इस सदी के अंत तक देश के तापमान में 4 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा की वृद्धि का अनुमान

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नयी दिल्ली:

जलवायु परिवर्तन का देश पर प्रभाव से संबंधित एक सरकारी रिपोर्ट के मुताबिक-

इस सदी के अंत तक भारत के औसत तापमान में 4.4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होने के साथ ही,

लू की तीव्रता तीन से चार गुना बढ़ जाने का पूर्वानुमान है।

पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक –

1901 से लेकर 2018 के दौरान भारत के औसत तापमान में 0.7 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हुई है।

और इसकी मुख्य वजह ग्रीन हाउस गैसों की वजह से बढ़ी गर्मी है।

इस रिपोर्ट को विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्री हर्ष वर्धन द्वारा मंगलवार को प्रकाशित किये जाने की उम्मीद है।

यह रिपोर्ट -पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के पुणे स्थित भारतीय उष्णकटिबंधीय मौसम विज्ञान संस्थान के तहत आने वाले जलवायु परिवर्तन अनुसंधान केंद्र ने तैयार की है।

रिपोर्ट में कहा गया-

“21वीं सदी के अंत तक भारत के औसत तापमान में करीब 4.4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी का पूर्वानुमान है।”

देश में 1986 से 2015 की 30 साल की अवधि के दौरान वर्ष के सबसे गर्म दिन और सबसे ठंडी रात के तापमान में क्रमश: करीब 0.63 डिग्री सेल्सियस और 0.4 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी हो चुकी है।

रिपोर्ट के मुताबिक –

इस सदी के अंत तक सबसे गर्म दिन और सबसे सर्द रात के तापमान में क्रमश: करीब 4.7 डिग्री सेल्सियस और 5.5 डिग्री सेल्सियस की बढ़ोतरी होने का पूर्वानुमान है।

इसमें कहा गया कि -गर्म दिन और गर्म रातों की आवृत्ति के क्रमश: 55 और 70 प्रतिशत बढ़ने का पूर्वानुमान है।

रिपोर्ट में कहा गया,-

“गर्मी (अप्रैल-जून) में भारत में चलने वाली लू की आवृत्ति 21वीं सदी के अंत तक तीन से चार गुना ज्यादा होने की उम्मीद है।”

रिपोर्ट में कहा गया कि –

उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर की समुद्री सतह का तापमान 1951 से 2015 के बीच औसतन एक डिग्री सेल्सियस बढ़ गया,

जो इस अवधि के वैश्विक औसत 0.7 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा है।

उत्तरी हिंद महासागर का जलस्तर 1874 से 2004 के बीच प्रतिवर्ष 1.06 से लेकर 1.75 मिलीमीटर की दर से बढ़ा,

जबकि बीते ढाई दशक (1993 से 2017) में इसके बढ़ने की दर 3.3 मिलीमीटर प्रतिवर्ष रही,

जो वैश्विक माध्य समुद्र तल वृद्धि के बराबर है।

रिपोर्ट के मुताबिक-

उत्तरी हिंद महासागर में समुद्र तल का स्तर करीब 300 मिलीमीटर बढ़ जाएगा।
रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में मानसून के मौसम (जून से सितंबर) में भी 1951 से 2015 के बीच करीब छह प्रतिशत की कमी आई है ।

और सबसे ज्यादा नुकसान गंगा के मैदानी इलाकों और पश्चिमी घाटों को हुआ है।

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