अनाथालय में पले बढ़े और कर रहे देश का नाम रोशन
नई दिल्ली, । बीते दिनों अनाथालय किसी न किसी कारण विवादों में रहे हैं। इनमें मुजफ्फरपुर बालिका गृह का नाम सबसे ऊपर रहा, जिसने भी बालिका गृह कांड के बारे में सुना उसके रोंगटे खड़े हो गए।
जिसने बचपन का गला घोंट दिया, मासूमों की शरीर से लेकर आत्मा तक को तार-तार कर दिया। शासन-प्रशासन हर किसी को हिला देने वाली इस घटना के बाद से लोगों का मानों अनाथालयों पर से भरोसा उठा गया।
हालांकि आज हम अनाथालय की एक दूसरी तस्वीर आपको दिखाने जा रहे हैं, जो बीते दिनों अनाथ आश्रम की धूमिल हुई छवि के बाद पैदा हुई नकारात्मक सोच को शायद खत्म करने का काम करे।
मध्य प्रदेश की आकांक्षा विश्वकर्मा और दिल्ली के नारायण ठाकुर दोनों अनाथालय में पले-बढ़े और आज देश का नाम रोशन कर रहे हैं।
छह दिन की थी, तब मां गुजर गई और अगले बरस पिता का साया भी सिर से उठ गया। लेकिन उसने जिंदगी से हार नहीं मानी और अनाथालय में रहकर घुड़सवारी सीखी।
अब 18 साल की उम्र में उसने एक साल के भीतर तीन गोल्ड मेडल जीत मिसाल पेश की है। देश की इस जांबाज और बहादुर बेटी का नाम आकांक्षा विश्वकर्मा है। आकांक्ष मध्य प्रदेश के कटनी जिले की रहने वाली है।
बचपन में माता-पिता का साथ छूट जाने के बावजूद आकांक्षा ने कभी खुद को टूटने नहीं दिया। उसका पूरा पालन-पोषण एक अनाथालय में हुआ।
पढ़ाई-लिखाई के साथ-साथ उसने मध्य प्रदेश घुड़सवारी अकादमी से घुड़सवारी की ट्रेनिंग ली और इसी महीने हुई राष्ट्रीय घुड़सवारी प्रतियोगिता में आकांक्षा ने गोल्ड मेडल अपने नाम कर लिया।
आकांक्षा की कामयाबी की उड़ान का अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि उसने सालभर के अंदर पांच मेडल पर कब्जा जमा लिया है, जिसमें तीन गोल्ड और दो सिल्वर शामिल हैं
आकांक्षा ने अनाथालय में करीब तीन साल तक घुड़सवारी सीखी। वे खुद ही घोड़ों की देख-रेख भी किया करती थीं। आकांक्षा अपने बचपन के दिनों का याद नहीं करना चाहतीं।
अपनी जिंदगी के बारे में बात करते हुए आकांक्षा कहती हैं, ‘बचपन के दिनों को जब भी याद करती हूं, तो डर जाती हूं। पहले मम्मी, फिर पापा गुजर गए।’
आकांक्षा ने बताए कैसे बचपन में माता-पिता की मौत के बाद चाचा-चाची का अत्याचार उन्होंने सहा और कैसे वे अनाथालय पहुंचीं? और कैसे अनाथालय में रहकर उनकी जिंदगी बदल गई?
आकांक्षा ने बताया, ‘पिता की मौत के बाद मैं चाचा-चाची के साथ रहने लगी। उन्होंने 5-6 साल तो मुझे ठीक से रखा, लेकिन फिर वो मुझे साथ नहीं रखना चाहते थे।
मुझे हफ्तों तक कमरे में बंद रखा जाता था। खाना भी नहीं मिलता था। मैंने करीब साल भर ये सब सहा, लेकिन बाद में मोहल्ले के ही कुछ लोगों की मदद से मैं अनाथालय पहुंच गई।’
आकांक्षा को अनाथालय में दो घोड़े मिले। जहां बच्चों को मनोरंजन के लिहाज से घुड़सवारी कराई जाती थी। उन्होंने बताया कि मैं भी अनाथालय में घुड़सवारी करने लगी।
धीरे-धीरे मनोंरजन का यह खेल अच्छा लगने लगा और मुझे घोड़े व घुड़सवारी से प्यार हो गया।
आकांक्षा ने बताया कि वे 2014 में अनाथालय पहुंची थी। जहां वो 2017 तक रही। यहीं तीन साल तक घुड़सवारी का अभ्यास किया। जिन घोड़ों के साथ आकांक्षा घुड़सवारी सीखती थी,
उनकी देखभाल भी वो खुद ही करती थी। आकांक्षा ने बताया, ‘ट्रेनिंग लेने के बाद मैं अच्छी घुड़सवारी करने लगी थी। उसी दौरान मुझे बताया गया कि मध्य प्रदेश राज्य घुड़सवारी में प्रवेश के लिए अकादमी की चयन समिति भोपाल में टैलेंट सर्च कर रही है।
मैंने वहां जाकर ट्रायल दिया और सेलेक्ट भी हो गई।’ उन्होंने बताया कि अकादमी में कोच भागीरथ की ट्रेनिंग में साल भर में उनकी घुड़सवारी और निखर गई। इसके बाद उन्होंने एक साल में दो स्टेट लेवल और एक नेशनल लेवल का गोल्ड जीत लिया।
