तालाबों के जीर्णोद्धार की कहानी, पोंडमैन रामवीर तँवर की ज़ुबानी

राष्ट्रीय जजमेन्ट, नई दिल्ली,30, दिसम्बर,2020।

आइये मिलें पोंडमैन के नाम से मशहूर श्री रामवीर तँवर जी से जो कि ग्रेटर नोएडा, उत्तर प्रदेश में स्थित डाढ़ा गाँव के निवासी हैं। रामवीर तँवर एक किसान परिवार के पहले ऐसे सदस्य हैं जिन्होंने दसवीं कक्षा के बाद भी पढ़ाई जारी रखी। इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी करने के बाद एक मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब करना शुरु किया लेकिन दो साल बाद नौकरी छोड़कर तालाबों को बचाने की मुहिम में जुट गए। से अर्थ एनजीओ के फाउंडर रामवीर तँवर वर्तमान समय में पर्यावरणविद एवं विभिन्न कॉरपोरेटस व एनजीओ के साथ कंसल्टेंट की तरह सेवा दे रहे हैं।

बच्चों के समक्ष तालाबों का जिक्र आते ही उनके दिमाग में कुछ सुंदर तस्वीरें उभरने लगती हैं। ये वही तस्वीरें है जो उन्होंने अपनी किताबों में देखी हैं। तालाब का मतलब समझाने के लिए किताबों में बड़े सुंदर से तालाब की तस्वीर छापी जाती है जिसमें पीने योग्य साफ पानी में कुछ कमल खिले हुए दिखाई देते हैं, चारों तरफ पेड़ और पास में एक सुंदर झोपड़ी के पीछे से उगता हुआ सूरज नजर आता है। इन्ही बच्चों को यदि भारत के गाँवों में कूड़ाघर बन चुके तालाबों का दौरा कराया जाए तो मन दुखी होना लाज़मी है। एक पुरानी कहावत है कि आवश्यकता आविष्कार की जननी है। मन दुखी कर के सरकार को कोसने के अलावा हम अपने स्तर पर क्या कर सकते हैं इसी सवाल की खोज ने मुझे यँहा ला कर खड़ा कर दिया है। प्रत्येक वर्ष अपने पिछले कार्य में हुई गलती से कुछ सिख कर उसे सुधारने की यात्रा पर हूँ ।

गाँवों में बने ऐतिहासिक तालाबों की यात्रा पर यदि आप निकल जाएं तो महसूस होगा मुश्किल ही कोई तालाब बचा हुआ है जिस पर आंशिक अथवा पूर्ण रूप से अतिक्रमण ना किया गया हो। अतिक्रमण का मुख्य कारण है ज़मीन की बढ़ती कीमतों के कारण लोगो में लालच का पनपना और प्रसाशन की निष्क्रियता। देश की आबादी जिस तरह विस्फोटक ढंग से बढ़ रही है उसी अनुपात में रिहायशी ज़मीन की कीमतों में उछाल आया है। गाँव में पिछली पीढ़ियों के ज़मीन दान करने के किस्से आज तक हमें सुनाए जाते हैं लेकिन आज की पीढ़ी के क़िस्से ज़मीन कब्जाने के लिए सुनाए जाएँगे। ऐसी सार्वजनिक संपत्तियों में तालाब सबसे ज्यादा कब्जाए गए हैं। ऐसा नहीं है कि तालाबों पर सिर्फ ग्रामीणों ने अथवा बिल्डरों ने क़ब्ज़ा किया है कई जगह सरकारी बिल्डिंग जैसे पुलिस थाना/बिजली घर भी तालाब की ज़मीन पर बने हुए दिखते हैं।

जितने भी तालाब हमने पुनर्जीवित किये उनमें से अधिकतर वर्षों से इकठ्ठा हुए कूड़े के कारण दलदल का रूप ले चुके थे और ऊपर से इयुट्रोफिकेशन की वजह से विभिन्न प्रकार की जलकुंभी से अटे पड़े थे। ऐसे तालाबों में सबसे बड़ी चुनौती होती है एक्सपर्ट लेबर की जो इन तालाबों में घुस सके क्योंकि कोई भी साधारण व्यक्ति यह नहीं कर सकता। ऐसे तालाबों में सांप भी बड़ी संख्या में पाए जाते हैं इसलिए एक्सपर्ट लेबर के पास उनसे बचने का और कई बार सांप से डसने के बाद उपचार का भी ज्ञान होना चाहिए। शुरुआत में ऐसी लेबर मिलना बहुत मुश्किल था लेकिन अब हमारे पास लगभग 25 गोताखोरों की टीम है जो किसी भी गहरे और दलदल भरे तालाबों से निपट सकते हैं।

Pondman Ramvir Tanwar, the story of the renovation of the ponds

आप किसी गाँव में जा कर बिना ग्रामीणों के समर्थन के तालाब पुनर्जीवित नही कर सकते। यदि एक ठेकेदार की तरह आपने कर भी दिया तो उसका कोई फायदा नही क्योंकि जिनके लिए तालाब को पुनर्जीवित किया जा रहा है यदि उन्हीं का सहयोग नही लिया जा रहा और भविष्य में रखरखाव के लिए कोई परियोजना नही बनाई गई है तो अगले वर्ष तालाब पुनः आपको उसी स्थिति में मिलेगा या यूं कहें कि सिर्फ सरकार अथवा कॉरपोरेट का पैसा व्यर्थ ही जायेगा। इसलिए तालाब पर कार्य शुरू होने से पहले हम जल चौपाल के माध्यम से लोगो का सहयोग व समर्थन जुटाने का प्रयास करते हैं। ग्यारह या इक्कीस लोगो की एक समिति बनाई जाती है जिसको कार्य मे आने वाली अड़चनें दूर करने की ज़िम्मेदारी दी जाती है। इस तरह तालाब को आसानी से पुनर्जीवित किया जा सकता है।

सोशल मीडिया के जमाने में यदि यूथ का समर्थन चाहिए तो उन्हें उसी प्लेटफॉर्म के माध्यम से जोड़ना जरूरी है। माननीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मुहिम से प्रेरणा ले कर हमने भी #selfiewithpond नामक ऑनलाइन मुहिम चलाई। इस मुहिम का मुख्य उद्देश्य यूथ को तालाबों की वर्तमान हालात से रूबरू कराना था। एक जिले से शुरू हो कर यह मुहीम पूरे देश में फैल गई। युवाओ को एहसास हुआ कि वो तालाब जो बचपन में साफ-सुंदर दिखते थे अब कूड़ाघर बन गए हैं। काफी लोगो ने इस बात से चिंतित हो कर हमें संपर्क करने के अलावा ज़िला प्रसाशन को भी शिकायत लिखी और काफी बड़ी संख्या में शिकायतों के निस्तारण हेतु कार्यवाही देखी गई।

हम जैसे सैकड़ो साथी जो तालाबों के लिए कुछ करना चाहते हैं कई बार फाइंडिंग नही मिलने के कारण निराश हो जाते हैं। सामान्य तौर पर गंदे पानी को साफ करने के लिए एसटीपी निर्माण का सुझाव दिया जाता है। लेकिन एसटीपी के लिए करोड़ो रूपये का निर्माण बजट व लाखों रुपये के मेंटेनेंस बजट की जरूरत होती है जो कि हमें कभी नही मिल पाता। गन्दे पानी को तालाब में सीधे गिरने के बजाय हमने इन्टरसेप्टिंग चैम्बर व मिनी पोंड की मदद से फिल्टरेशन सिस्टम बनाया।इस विधि से पानी पीने या स्नान योग्य तो ट्रीट नही हो पाता लेकिन तालाब में पानी के साथ ऑर्गेनिक वेस्ट जाना बंद हो जाता है। और इसी वजह से दल-दल बनना व इयुट्रोफिकेशन होना कम हो जाता है।

रिपोर्ट:- भावेश पिपलिया संवाददाता दिल्ली

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More