ग्वालियर नगर निगम हुआ बीजेपी मुक्त, सिंधिया भी नहीं दिला पाए जीत

ग्वालियर नगर निगम न केवल प्रदेश बल्कि देशभर में बीजेपी के कार्यकर्ताओं को अपनी पार्टी की ताकत दिखाने का पांच दशक तक उदाहरण देने का काम करता था। 57 वर्ष पूर्व जब इस निगम में जनसंघ का कब्जा हुआ था, तब देश मे यह चौंकाने वाली बात थी। तब तक देश मे कांग्रेस इकलौता सियासी ब्रांड था। जनसंघ के बमुश्किल दो-चार पार्षद जीत पाते थे। जब जनसंघ को यहां जीत मिली तो उसके बाद फिर कभी कांग्रेस इस पर काबिज नहीं हो सकी।

मिथक बन गया कि जिस दल में सिंधिया परिवार रहता है, उस पार्टी का महापौर नहीं बनता है। इस बार लगा था कि भाजपा का दावा मजबूत है। ज्योतिरादित्य सिंधिया भी भाजपा में है तो यह मिथक जरूर टूटेगा। ग्वालियर की जनता ने जो फैसला सुनाया, इससे इस मिथक पर भरोसा और मजबूत हो गया है। इस नगर निगम पर बीजेपी का साढ़े पांच दशक से भी पुराना कब्जा था और उसे हराना तो दूर कांग्रेस उसे कभी चुनौती भी नही दे पाती थी।

इस बार कांग्रेस सिंधिया मुक्त हुई तो उसने चमत्कार करते हुए नगर निगम ग्वालियर को बीजेपी मुक्त कर दिया। ग्वालियर के ऐतिहासिक नगर निगम की सत्ता पर पूरे 57 साल से भाजपा का कब्जा था। इस बार का चुनाव ख़ास था। इसकी बजह है सिंधिया परिवार। 70 के दशक से अंचल की सियासत पर सिंधिया परिवार का कब्ज़ा रहा है। खास बात ये कि सिंधिया परिवार कांग्रेस में सभी टिकट बांटता रहा है।

अब तक कभी भी ऐसा नहीं हुआ कि सिंधिया परिवार अपनी पार्टी के प्रत्याशियों के समर्थन में वोट मांगने सड़क पर उतरा हो। रोड शो किया और वोट मांगे। बावजूद यहां से पहली दफा कांग्रेस प्रत्याशी शोभा सिकरवार ने ऐतिहासिक जीत दर्ज कर ली।

इस बार राजनीतिक माहौल बिल्कुल अलग था। ज्योतिरादित्य सिंधिया भाजपा में आ चुके थे। भाजपा ने पारंपरिक तरीके से तमाम मतभेदों के बावजूद सुमन शर्मा का चयन किया। सिंधिया 66 वार्डों में से महज 18 में अपने समर्थकों को टिकट दिला सके। मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने एक चक्कर लगाया। तीनों विधानसभाओं में बैठकें कीं। केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने भी दो दिन ग्वालियर में जनसंपर्क किया। सिंधिया भी बीजेपी के समर्थन में प्रचार में जुट गए। लगा कि सिंधिया परिवार और महापौर का मिथक टूट जाएगा, पर ऐसा हुआ नहीं।

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