बाल दिवसः हौसलों से उड़ान भर रहे शारीरिक व मानसिक रूप से विक्षिप्त बच्चे

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ये कहानियां हैं उन बच्चों की जिनके सामने शारीरिक और मानसिक चुनौतियां हैं।
मां का आंचल मिला न पिता का साया। शरणालय में रहते हैं।
आम बच्चों से बिल्कुल अलग हालात, फिर भी जोश व हौसला कम नहीं।
उन्हें देख बस यही कहा जा सकता है उनकी उड़ान को हौसले के पंख लगे हैं।
बाल दिवस पर ऐसे बच्चों के हौसले को अमर उजाला का सलाम। एक रिपोर्ट…।
ये बच्चे विशेष हैं।
मल्टीपल चैलेंज्ड हैं। फिर भी उनमें हौसला है चुनौतियों के पार जाने की।
जज्बा है कुछ करने की। ललक है कुछ सीखने की।
शूटिंग रेंज में निशाने लगाने हों, कैफेका संचालन हो, खेलकूद हो या फिर आर्ट एंड क्राफ्ट हो…।
अपने हुनर से ये चौंकाते हैं। मन मोह लेते हैं।
जिम में फिटनेस के गुर सीख कर वे न केवल प्रतियोगिताओं में हिस्सा ले रहे,
बल्कि पुरस्कार भी जीत रहे हैं।
जानकीपुरम् विस्तार स्थित दृष्टि सामाजिक संस्थान में ऐसे एक-दो नहीं बल्कि 200 बच्चे रहते हैं।
हाईकोर्ट द्वारा नामित इस संस्थान में हाईकोर्ट और चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के आदेश पर बच्चे भेजे जाते हैं।
दृष्टि में रह रहे अधिकतर बच्चे ऐसे हैं,
जिन्हें उनके घर वालों ने लावारिस छोड़ दिया।
संस्था के प्रमुख दिनेश बहादुर बताते हैं कि
इन बच्चों को विभिन्न संस्थाओं या कानूनी प्रक्रिया के तहत यहां शरण मिली।
बच्चों को अपना नाम भी नहीं पता, इसलिए उन्हें संस्था ने ही हिंदू-मुस्लिम दोनों नाम दिए हैं।
वे ठीक से बोल भले ही नहीं पाते, संकोची भी हैं, लेकिन स्वागत व अभिवादन नमस्ते से करते हैं।
बच्चों की ड्रेस तय है।
अलग-अलग आयु वर्ग के बच्चे अलग-अलग प्रशिक्षण लेते हैं। बेटे-बेटियों की अलग-अलग ट्रेनिंग चलती है।
किरन के दोनों पैर नहीं हैं।
हाल ही में उसने कृत्रिम पैरों के सहारे चलना शुरू किया है। पर इन चुनौतियों पर उसका हौसला भारी है।
शूटिंग तो कमाल की है।
उसका निशाना चूकता नहीं।
अपनी प्रतिभा को और निखारने के लिए वह शूटिंग रेंज में खूब मेहनत करती है।
किरन ही नहीं, अन्य बच्चों की प्रतिभा भी कमाल की है।
पिछले ही माह में आईआईटी कानपुर में विशेष बच्चों के लिए आयोजित वार्षिक खेलकूद समारोह में इन बच्चों ने भी प्रतिभाग किया था।
वहां इन बच्चों ने 15 पुरस्कार भी जीते।
हुनरमंद विशेष बच्चे जानकीपुरम विस्तार में ही स्थित डी कैफे 16 के संचालन में भी अहम भूमिका निभा रहे हैं।
कैफे में लंबे समय से आने वाले एक ग्राहक धीरज बताते हैं कि
कैफे चला रहीं अंजू और काजल का व्यवहार शुरुआत में अटपटा था। ग्राहक भी असहज हो जाते।
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लेकिन बाद में बच्चियों ने भी काम को समझ लिया।
अब इन्हें देखकर इनकी कमी का अंदाजा भी नहीं लगाया जा सकता।
बच्चों की केयरटेकर शालू बताती हैं कि अन्य बच्चों की ट्रेनिंग कैफे संचालन के लिए रोटेशन के हिसाब से होती है।
बच्चों को उनकी रुचि के अनुसार ट्रेनिंग देने की व्यवस्था की गई है।
बच्चों की देखभाल करने में मुख्य रूप से जुटे शालू व अथर्व बताते हैं कि
कई बच्चों में सीखने की जबरदस्त ललक है।
बच्ची राधा सन बटाई के काम में माहिर हो गई है।
उसने कई दरी, आसनी व अन्य सामान बाजार में बिकने योग्य तैयार किए हैं।
इसी तरह आशा, अंजलि व कुछ अन्य लड़कियां ज्वैलरी मेकिंग में निपुण हैं।
बच्चियों ने अपने हाथों से तैयार बंदनवार, कलीरें दिखाईं भी। कपड़े सिलाई का काम भी बच्चियां यहां सीख रही हैं।
शालू और अथर्व बताते हैं कि बच्चे जो सामग्री तैयार करते हैं
उनकी विभिन्न स्थलों पर प्रदर्शनी भी लगाई जाती है।
खासकर लखनऊ महोत्सव में स्टॉल लगाया जाता है।
बैंक से जो लूम दान में मिलता है उससे ये स्टोल तैयार करते हैं।
एक बुजुर्गवार इसका प्रशिक्षण बच्चों को देते हैं। यहां तैयार होने वाले स्टोल बाजार में बेचे जाते हैं।

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