जागरूकता और आधुनिकता ही पराली दहन का समाधान

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गोसाईगंज ब्लॉक के किसान हुए जागरूक
राजधानी लखनऊ के गोसाईगंज ब्लॉक के ग्राम बहरौली के बड़े किसान प्रवीण सिंह बताते हैं कि हैप्पी सीडर मशीन, पैडी स्ट्रॉ चॉपर किसानों की समस्या का सबसे अच्छा समाधान है। मूलतः ये मशीन ट्रैक्टर की सहायता से कार्य करते हैं और धान की पराली को छोटे टुकड़ों में काट देतें हैं जो मिट्टी में सड़-गलकर खाद के रूप में परिवर्तित हो जाते हैं। हैप्पी सीडर धान की पराली को काट देता है और पूरे खेत में उसे सामान रूप से बिछा देता है जिससे गेहूँ की बुआई में कोई परेशानी नहीं आती है। सीडर और चॉपर का इतिहास भारत में बहुत पुराना है। ये अमरिका और ऑस्ट्रेलिया में प्रचलित मशीनों से मिलते-जुलते हैं और इनकी कीमत दो से तीन लाख तक रुपए होती है इस पर भारत सरकार द्वारा सब्सिडी छूट भी उपलब्ध होती है
कृषि यंत्रों पर सब्सिडी का लाभ लेकर बिक्री कर देते हैं बड़े किसान-:
भारत सरकार द्वारा अनेकों किसान हित की योजनाएं चलाई जा रही हैं लेकिन कुछ बड़े किसानों ने इसको व्यापार भी बना रखा है पैडी स्ट्रॉ चॉपर एक ऐसा यंत्र है जो ट्रैक्टर के साथ काम करता है और पराली को भूसे की तरीके काटकर खेत में फैला देता है और सड़ने पर यही भूसा उर्वरक बन जाता है 2020 में 50% सब्सिडी छूट के साथ भारत सरकार पैडी स्ट्रॉ चॉपर किसानों को उपलब्ध करा रही है 2019 में पैडी स्ट्रॉ चॉपर पर 80% की सब्सिडी छूट भारत सरकार द्वारा निर्धारित की गई थी तब बड़े किसानों ने सब्सिडी छूट का लाभ लेते हुए काफी कृषि यंत्र खरीदे थे आज सब्सिडी छूट प्राप्त किए हुए कृषि यंत्रों में मात्र 20% लोग ही अपने यंत्रों को सुरक्षित रख पाए हैं 80% किसानों ने या तो यंत्रों को बेच दिया है या सिर्फ कागजों पर  मिलीभगत करके सब्सिडी प्राप्त कर ली है
खतरनाक: खेतों में जलाई जा रही पराली से शहरों की आबोहवा में घुल रहा जहर-:
नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने भी पर्यावरण हित और किसानों के हित में उक्त चारों राज्यों में पराली जलाने पर वर्ष 2015 दिसम्बर मे ही रोक लगा दी थी और सरकार को आदेश दिया गया था कि किसानों को मशीनों पर सब्सिडी दी जाए, उन्हें जागरूक किया जाये, जिससे वह पराली को जलाने के बजाए उचित निस्तारण कर सकें। साथ ही नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने आदेश दिया था की जो किसान फ़सल जलाते हुए पाए जाएँ उन पर फाइन लगाया जाए। लेकिन इन आदेश का पालन सरकार ठीक से नही कर रही है जिससे लगातार पराली जलाई जा रही है और प्रदूषण बढ़ रहा हैं।
सरकार किसानों को नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल के आदेश के अनुसार जरुरी मदद दिए बगैर ही किसानों पर फाइन कर रही है जिससे किसान की समस्या बढ़ रही है। बिना सरकार को मदद के कृषि अवशेषों का पर्यावरण हितैषी निस्तारण करना किसानों के लिए मुश्किल है। ऐसे में सरकार को फाइन के आलावा दुसरे रोकथाम के पहलुओं पर कार्यवाही करनी चाहिए जैसे किसानों की आर्थिक मदद की जाए साथ पराली के निस्तारण के लिए किसानों से सलाह लेकर एक ठोस निति बनाई जाए।
फसल अवशेष को जलाएं नहीं, उससे बनाएं जैविक खाद-:
प्रदूषण के बहुत से कारण है, लेकिन उनमे से एक कारण खेतों में जलने वाले कृषि अवशेष/पराली/स्ट्रॉ बर्निंग भी है। इसलिए ही सर्दियों में सबका ध्यान किसानों की तरफ जाता है क्योकि उन दिनों पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश एवं राजस्थान में धान की फसल की कटाई शुरू हो जाती है और ज्यादातर किसानों द्वारा उस पराली (धान के स्ट्रॉ को पराली कहां जाता हैं, लेकिन आमतौर पर गेहू एवं धान दोनों के स्ट्रॉ को भी पराली बोल दिया जाता हैं) को खेत मे ही जलाना शुरू कर दिया जाता है।
सरकार की ‘खेत क्लीनिंग’ योजना-:
किसानों से बात करने पर पता चला है कि सबसे ज्यादा जोर फसल अवशेष को जलाने पर वर्ष 1998-99 के आसपास से शुरू हुआ है। क्योंकि उस दौरान सरकार की ओर से कृषि वैज्ञानिकों ने गाँव-गाँव में कैम्प लगाकर किसान मेले में स्टाल लगाकर किसानों को जागरूक किया था कि फसल काटने के बाद जल्द से जल्द खेत की सफाई करें। ऐसा करने से दूसरी फसल की पैदावार बढ़ेगी और फसल को नुकसान पहुँचाने वाले कीट मर जायेंगे, हालांकि वैज्ञानिकों की इसके पीछे की मंशा ठीक थी लेकिन उसका प्रभाव विपरीत हो गया, जिसका असर ये बताया गया कि किसानों ने फसल काटने के बाद बचे अवशेषों को जलाकर खत्म करना शुरू कर दिया। यह सभी खेत क्लीनिंग योजना के तहत हो रहा था।
खेत की जल्द से जल्द सफाई-:
वर्ष में दो बार सबसे प्रमुख तौर पर आसपास के राज्यो में कृषि अवशेष/पराली जलाई जाती है। अप्रैल में गेहूं की एवम मध्य सितम्बर के बाद धान की फ़सल उठाई जाती हैं इस दौरान ही पराली जलाई जाती हैं। धान जिसके तुरंत बाद गेंहू की फ़सल की बुआई करनी होती है, उसके लिए खेत साफ़ होना चाहिए तभी आगे की बुआई अच्छे से हो पाएगी। यदि धान की फ़सल की पराली को खेत मे ही छोड़ दिया जाता है तो उसे गलने में काफ़ी समय लगेगा और उससे दूसरी फ़सल में समस्या आएगी हालांकि इस पराली को बायो कम्पोस्ट के माध्यम से खाद बनाकर खेत मे डाला जाए तो यह खेती के लिए अमृत है इससे अगली फसल बिना बजारू पेस्टिसाइड और खाद अच्छी हो सकती है। लेकिन कई किसान जानकारी के अभाव में अगली फ़सल के उद्देश्य से इसे जला कर ख़त्म करना पसंद करते हैं।
भृम-पराली जलाने से खेत की उपजाऊ शक्ति बढ़ेगी-:
बताया जाता हैं की पिछले कुछ वर्षो में किसानों में एक भृम फैल गया है की पराली जलाने से खेत की उपजाऊ शक्ति बढ़ती है। जबकि इससे कोई ख़ास लाभ नही होता है बल्कि उल्टा नुकशान होता है। खेत मे किसान मित्र कीट जैसे केंचुआ आदि मर जाते हैं साथ ही खेत की नमी कम हो जाती है जिसका सीधा प्रभाव खेत की उपजाऊ ताकत पर पड़ता है। इसलिए किसानों को जागरूक करने की जरूरत है कि पराली जलाने से खेत की शक्ति कम होती है न कि बढ़ती है।
पहरेदार भी है जागरूक और जिम्मेदार -:
थाना क्षेत्र के अंतर्गत किसी किसान पर पलारी जलाने की कार्यवाही नहीं हुई-
सचिन कुमार सिंह (प्रभारी निरीक्षक) थाना-अंसल सुशांत गोल्फ सिटी,लखनऊ
किसी किसान के विरुद्ध पराली जलाने का मुकदमा दर्ज नहीं हुआ है
वीरेंद्र कुमार सोनकर(प्रभारी निरीक्षक) थाना- नगराम लखनऊ
पर्यावरण सुरक्षा हम सबकी जिम्मेदारी-:
पराली जलाने जैसे गंभीर विषय को देखते हुए किसानों को जागरूक करने के लिए काफी गांव में प्रधान एवं पंचायत सचिव और जिला कृषि रक्षा इकाई के माध्यम से गांव मे चौपाल की और किसानों को पराली जलाने की पर्यावरण हानि के बारे में बताया एवं गोसाईगंज ब्लॉक के जौखंडी गांव मे भारत सरकार द्वारा मल्चर, सुपर सीडर और रोटरी थ्रेशर जिनकी कीमत लगभग 5 लाख रुपए है कृषि यंत्र पंचायत को उपलब्ध कराया गया है और ब्लॉक गोसाईगंज के अंतर्गत अभी तक पराली जलाने की कोई शिकायत नहीं मिली है
भोलानाथ कनौजिया,खंड विकास अधिकारी,गोसाईगंज लखनऊ
राघवेंद्र सिंह संवाददाता राष्ट्रीय जजमेंट लखनऊ

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