जैथरा विकास खंड खुद अपने विकास के लिए मोहताज, बना भ्रष्टाचार का अड्डा

जैथरा, एटा

वर्षों से विकास की राह देख रहा विकासखंड जैथरा आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। जिस कार्यालय से करोड़ों रुपए की विकास योजनाएं संचालित होती हैं वह अपने जीर्णोद्धार की बाट देख रहा है।विकासखंड की अधिकांश इमारत खस्ताहाल है जिस भवन में बैठकर 67 ग्राम पंचायतों को स्वच्छ और सुंदर बनाने का खाका तैयार किया जाता है। उसकी खिड़की, दरवाजे, रोशनदान और छत बदहाली के शिकार हैं। विकासखंड में बना तकनीकी सहायक,रोजगार सेवक और प्रधानों के बैठने का कक्ष पूरी तरह से जर्जर हो चुका है।

जर्जर कक्ष कभी भी बड़े हादसे का कारण बन सकता है। रोशनदान, दरवाजे व खिड़कियां टूटी पड़ी हैं। शौचालय और पेशाब घर में गंदगी की भरमार है। ऐसे में गंदगी से जूझ रहे विकास खंड के अफसर कागजों में गांवों को ओडीएफ बनाने का दम भर रहे हैं। यहां काम करने वाले कर्मचारी शौचालय व सफाई जैसी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं। वर्षों से बिल्डिंग की रंगाई – पुताई तक नहीं हुई है।

कहने के लिए यहां से लगभग 67 ग्राम पंचायतों का बजट निर्धारित होता है क्षेत्र पंचायत का अपना खुद का भी एक बजट होता है परंतु विकास खंड कार्यालय के रखरखाव के लिए जो बजट आता है पता नहीं वह किस मद में इस्तेमाल किया जाता है विकासखंड जैथरा जनपद एटा की सबसे महत्वपूर्ण विकासखंड है

राष्ट्रीय जजमेंट मीडिया ग्रुप ने आगे से विकासखंड जैथरा के भ्रष्टाचार को उजागर करने के लिए कमर कस ली है यहां होने वाले भ्रष्टाचार का पर्दाफाश करना जनहित में आवश्यक हो गया है कार्यालय में बैठे सभी अधिकारियों को भी एक संदेश है कि वह या तो अपनी कार्यशैली  को बदल  ले और सरकार की मंशा के अनुरूप लोगों की समस्याओं का निस्तारण करने में तत्परता दिखाएं अन्यथा उनके भ्रष्टाचार को सरकार तक पहुंचाने का कार्य राष्ट्रीय जजमेंट मीडिया ग्रुप स्वयं करेगा

परंतु इसकी हालत को देखकर ऐसा लगता है कि शायद यह कार्यालय सिर्फ दिखावे के लिए ही बना हैअब तो यह हालत हो गए हैं विकासखंड जैथरा पर एक आदत पूर्णकालिक खंड विकास अधिकारी की भी नियुक्ति नहीं हो पा रही है वर्तमान खंड विकास अधिकारी अशोक कुमार पर दो ब्लॉक अलीगंज और जैथरा का चार्ज है वह दो जगह का चार्ज होने के कारण जैथरा ब्लॉक को ठीक से समय भी नहीं दे पाते है

ग्रामीण लोग अपनी समस्याओं को लेकर शायद ही कभी खंड विकास अधिकारी से मिल पाते हो ऐसे में आप खुद ही समझ सकते हैं कि ग्रामीणों को अपने काम कराने के लिए दलालों का सहारा लेना पड़ता है क्योंकि कर्मचारी तो मिलेंगे नहीं तो उनके अप्पू चप्पू ही काम कराने के लिए लोगों से रिश्वत लेते हैं

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