किसानो की सुनवाई न होने से परेशान बुज़ुर्ग ने खाया ज़हर, संजय गाँधी अस्पताल में इलाज के दौरान हुई मौत

आर जे न्यूज़

कृषि कानूनों के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर 56 दिन से आंदोलन कर रहे किसानों आज भी डटे हुए हैं। इस बीच एक दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है। टिकरी बॉर्डर पर मंगलवार को जहरीला पदार्थ खाने वाले किसान की देर रात संजय गांधी अस्पताल में इलाज के दौरान मौत हो गई। उसने कल मुख्य मंच के पास जहर खाया था। मृतक किसान की पहचान रोहतक निवासी जयभगवान के रूप में हुई है।

गौरतलब है कि रोहतक जिले के निवासी एक किसान ने जहरीला पदार्थ निगल लिया। सिरसा के रहने वाले एक आंदोलनकारी को मिर्गी का भयंकर दौरा आया और खून की उल्टी होने लगी। दोनों को अलग-अलग अस्पताल ले जाया गया।

रोहतक जिले की सांपला तहसील के गांव पाकस्मा के निवासी किसान जयभगवान राणा (42) कई दिन से किसानों के टीकरी बार्डर धरने पर शामिल हो रहे थे। मंगलवार शाम साढ़े चार बजे उनकी अचानक हालत बिगड़ने लगी तो पास बैठे आंदोलनकारियों ने उनको संभाला। उन्होंने बताया कि उन्होंने जहर निगल लिया है।

तुरंत एंबुलेंस बुलाई गई और राणा को दिल्ली के संजय गांधी मेमोरियल अस्पताल भेज दिया गया। अस्पताल के लिए रवाना होने से पहले पूछा गया तो उन्होंने कहा कि समस्या ये है कि दो महीने से किसान यहां बैठे हैं। जिंदा किसानों की कोई सुनवाई नहीं हो रही, हो सकता है मरने के बाद ही कोई सुन ले। इसलिए मैंने सुसाइड करने की कोशिश की है। मैं आपसे यही रिक्वेस्ट करता हूं कि मेरा शरीर पूरा होने दो।… इतना बोलते ही जयभगवान राणा को उल्टी आने लगी तो उन्हें तुरंत एंबुलेंस में लिटाकर अस्पताल रवाना कर दिया गया।

जहरीला पदार्थ निगलने से पहले जयभगवान राणा ने देशवासियों के नाम एक पत्र भी लिखा है। इसमें उन्होंने किसानों की समस्या का समाधान सुझाया है। उन्होंने कहा है कि सरकार सभी राज्यों के दो-दो किसान नेताओं से मीडिया की मौजूदगी में बात करे। अगर ज्यादा राज्यों के किसान नेता कानूनों के खिलाफ हों तो कानूनों को रद्द कर दिया जाए और ज्यादा राज्य कानून के हक में हैं तो किसान अपने आंदोलन को खत्म कर घर चले जाएं।

जयभगवान राणा द्वारा जहरीला पदार्थ निगलने से पहले मंगलवार सुबह सिरसा जिले के गांव साहूवाला के किसान हरप्रीत सिंह को मिर्गी का दौरा आ गया। उन्हें खून की उल्टी भी लगी। हालत बिगड़ने पर उन्हें पहले धरने के निकट ही एक चिकित्सा कैंप में ले जाया गया और उसके बाद बहादुरगढ़ शहर के एक निजी अस्पताल भेज दिया गया।

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