जनवरी से भारत की टेंशन फिर बड़ायेगा चीन

भारत सरकार ने कहा कि यह क़ानून चीन का एकतरफ़ा रुख़ है  भारत ने कहा कि चीन इस तरह के क़ानून बनाकर दोनों पक्षों के बीच की मौजूदा व्यवस्था को बदल नहीं सकता है क्योंकि दोनों देशों के बीच सीमा विवाद का समाधान होना बाक़ी है अंग्रेज़ी अख़बार द हिन्दू ने इस ख़बर को पहने पन्ने की दूसरी लीड बनाई है  अख़बार ने अपनी रिपोर्ट में लिखा है, ‘इससे यह भी साबित होता है कि 1963 में चीन-पाकिस्तान समझौते जिसमें पाकिस्तान ने अक्साई चीन की शाक्सगम घाटी चीन के हवाले कर दी थी  उसे भी भारत ने नकार दिया है

भारत पूरे जम्मू-कश्मीर पर अपना दावा करता है जिसमें अक्साई चीन भी शामिल है और वो पाकिस्तान-चीन समझौते को अवैध बताता है

अख़बार ने लिखा है कि भारत के हाल के बयानों से संकेत मिलता है कि चीन नए क़ानून के ज़रिए विवादित इलाक़ों में इन्फ़्रास्ट्रक्चर का काम शुरू कर सकता है ताकि उसे आधिकारिक हिस्से के तौर पर दिखाया जा सके चीन ने अप्रैल 2020 के बाद से एलएसी की यथास्थिति बदल दी है. विवादित इलाक़ों में चीन पीएलए की मौजूदगी को अब नए क़ानून के ज़रिए सही ठहरा सकता है.बुधवार को भारत के विदेश मंत्रालय ने अपने बयान में कहा है

चीन ने नया क़ानून बनाने का जो एकतरफ़ा फ़ैसला किया है, उससे सीमा प्रबंधन पर मौजूदा द्विपक्षीय व्यवस्था के साथ-साथ सीमा से जुड़े सवालों पर असर पड़ सकता है. इस तरह के एकतरफ़ा क़दम को भारत स्वीकार नहीं करेगा. सीमा से जुड़े सवाल और एलएसी पर शांति बनाए रखने के लिए दोनों देशों के बीच व्यवस्था पहले से ही है और इसमें किसी भी तरह के एकतरफ़ा बदलाव को भारत स्वीकार नहीं करेगा

भारत ने कहा, ”हम ये उम्मीद करते हैं कि चीन नए क़ानून के तहत कोई क़दम नहीं उठाएगा जो कि एकतरफ़ा तरीक़े से भारत-चीन सीमा की स्थिति में परिवर्तन लाता होभारत का यह बयान चार दिनों बाद आया है. इस क़ानून की रिपोर्ट सबसे पहले चीनी मीडिया में छपी थी. विशेषज्ञों का कहना है कि चीन से ज़मीन से जुड़े भारत और भूटान दो पड़ोसी हैं जिनके साथ सीमा विवाद नहीं सुलझ पाया है और चीन नए नियमों से इस स्थिति को और उलझा रहा है.

23 अक्टूबर को चीन में नेशनल पीपल्स कांग्रेस की स्टैंडिंग कमिटी ने इस क़ानून को पास किया था. चीन की सरकारी मीडिया शिन्हुआ के अनुसार, इस क़ानून का मक़सद ज़मीन से जुड़ी सीमाओं की सुरक्षा और उसका इस्तेमाल करना है

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