दिल्ली – केंद्र सरकार से नाराज हाईकोर्ट ने 490 मीट्रिक टन ऑक्सीजन सप्लाई उपलब्ध कराने के दिए निर्देश

आर जे न्यूज़-

बत्रा अस्पताल में ऑक्सीजन की कमी के चलते एक डॉक्टर समेत 12 मरीजों की मौत पर शनिवार को दिल्ली हाईकोर्ट भड़क गया। नाराज हाईकोर्ट ने केंद्र सरकार को खरीखोटी सुनाते हुए कहा कि बस बहुत हुआ, बहुत सारा पानी सिर के ऊपर चला गया है। हाईकोर्ट ने केंद्र को तत्काल राष्ट्रीय राजधानी के लिए आवंटित 490 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की सप्लाई सुनिश्चित करने के निर्देश दिए। साथ ही ऐसा नहीं होने पर कार्रवाई की चेतावनी दी। न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की खंडपीठ ने बत्रा अस्पताल में ऑक्सीजन के अभाव में मरीजों की मौत को दर्दनाक करार दिया। अदालत ने केंद्र सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा कि आपने दिल्ली को 490 मीट्रिक टन ऑक्सीजन आवंटित की थी लेकिन सब कागजों में ही है।

आपने एक दिन भी पूरी मात्रा में ऑक्सीजन सप्लाई नहीं की। दिल्ली को आज ही 490 मीट्रिक टन ऑक्सीजन सप्लाई की जाए इसके लिए चाहे कुछ भी करना पडे। एएसजी चेतन शर्मा ने खंडपीठ को केंद्र के प्रति सख्त आदेश पारित करने से मनाने का प्रयास करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी इसी मुद्दे पर विचार कर रहा है। खंडपीठ ने उनके आग्रह को खारिज करते हुए कहा कि हमें यह मत बताओ। 12 लोग मारे गए हैं, दिल्ली में मरने वाले लोगों की ओर से हम अपनी आँखें बंद नहीं कर सकते। अदालत ने कहा कि हम केंद्र सरकार को निर्देश देते है कि यह सुनिश्चित करे कि दिल्ली को अपनी 490 मीट्रिक टन ऑक्सीजन की आपूर्ति आज ही मिल जाए।

अदालत ने एएसजी से कहा अब पानी हमारे सिर से ऊपर चला गया है। अदालत ने कहा हम 490 मीट्रिक टन से अधिक नहीं मांग रहे हैं यह मात्रा आपने ही तय की है। अब इसे पूरा करने के लिए आप पर जिम्मेदार है। अदालत ने कहा यह निराशाजनक है कि एक भी दिन दिल्ली को तय मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिली। केंद्र को टैंकरों की भी व्यवस्था करनी है। ऐसा न हो कि यह केवल एक सप्ताह के लिए प्रभावी रहे। अदालत ने चेतावनी देते हुए स्पष्ट किया कि यदि आदेश का पालन नहीं हुआ तो केंद्र सरकार के संबंधित अधिकारियों के खिलाफ अवमानना कार्रवाई की जाएगी।

अदालत ने कहा कि यदि आदेश का पालन नहीं हुआ तो सोमवार को उद्योग और आंतरिक व्यापार को बढ़ावा देने के विभाग  प्रमुख सुनवाई में शामिल होंगे। इससे पहले बत्रा अस्पताल ने बताया कि चिकित्सा ऑक्सीजन की कमी के चलते आईसीयू में आए 8 रोगियों की मृत्यु हो गई। सुनवाई के दौरान अदालत ने दिल्ली सरकार से पूछा कि आखिर इस विपदा की धड़ी में आर्मी की सहायता लेने से क्यों हिचक रही है। अदालत ने कहा हमारी सेना के पास ऑक्सीजन पहुंचाने के लिए अपने साधन होते हैं और इस काम में उनको विशेषज्ञता भी है। पीठ ने कहा कि पिछले तीन दिन से हम इसके लिए आपसे (दिल्ली सरकार) कह रहे हैं, पता नहीं क्यों आप सेना की मदद लेने से हिचक रहे हैं।

इस मामले में सुझाव देने के लिए न्याय मित्र बनाए गए वरिष्ठ अधिवक्ता राज शेखर राव ने कहा कि यह उनके भी समझ से परे है कि दिल्ली सरकार ऐसे संकट के समय में थल सेना/ वायु सेना और नेवी का मदद क्यों नहीं ले रही है।दिल्ली सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता राहुल मेहरा ने कहा कि हम शीर्ष स्तर पर सेना की मदद लेने के लिए विचार कर रहे हैं। इस न्यायालय ने कहा कि इसमें विचार की क्या जरूरत है, हम (कोर्ट) आपसे तीन दिन से कह रहे हैं सेना की मदद लीजिए। सेना को सीधे संपर्क कीजिए और इस मुश्किल घड़ी में मदद की गुहार लगाएं।

अदालत ने कहा हर कोई अपने मुनाफे को उच्च रखना चाहता है, यह गैर जिम्मेदार रवैया उच्च न्यायालय ने राजधानी के सभी अस्पतालों व नर्सिंग होम के चिकित्सा अधीक्षक, प्रबंधको व निदेशकों को एक अप्रैल से भर्ती सभी कोविड-19 रोगियों का पूरा विवरण प्रस्तुत करने का निर्देश दिया है। अदालत ने कहा कि इस जानकारी में मरीज द्वारा कब्जे वाले बिस्तर की स्थिति और डिस्चार्ज की तारीख को भी दर्शाया जाना चाहिए। अदालत ने यह निर्देश निजी अस्पतालों में बेड के लिए मुंह मांगे दाम लेने के आरोप पर दिया है। न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की खंडपीठ ने कहा कि ने इसे कदाचार की श्रेणी बताते हुए कहा कि बेड खाली नहीं होने के आरोपों की समीक्षा जरूरी है। हम जानते है कि हर कोई अपने मुनाफे को उच्च रखना चाहता है, यह गैर जिम्मेदार रवैया है।

हमने इस पर विचार नहीं किया था। अदालत ने कहा कि आप इस प्रकार से 10 कमरे कम कर सकते है। यह उचित नहीं है। खंडपीठ ने मामले में अदालत की सहायता के लिए नियुक्त न्याय मित्र राजशेखर राव को अस्पतालों के लिए एक फार्मेट तैयार करने को कहा है ताकि चार दिन के भीतर उक्त जानकारी जमा की जा सके। वहीं दिल्ली सरकार ने कोर्ट को बताया है कि एक मई तक दिल्ली में कुल 20,938 कॉविड बेड हैं, जिनमें वेंटिलेटर के साथ साधारण बेड, ऑक्सीजनयुक्त बेड, आईसीयू बेड और आईसीयू बेड शामिल हैं।

राजधानी के अस्पतालों में ऑक्सीजन प्लांट नही होना गैर जिम्मेदाराना है। यह बात उच्च न्यायालय ने ऑक्सीजन किल्लत से जुड़े मामले में सुनवाई करते हुए शनिवार को कही। उच्च न्यायालय ने कहा कि अस्पतालों को मौजूदा कोरोना महामारी के दौरान आए ऑक्सीजन संकट से जुड़े अपने अनुभवों से सबक लेना चाहिए। उन्हें अपने यहां अनिवार्य तौर पर आक्सीजन संयंत्रों की स्थापना करनी चाहिए। न्यायमूर्ति विपिन सांघी और रेखा पल्ली की पीठ ने कहा कि कुछ अस्पताल, खासकर बड़े अस्पताल पैसे की बचत के दृष्टिकोण से ऑक्सीजन संयंत्रों जैसी चीजों पर पूंजी कम लगाते हैं जो एक अस्पताल में आवश्यक हैं।

दिल्ली सरकार ने कोरोना महामारी के चलते द्वारका में बनने वाले इंदिरा गांधी सुपर स्पेशिलिटी अस्पताल को जल्द शुरु करने का निर्णय लिया है। सरकार ने हाईकोर्ट को यह जानकारी देते हुए बताया कि अस्पताल में नर्सिंग व अन्य अधिकारियों की तैनानी शुरू कर दी है। न्यायमूर्ति विपिन सांघी व न्यायमूर्ति रेखा पल्ली की खंडपीठ ने द्वारका बार एसोसिएशन के अध्यक्ष वाईपी सिंह द्वारा दायर जनहित याचिका पर द्वारका के सेक्टर 9 में 1700 बिस्तर वाले इस अस्पताल को शुरू करने के बारे में स्थिति रिपोर्ट पेश करने का आदेश दिया है। अदालत ने अब सुनवाई 6 मई तय की है।

सुनवाई के दौरान सरकार ने कहा कि इसे जल्द शुरू करने का निर्णय लिया गया है। सरकार ने इस अस्पताल में नर्सिंग अधिकारी, कर्मचारियों की तैनाती के लिए आदेश भी जारी कर दिया है। इससे पहले उन्होंने बताया कि अस्पताल में बिजली की समस्या है और उसे दूर करने का प्रयास किया जा रहा है।याचिकाकर्ता की ओर से पेश अधिवक्ता यशवर्धन सोम ने खंडपीठ को बताया कि द्वारका में लाखों लोग रहते हैं, लेकिन इलाके में कोई सरकारी अस्पताल नहीं है। याचिका में कहा गया है कि इंदिरा गांधी अस्पताल बनकर तैयार है और पिछले साल मार्च में ही शुरू होना था, लेकिन आज तक नहीं हुआ।

साथ ही कहा गया है कि कोरोना महामारी में सरकार के पास बेड की कमी है, इसकी कमी से लोगों की जाने जा रही है, बावजूद इसके सरकार इस अस्पताल को शुरू नहीं कर रही है। उन्होंने कहा कि सरकार बिजली की समस्या जनरेटर से पूरी कर सकती है या फिर बिजली कंपनी को बिजली सप्लाई के लिए कह सकती है। याचिका में इस अस्पताल में वकीलों के लिए 500 बेड, न्यायिक अधिकारियों के लिए 50 और कोर्ट कर्मचारियों के लिए 150 बेड आरक्षित करने की मांग की है। याचिका में कहा गया है कि कोरोना संक्रमण से पीड़ित वकीलों, न्यायिक अधिकारियों को समुचित इलाज नहीं मिल रहा है। इसलिए इस अस्पताल में बेड आरक्षित किए जाने चाहिए।

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