देश की वर्तमान आपातकाल स्थिति में देश के गृहमंत्री का गायब होना संयोग है या नाराजगी?

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  राकेश भदोरिया कहिन-

Rakesh bhadauriya

आपने अमित शाह जी को टीवी स्क्रीन पर पिछली बार कब देखा था?
आखिर अचानक लाइम लाइट और टीवी और अखवारों से क्यों गायब हो गए अमित शाह ?
पिछले कुछ महीनों से जब से कोरोना का शोर शुरू हुआ है मैंने एक बात पर गौर किया है कि भारत के ग्रह मंत्री अमित शाह लगभग लगभग देश के परिदृश्य में गायब से हो गए है?
इस दरम्यान शायद ही किसी ने भारत के लौह पुरुष कहे जाने वाले सबसे ताकतवर ग्रह मंत्री और हर मोर्चे पर वर्तमान बीजेपी के संकट मोचक रहे अमित शाह को देश की किसी बडी भूमिका में टीवी में या किसी सार्वजनिक कार्यक्रम में देखा हो।
एक दौर था जब प्राधान मंत्री नरेंद्र मोदी जी ने राजनाथ सिंह जी का राजनीतिक कद छोटा करते हुए अमित शाह को ग्रह मंत्री का पद नवाजकर उन्हें राजनीतिक ऊंचाइयां प्रदान की थी।
अमित शाह को इतना ताकतवर बनाया था कि जम्मू कश्मीर की धारा 370 और 35 ए हटाने और बहुत हद तक अयोध्या में राम मंदिर निर्माण का कानूनी लड़ाई के माध्यम से मार्ग प्रशस्त करने का श्रेय भी अमित शाह को दिया गया था।
अमित शाह उस समय देश के हीरो बन गए थे।
उस समय अमित शाह यकायक भारतीय राजनीति के सबसे ताकतवर स्तंभ माने जाने लगे।
यही वो समय था जब चिंतनशील लोगों ने कहना शुरू कर दिया था कि शायद नरेन्द्र मोदी अब इसके बाद तीसरा चांस नही लेना चाहते
और अपने उत्तराधिकारी के रूप में अमित शाह को तैयार कर दिया हैं। माना तो यह भी जाने लगा था कि अमित शाह ही भारत के अगले प्रधानमंत्री होंगे।
अमित शाह और नरेंद्र मोदी की अकाट्य जुगलबंदी और अमित शाह के नेतृत्व में बीजेपी को देश मे मिली अपार सफलता के कारण अमित शाह राष्ट्रीय राजनीति के फलक पर स्थापित हो गए थे
और नरेंद्र मोदी के बाद वे ही निर्विवाद रूप से सबसे ताकतवर नेता थे।
परंतु पिछले कुछ महीनों से अचानक हुए परिवर्तन के तहत अमित शाह के राष्ट्रीय राजनीतिक फलक से लगभग अदृश्य हो जाने
और बड़े से बड़े महत्वपूर्ण मुद्दों पर भी मात्र फॉर्मेलिटी के लिए उनकी भागीदारी दिखाई देने के पीछे कुछ गंभीर संकेत दिखाई पड़ते है।
आपको जोर देकर याद करना पड़ेगा कि पिछली बार टीबी की स्क्रीन पर आपने अमित शाह को कब देखा था।
जो शख्स दिन भर टीवी स्क्रीन पर छाया रहता था
उसका यकायक इलेक्ट्रॉनिक और प्रिंट मीडिया से लगभग लगभग गायब हो जाना अपने आप मे बहुत कुछ कहता है।
क्या इसके पीछे कोई सोची समझी रणनीति है? क्या अमित शाह को नरेंद्र मोदी हासिये पर करना चाहते हैं ?
क्या अगली बार एक बार फिर से नरेंद्र मोदी प्राधान मंत्री बनना चाह रहे है
या फिर इन दोनों के बीच कोई ऐसा बिगाड़खाता पैदा हो गया है जो दोनो के बीच खाई पैदा कर रहा है?
राजनीति में कुछ भी हो सकता है और कुछ भी संभव है।
जिन अमित शाह को धारा 370 के उन्मूलन के मामले में आयरन मैन की संज्ञा दी गयी
उन अमित शाह के कोरोना काल मे टीवी स्क्रीन में या अखवारों में दर्शन दुर्लभ हो जाये तो इसे क्या कहिएगा?
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कही ये कोरोना काल की लड़ाई में एकला चलो के मार्ग पर चलकर कोरोना पर जीत दर्ज पूरे विश्व मे अपने नेतृत्व का लोहा मनवाने और उसमें किसी का श्रेय शामिल न होने देने की नरेंद्र मोदी की सोची समझी चाल तो नही जिसका शिकार अमित शाह हो रहे हैं?
कही प्राधान मंत्री नरेंद्र मोदी ये सिद्ध तो नही करना चाहते कि अमित शाह के बिना भी वे बड़ी से बड़ी मुश्किलों का सामना करके खुद को और पूरे देश को उबार सकते हैं।
कहीं वे यह ठप्पा तो नही मिटाना चाहते कि मोदी की हर सफलता के पीछे अमित शाह की बड़ी भूमिका रही है
और अमित शाह के बिना वे अधूरे हैं।
खैर कुछ भी हो मेरी तरह आप भी ये जरूर सोचने पर मजबूर हो जायेगे कि आखिर अचानक इस देश मे महत्वपूर्ण मुद्दों पर देश के गृह मंत्री अमित शाह की भूमिका सिमटती क्यों जा रही है?
कोरोना जैसी भयंकर महामारी में भी उनकी कोई बड़ी व स्पष्ट भूमिका का न होना आखिर क्या दर्शाता है?

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