न जाने किस पिनक में मोहनदास गांधी ने मुड़वारा को बारडोली का नाम दिया था । वर्तमान दौर में तो यह शहर मुरदों की बस्ती से भी गया बीता है । संवेदनायें मर सी गई हैं । अंतिम यात्राओं में भी लोगबाग व्यक्तिगत नफा नुकसान का तोलमोल कर शामिल होते हैं । खासतौर पर राजनीतिक लोग । जिनकी नजर में आदमी की कीमत एक वोट से ज़्यादा नहीं होती ।
कल तक अपनी स्वार्थ सिद्धि के लिए जिसके आगे पीछे घूमते रहते थे उसके मरते ही उसके साये से भी दूरी बनाने की बेशरम हरकत करने से भी नहीं चूकते हैं राजनीति की गटर में गिरे हुए लोग ।
ऐसा ही कुछ गत दिवस एकबार फिर देखने को मिला जब प्रकाश की अंतिम यात्रा निकली । जिस प्रकाश से अपने राजनैतिक मंच को प्रकाशित करवाने के लिए राजनैतिक लोग उनके आगे पीछे घूमते रहते थे । प्रकाश के मंच साझा करने में खुद को गौरवान्वित महसूस करने में अपनी शान समझते थे उसी प्रकाश के अलोपित होते ही क्या अहसानफरामोश लोग खुद को दफनाने में व्यस्त हो गए थे !
लगता तो यही है तभी तो साहित्यकार, राष्ट्रीय कवि नगर को राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय क्षितिज पर स्थापित करने वाले नगर का कोहनूर प्रकाश प्रलय की अंतिम यात्रा में उंगलियों पर गिने जाने से भी कम राजनीतिक लोगों की भागीदारी दिखी ।
औपचारिक संवेदनाओं का मर जाना बारडोली के लिए शुभ नहीं कहा जा सकता । सन्तोष इस बात का है जो भी आये खुद चलकर आये । दिल की गहराइयों से आये । बटोर कर नहीं लाये गए । वैसे व्हाट्सएप पर तो ॐ शान्ति ॐ की सुनामी आई हुई थी ।
अश्वनी बड़गैंया, अधिवक्ता
स्वतंत्र पत्रकार
आत्महत्या करने तिलवारा पुल से कूदा युवक
जबलपुर। नर्मदा नदी में तिलवारा स्थित बने पुल की सुरक्षा जाली को क्रास कर युवक ने आत्महत्या करने नदी में छलांग लगा दी। नदी में कूदने से पहले युवक द्वारा किए जा रहे तमाशा को देखकर नाविक सहित घाट पर खड़े लोगों ने उसे समझाने का प्रयास किया,लेकिन वह कुछ देर बाद नदी में कूद गया।

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