जानिए दोबारा यूपी के डिप्टी सीएम बनने वाले केशव प्रसाद मौर्य का अब तक का राजनितिक संघर्ष

“मैं केशव प्रसाद मौर्य उत्तर प्रदेश के उपमुख्यमंत्री के रूप में अपने कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वाहन करूंगा।” इन्हीं शब्दों के साथ 4 बजकर 23 मिनट पर केशव प्रसाद मौर्य ने दोबारा यूपी के डिप्टी सीएम की शपथ ली।
10 मार्च को यूपी के रिजल्ट के बाद सबसे ज्यादा चर्चा इसी बात की थी कि केशव को इस बार योगी की कैबिनेट में रखेंगे या नहीं? क्योंकि वह खुद अपनी सीट सिराथू पर चुनाव हार गए थे। हालांकि, केशव 25 मार्च को बाजीगर की तरह उभरे और ‌‌डिप्टी सीएम की शपथ ली।
हम आज से योगी के मंत्रियों पर एक सीरीज शुरू कर रहे हैं। इसमें हम उनके मंत्रिमंडल के सभी नेताओं की पूरी जिंदगी बारी-बारी से आपके सामने लेकर आएंगे। पहली कहानी उस नेता की जिसने बचपन में चाय बेची और अंखबार बांटें…
साल: 1978, जगह: सिराथू, कौशांबी, 9 साल के केशव पढ़ने-लिखने में ठीक थे। मां-बाप के पास उसकी पढ़ाई के लिए पैसे नहीं थे। आठ लोगों के परिवार में जैसे-तैसे घर का खर्च चलता था। उसने छोटी उम्र से ही पढ़ाई और परिवार का पेट पालने की जिम्मेदारी उठा ली।
केशव सुबह 5 बजे उठते। सिराथू से 9 किलोमीटर दूर साइकिल से जाकर पेपर बेचते। घर आते ही स्कूल में पढ़ने चले जाते। इंटरवल में जब बाकी बच्चे खेल रहे होते तो केशव भागकर अपने पिता की गुमटी पहुंच जाते।
हाथ में केतली लिए सिराथू रेलवे स्टेशन के बाहर चाय बेचकर पिता की मदद करते। ट्रेन में सवार मुसाफिरों से लेकर गुमटी पर आने वाले ग्राहकों को भी अपने हाथ से बनी कड़क चाय पिलाते थे।
बचपन से ही केशव का राष्ट्रीय सेवक संघ यानी आरएसएस से जुड़ाव था। धीरे-धीरे उनका पूरा दिन शाखा में ही बीतने लगा। अब वो चाय की गुमटी पर ज्यादा वक्त नहीं दे पाते थे।
साल 1983 में एक दिन केशव शाखा से घर आए तो उनके पिता ने काम न करने के लिए उन्हें फटकार लगाई।
परिवार को उनका शाखा में जाना पसंद नहीं था। इसी बात से तंग आकर केशव 14 साल की उम्र में घर से भागकर प्रयागराज चले गए। तब उस जगह का नाम इलाहाबाद था।

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