बापू की भावनाओं पर कौन सी ताकत पड़ गई भारी? PM मोदी ने इतिहास की ऐसी-ऐसी परतें खोलीं, पूरी संसद बजाने लगी तालियां

राष्ट्रीय जजमेंट 

संसद में राष्ट्रीय गीत वंदे मातरम की 150वीं वर्षगांठ के उपलक्ष्य में एक विशेष चर्चा हुई, जिसकी शुरुआत प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लोकसभा में की। वंदे मातरम् का जो जन–जन से जुड़ाव था, वह हमारे स्वतंत्रता संग्राम की एक लंबी गाथा की अभिव्यक्ति बन जाता है। जब भी किसी नदी की चर्चा होती है, तो उस नदी के साथ एक सांस्कृतिक धारा-प्रवाह, एक विकास-यात्रा की धारा-प्रवाह, एक जन–जीवन की धारा-प्रवाह स्वतः जुड़ जाती है। लेकिन क्या कभी किसी ने सोचा है कि आजादी की जंग की पूरी यात्रा वंदे मातरम् की भावनाओं से होकर गुजरती थी? ऐसा भाव-काव्य शायद दुनिया में कहीं उपलब्ध नहीं होगा।

अंग्रेज समझ चुके थे कि 1857 के बाद भारत में लंबे समय तक टिक पाना उनके लिए मुश्किल होता जा रहा है। लोकसभा में वंदे मातरम के 150 वर्ष पूरे होने पर आयोजित चर्चा में पीएम मोदी ने वंदे मातरम के कहा कि जब वंदे मातरम् के 50 वर्ष पूरे हुए थे, तब देश गुलामी की जंजीरों में जकड़ा हुआ था जब इसके 100 वर्ष पूरे हुए, तब देश आपातकाल के अंधेरे में था।

प्रधानमंत्री मोदी ने लोकसभा में ‘वंदे मातरम्’ की 150वीं वर्षगांठ पर कहा, “तुष्टीकरण की राजनीति के दबाव में कांग्रेस वंदे मातरम् के बंटवारे के लिए झुकी इसलिए कांग्रेस को एक दिन भारत के बंटवारे के लिए झुकना पड़ा… दुर्भाग्य से कांग्रेस की नीतियां वैसी की वैसी हैं, INC चलते-चलते MMC हो गया है।

जिस प्रकार के सपने लेकर वे आए थे, उन्हें यह साफ दिखने लगा कि जब तक भारत को बांटा नहीं जाएगा, लोगों को आपस में लड़ाया नहीं जाएगा, तब तक यहां राज करना कठिन है। तब अंग्रेज़ों ने ‘बांटो और राज करो’ का रास्ता चुना, और उन्होंने बंगाल को इसकी प्रयोगशाला बनाया। अंग्रेजों ने 1905 में बंगाल का विभाजन किया, तो वंदे मातरम् चट्टान की तरह खड़ा रहा। यह नारा गली–गली का स्वर बन गया। अंग्रेजों ने बंगाल विभाजन के माध्यम से भारत को कमजोर करने की दिशा पकड़ ली थी, लेकिन वंदे मातरम् अंग्रेजों के लिए चुनौती और देश के लिए शक्ति की चट्टान बनता गया। प्रधानमंत्री ने कहा कि बंकिम चंद्र चटर्जी द्वारा 1875 में लिखित वंदे मातरम् जब देश की ऊर्जा और प्रेरणा का मंत्र बन रहा था और स्वतंत्रता संग्राम का नारा बन गया था, तब मुस्लिम लीग की विरोध की राजनीति और मोहम्मद अली जिन्ना के दबाव में कांग्रेस झुक गई। उन्होंने कहा, ‘‘तब कांग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष नेहरू को अपना सिंहासन डोलता दिखा। नेहरू जी मुस्लिम लीग के आधारहीन बयानों पर करारा जवाब देते, मुस्लिम लीग के बयानों की निंदा करते, वंदे मातरम के प्रति खुद की और कांग्रेस पार्टी की निष्ठा को प्रकट करते, उसके बजाय उन्होंने वंदे मातरम् की ही पड़ताल शुरू कर दी।

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