दिल्ली से बेगूसराय पैदल जाते हुए भूख से मजदूर की मौत

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वाराणसी, Rashtriya judgement। दिल्ली से पैदल बेगूसराय के ​लिए निकले रामजी महतो की बनारस पहुंचते-पहुंचते सांसें उखड़ गयीं, उनके शरीर ने उनका साथ छोड़ दिया। यह घटना 16 अप्रैल की है। मगर उनकी बहन और मां उनकी लाश ले जाने में इसलिए असमर्थ थे, क्योंकि इस गरीब-मजदूर परिवार के पास लॉकडाउन की त्रासदियों के बीच एक भी फूटी कौड़ी नहीं थी।
हालांकि बनारस के रोहनिया चौकी इंचार्ज गौरव पांडेय ने रामजी महतो के परिजनों को आर्थिक मदद देने की बात कही, मगर लॉकडाउन के बीच दोनों बनारस तक पहुंचें कैसे यह बड़ी परेशानी थी। रामजी की मां और बहिन ने उन्हें बताया कि उनके रिश्तेदार बनारस में ही रहते हैं और वह पोस्टमार्टम के समय पहुंचेंगे। हालांकि गुरुवार 16 अप्रैल की देर रात तक रोहनिया थाने की पुलिस ने किसी से संपर्क नहीं किया और जब पुलिस ने उनसे संपर्क साधा तो मौत की बात सुनते ही फोन स्विच आफ कर दिया, जिस कारण पुलिस को ही परिजनों और रिश्तेदारों की अनुपस्थिति में रामजी का अंतिम संस्कार करना पड़ा।
Rashtriy judgement से हुई बातचीत में रोहनिया चौकी इंचार्ज गौरव पांडे कहते हैं, हमने पूरी कोशिश की कि रामजी के परिजन ही उनकी अंत्येष्टि करें, मगर जब वो लोग नहीं आ पाये तो हमने आज 20 अप्रैल की शाम को पोस्टमार्टम के बाद उनका अंतिम संस्कार कर दिया। अभी रामजी का अंतिम संस्कार करके ही लौटा हूं। रामजी महतो के मामले में शक जताया जा रहा था कि शायद वह कोरोना पॉजिटिव हो, मगर उसकी रिपोर्ट नेगेटिव आयी है।’
 वहीं रोहनिया थाने के एसएचओ पीआर त्रिपाठी ने RJ से हुई बातचीत में कहा, ‘जब पैदल चल रहा रामजी महतो गिरा तो उसकी सांसें तेज चल रही थीं। लोगों ने एंबुलेंस को फोन किया, मगर एंबुलेंस कर्मियों ने उसे हाथ नहीं लगाया। एंबुलेंस कर्मियों का कहना था कि क्या पता रामजी कोरोना संदिग्ध हो और उनके पास सुरक्षा किट भी नहीं है। रामजी सड़क पर तड़पता रहा, उसके बाद मौके पर पहुंचे मोहनसराय चौकी प्रभारी ने एंबुलेंस कर्मियों को फटकारा और उसे अस्पताल की तरफ ले गये, मगर तब तक रामजी की मौत हो चुकी थी।’
इस मामले में रामजी महतो की बहन नीला देवी कहती है, मेरा भाई फोन पर कह रहा था कि उसे भूख नहीं लग रही है, घर आ रहा हूं। रामजी की बहन नीला देवी ने मोहनसराय चौकी इंचार्ज को फोन पर बताया कि वह पानी सप्लाई करने वगैरह की कोई गाड़ी चलाता था। 3 दिन पहले यानी 13 अप्रैल को फोन कर कहा था कि बहन तबीयत ठीक नहीं लग रही है। भूख भी नहीं लग रही है, तो हमने उससे कहा था कि लॉकडाउन में मत आना। वहीं सरकारी अस्पताल में डॉक्टर को दिखाकर इलाज करा लेना। मगर उसने हमारी बात नहीं मानी और पैदल ही घर के लिए निकल पड़ा।
 पुलिस द्वारा दिखायी गयी इंसानियत पर बीएचयू के पूर्व प्रोफेसर चौथी राम यादव उसका शुक्रिया जताते हुए कहते हैं, ‘लॉकडाउन गरीब मजदूरों पर कहर बनकर टूट रहा है। लॉकडाउन में काम धंधे ठप हैं, यातायात बन्द है, ऐसे में ज्यादातर कामगर भूखे प्यासे सैकड़ों किलोमीटर का सफर पैदल ही तय कर रहे हैं। ये हैं रामजी महतो जो दिल्ली से चलकर बेगूसराय जाते समय बनारस पहुंचते पहुंचते हाईवे पर मूर्छित हो गिर पड़े, सांसें चल रही थीं, लेकिन लोग तमाशबीन बने रहे। यह तो भला हो मोहन सराय चौकी इंचार्ज गौरव पांडेय का जो सूचना पाकर पहुंचे और तुरंत एम्बुलेंस बुलाकर भरसक जान बचाने की कोशिश की, लेकिन रामजी ने बीच में ही दम तोड़ दिया। परिवार वालों ने आर्थिक तंगी के चलते आने से मना कर दिया। गौरव पांडेय की संवेदनशीलता सराहनीय है।’
 प्रवासी मजदूर रामजी महतो की मौत होने के बाद उसकी मां और बहन ने बनारस आकर शव लेने में असमर्थता जताई और कहा कि हमारे पास न पैसा है और न ही साथन, हम बनारस कैसे पहुंचेंगे, तो चौकी इंचार्ज ने आर्थिक मदद देने की बात कही, मगर वह लॉकडाउन के चलते नहीं आ पाये और कहा कि हमारे रिश्तेदार पोस्टमार्टम के बाद पहुंच जायेंगे अंत्येष्टि के वक्त, मगर जब पुलिस ने रामजी के रिश्तेदार को फोन किया तो उन्होंने मौत की बात सुनते ही मोबाइल फोन स्विच ऑफ कर दिया।
इस घटना को लेकर पुलिस के रवैये की तारीफ हो रही है, खासकर चौकी इंचार्ज गौरव पांडे द्वारा दिखायी गयी इंसानियत की। जब एक मजदूर सड़क पर तड़प र​हा था और एंबुलेंस वाले उसे हाथ तक नहीं लगा रहे थे तो उन्होंने आगे बढ़कर मदद की और उसे अस्पताल के लिए ले गये, मगर बीच में ही रामजी की मौत हो गयी।
हालांकि देशभर से पुलिस द्वारा की जा रही अमानवीयता और निर्ममता की भी कई तस्वीरें सामने आ रही हैं, खासकर यूपी ​पुलिस की अमानवीयता की तो कोरोना ​लॉकडाउन के बीच खासी निंदा हो रही है, मगर रोहनिया पुलिस चौकी इंचार्ज की यह इंसानियत उम्मीद जगाती है कि इंसानियत अभी जिंदा है।

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