसे अब आंदोलन में वो मजा नहीं रहा महाकवि! लोग तो कम जुटते हैं, नेता ज्यादा जुट जाते हैं। ऐसे में आंदोलन कम, शेरी नशिस्त का फील ज्यादा आता है। ऊपर से टेंट का पर-हेड बजट गड़बड़ा जाता है। अब कुछ नया सोचना होगा नेताओं को वरना कैंपेन कैसे करेंगे? वैसे प्रधानमंत्री जी का ठीक है। जहां मौका है वहां तो बोल ही रहे हैं, जहां मौका नहीं है वहां मौका बना रहे हैं। लेकिन बेचारे अकेले कितना बोलें?
उनके साथ समस्या ये है कि वो ऐसे बैंड के लीड सिंगर हैं, जिसमें गिटारिस्ट ढोल पीट रहा है, की-बोर्डिस्ट तबला ठोंक रहा है और ढोल बजाने वाला बांसुरी फूंक रहा है। अब ऐसे में जनता कान न बंद करे तो क्या करे? बताओ, जनता क्यों आए!’ मैं हाजी से और ज्यादा सुनना चाहता था, ‘तो भाई, जब जनता सुनेगी नहीं तो फैसला कैसे करेगी?’
हाजी ने लगभग माथा ठोंका, ‘एक बात बताओ महाकवि! तुम्हें लगता है कि इनमें से कोई भी नेता कुछ भी ऐसा बोल रहा है कि जिसे सुन कर इन्हें वोट देने या न देने का फैसला किया जाना चाहिए? जाने दो दोस्त। इनकी तो सुनो ही मत। बजने दो इनके भोंपू और कान में तेल डाल कर सो जाओ! वो क्या कहते तो तुम…
‘रात भर नाची नर्तकी अंधों के दरबार में’

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