यूपी में जेडीयू की पिट गयी भद, सिर्फ 5 उम्मीदवार ने हजार से लाये अधिक वोट

जेडीयू के 51 घोषित उम्मीदवारों में चुनाव से पहले ही भागे थे 24 उम्मीदवार

मुकेश कुमार सिंह
पटना (बिहार) : हालिया कुछ वर्षों से बिहार के सीएम नीतीश कुमार को पीएम मैटेरियल बताया जा रहा था। अब तो राजनीतिक गलियारे में नीतीश कुमार को अगले राष्ट्रपति बनने तक की बात की जा रही है। लेकिन उत्तर प्रदेश में हुए विधानसभा चुनाव और उसके परिणाम से जेडीयू की ऐसी भद है कि पार्टी की ईज्जत तार-तार हो गयी। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में जेडीयू बीजेपी से 51 सीट माँग रही थी। लेकिन जब बीजेपी ने नोटिस नहीं लिया, तो जेडीयू ने अकेले 51 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर दी। लेकिन बेशर्मी से भरा सच जानिए कि जेडीयू को चुनाव लड़ने के लिए 51 उम्मीदवार नहीं मिल पाए।
बेहद हास्यास्पद और दिलचस्प बात यह है कि पार्टी ने जिन उम्मीदवारों को मैदान में उतारने की घोषणा की थी, उसमें से कई नामांकन करने से पहले और कई नामांकन के बाद ही भाग खड़े हुए थे। चुनाव समर में जेडीयू के महज 27 उम्मीदवार चुनावी समर में रहे। जो चुनाव मैदान में उतरे, उनमें से 80 फीसदी उम्मीदवारों को हजार वोट भी नहीं मिले। आपको उत्तर प्रदेश चुनाव से पहले जेडीयू के दावों की याद ताजा कराना बेहद जरूरी है। चुनाव से पहले जेडीयू ने बीजेपी से यूपी में सीट छोड़ने की माँग की थी।
जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह ने कहा था कि उनकी पार्टी की दावेदारी उत्तर प्रदेश की 51 सीटों पर है और जेडीयू कोटे से केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह से पार्टी ने कहा है कि वे बीजेपी तक यह माँग पहुँचा दें। लेकिन बीजेपी ने जेडीयू की किसी बात को कोई भी नोटिस नहीं लिया इसके बाद जेडीयू ने एलान कर दिया कि वह नीतीश मॉडल का उदाहरण पेश कर उत्तर प्रदेश में अपने दम पर चुनाव लड़ेगी लेकिन नीतीश मॉडल का जो हश्र हुआ, उसे देख कर चुनावी विश्लेषण में भी हँसी आ रही है। उत्तर प्रदेश चुनाव में जेडीयू ने अपने उम्मीदवारों की सूची जारी की थी। हमारे पास जेडीयू द्वारा घोषित उम्मीदवारों की सूची उपलब्ध है। अब जेडीयू और नीतीश मॉडल का उत्तर प्रदेश में चुनाव से पहले ही ऐसा हाल हुआ कि नीतीश कुमार की पार्टी की बुनियाद हिल गयी।देश का यह चुनाव था जिसमें, जेडीयू द्वारा कई सीटों पर एलान किये गए उम्मीदवारों ने नामांकन ही नहीं किया।
यानि चुनाव से पहले ही जेडीयू के उम्मीदवार भाग खड़े हुते। जेडीयू ने गोसाईगंज, बांगरमऊ, प्रतापपुर, ओरैया, भिंगा, भोगिनीपुर जैसे विधानसभा क्षेत्रों के लिए अपने जिन उम्मीदवारों के नाम का एलान किया था उन्होंने नामांकन ही नहीं किया। राबर्ट्सगंज में जेडीयू के उम्मीदवार ने नामांकन करने के बाद उसे वापस ले लिया। 51 उम्मीदवारों में सिर्फ 27 उम्मीदवार चुनावी मैदान में रहे। जब यूपी चुनाव के नतीजे आये तो, पाँव के नीचे की जमीन हिल रही थी। जेडीयू के सिर्फ पाँच उम्मीदवार को एक हजार से कुछ ज्यादा वोट मिले, बाँकि उम्मीदवारों को ड़ेढ सौ से 600 के भीतर ही वोट मिल सके। जेडीयू की सबसे अच्छी स्थिति सिर्फ एक सीट मल्हानी में रही। दरअसल जेडीयू ने वहाँ से इनामी अपराधी रहे कुख्यात धनंजय सिंह को उम्मीदवार बनाया था।
धनंजय सिंह, बाहुबल के सहारे दो बार सांसद के साथ-साथ, विधायक भी रह चुके हैं। वैसे, धनंजय सिंह उत्तर प्रदेश के सीएम योगी आदित्यनाथ के बेहद करीबी माने जाते हैं लेकिन उनकी छवि के कारण बीजेपी और योगी दोनों ने, धनंजय सिंह से पल्ला झाड़ लिया था। ऐसे में धनंजय सिंह ने जेडीयू के टिकट पर चुनाव लड़ा। वे हारे लेकिन दूसरे स्थान पर रहे। जेडीयू ने अपनी सारी ताकत झोंक दी लेकिन परिणाम बेहद नकारात्मक रहा।
दिलचस्प बात ये है कि 100-200 वोटों तक में सिमटने वाले प्रत्याशियों के लिए, पार्टी ने, कई किस्म की ताकत झोंकी थी। बिहार से जेडीयू के मंत्री, विधायक और सांसद लगातार चुनाव प्रचार में जा रहे थे। पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष ललन सिंह प्रचार कर रहे थे। के.सी. त्यागी मैनेजमेंट देख रहे थे। मजबूत माने जाने वाले उम्मीदवारों को सारी मदद दी जा रही थी। यही नहीं, चुनाव प्रचार में, उत्तर प्रदेश जाने वाले जेडीयू के सभी नेता ये दावा कर रहा थे कि यूपी में नीतीश मॉडल ही काम कर सकता है।
वैसे अंदर की बात ये भी है कि यूपी चुनाव में, जेडीयू जाति के समीकरण पर बहुत यकीन कर रहा था। पार्टी ने एक खास जाति के सबसे ज्यादा उम्मीदवार उतारे थे। गौरतलब है कि उस जाति के प्रभाव वाले क्षेत्रों में ही ज्यादातर उम्मीदवार उतारे गये थे लेकिन जनता ने इस रणनीति को सिरे से खारिज कर दिया। अब नीतीश कुमार से लेकर जेडीयू के कोई भी बड़े नेता, यूपी चुनाव परिणाम को देख कर किसी भी प्रतिक्रिया से बचते दिख रहे हैं। जाहिर तौर पर यूपी की जनता ने जेडीयू का सिर्फ नारा नहीं खोला बल्कि पूरा पायजामा ही उतार लिया।

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