तानाशाही के खिलाफ मलयालम लेखक एम टी नायर की टिप्पणी से केरल में राजनीतिक विवाद छिड़ा

राष्ट्रीय जजमेंट न्यूज

ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित मलयालम साहित्यकार एम टी वासुदेवन नायर द्वारा राजनीति में तानाशाही की आलोचना किये जाने से केरल में यह बहस छिड़ गई है कि इस टिप्पणी में मुख्यमंत्री पिनराई विजयन या प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, दोनों में से किस पर निशाना साधा गया है।

मुख्यमंत्री विजयन के आलोचकों का मानना है कि कोझिकोड में वृहस्पतिवार को एक साहित्य महोत्सव में की गई लेखक की कड़ी टिप्पणी में उनपर निशाना साधा गया है, जबकि सत्तारूढ़ मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) के नेताओं और वामपंथ समर्थक लेखकों तथा सांस्कृतिक नेताओं ने इस विचार को सिरे से खारिज कर दिया। वहीं, कुछ लोगों ने यह दावा किया है कि नायर, मोदी और केंद्र सरकार की ओर इशारा कर रहे थे।

कोझिकोड में अपने संबोधन में नायर ने मुख्यमंत्री विजयन की मौजूदगी में राजनीतिक नेताओं को आड़े हाथ लेते हुए कहा था कि कभी-कभी सत्ता प्रभुत्व स्थापित करने या तानाशाही का मार्ग तैयार कर देती है। नायर ने कहा था, ‘‘सत्ता कभी-कभी, प्रभुत्व या यहां तक कि तानाशाही का मार्ग प्रशस्त करती है। विधानसभा, मंत्रिमंडल या संसद में कोई पद अब दूसरों पर हावी होने का अवसर बन गया है। सत्ता को लोगों की सेवा करने के बेहतर अवसर के रूप में लेने का सिद्धांत दफन कर दिया गया है।’’ उन्होंने मार्क्सवादी नेता एवं केरल के प्रथम मुख्यमंत्री ईएमएस नंबूदिरीपाद की विरासत को याद करते हुए यह टिप्पणी की थी।

लेखक की टिप्पणी को लेकर व्यापक अभियान चलाये जाने से नाराज माकपा ने शुक्रवार को एक स्पष्टीकरण जारी कर कहा कि नायर की टिप्पणी विजयन या उनकी सरकार के खिलाफ नहीं है। अवसर का लाभ उठाते हुए, विपक्षी कांग्रेस ने मुख्यमंत्री पर प्रहार करते हुए कहा कि नायर ने इस बारे में कहा है कि सत्ता कैसे प्रभुत्व को जन्म देती है और लोगों को भ्रष्ट कर देती है। विपक्षी नेता वी डी सतीशन ने कहा, ‘‘पूरे राज्य में हिंसा फैलाई जा रही है, और मुझे खुशी है कि नायर जैसी शख्सियत ने इस पर प्रतिक्रिया दी है।’’

कांग्रेस के वरिष्ठ नेता रमेश चेन्नीतला ने भी उम्मीद जताई कि लेखक की टिप्पणी मुख्यमंत्री की आंखें खोल देगी। उन्होंने कहा कि आलोचना मुख्यमंत्री विजयन और प्रधानमंत्री मोदी, दोनों पर लागू होती है। उन्होंने कहा कि नायर की प्रतिक्रिया राज्य में सांस्कृतिक नेताओं के लिए एक प्रतिमान बननी चाहिए।

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