दिल्ली हाईकोर्ट का सख्त रुख: रैन बसेरों में भ्रष्टाचार के आरोपों पर सरकार को जांच के आदेश

नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने राजधानी के रैन बसेरों (नाइट शेल्टर) के संचालन में बड़े पैमाने पर भ्रष्टाचार, मिलीभगत और गलत श्रम प्रथाओं के गंभीर आरोपों पर दिल्ली सरकार को झटका दिया है। चीफ जस्टिस डी.के. उपाध्याय और जस्टिस तुषार राव गेडेला की खंडपीठ ने दिल्ली शेल्टर होम वर्कर्स यूनियन की जनहित याचिका (PIL) पर सुनवाई करते हुए सरकार को दो सप्ताह के भीतर विस्तृत शिकायत प्राप्त करने के बाद दिल्ली अर्बन शेल्टर इम्प्रूवमेंट बोर्ड (DUSIB) एक्ट, 2010 की धारा 26, 27 और 28 के तहत उचित जांच व कार्रवाई शुरू करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि आरोपों की गंभीरता को देखते हुए पहले सरकारी स्तर पर जांच जरूरी है, लेकिन सभी पक्षों को सुनवाई का पूरा अवसर मिलेगा।

यूनियन ने याचिका में आरोप लगाया है कि DUSIB के तहत करीब 198 रैन बसेरों का संचालन करने वाले कॉन्ट्रैक्ट NGO बोर्ड के कुछ अधिकारियों की मिलीभगत से फर्जी कर्मचारी (घोस्ट एम्प्लॉयी) दिखाकर, उपस्थिति रजिस्टर में हेराफेरी कर और सरकारी फंड की बंदरबांट कर रहे हैं। यूनियन की ओर से अधिवक्ता कवलप्रीत कौर ने कोर्ट को बताया कि बेघरों व कमजोर वर्गों की भलाई के लिए आवंटित करोड़ों रुपये की राशि का दुरुपयोग हो रहा है। बार-बार शिकायतों के बावजूद DUSIB, उपराज्यपाल कार्यालय और दिल्ली सरकार की एंटी-करप्शन ब्रांच ने कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

याचिका में मांग की गई है कि 2018 से अब तक सभी शेल्टर होम्स के रिकॉर्ड, वेतन भुगतान डेटा कोर्ट में पेश किया जाए और भारत के नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (CAG) से स्वतंत्र वित्तीय ऑडिट कराया जाए। साथ ही बायोमेट्रिक उपस्थिति प्रणाली लागू करने, दोषी NGO को ब्लैकलिस्ट करने और जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ आपराधिक कार्रवाई की मांग उठाई गई है।

कोर्ट ने यूनियन को निर्देश दिया कि वह दो सप्ताह में दिल्ली सरकार को अपनी विस्तृत प्रतिनिधि शिकायत सौंपे। इसके बाद सरकार DUSIB एक्ट के प्रावधानों के तहत बोर्ड के रिकॉर्ड मंगवा सकती है, जांच कर सकती है और जरूरी कार्रवाई कर सकती है। खंडपीठ ने कहा, “DUSIB एक्ट सरकार को बोर्ड के कामकाज में अनियमितता मिलने पर पूरा अधिकार देता है।” कोर्ट ने यह भी सुनिश्चित किया कि किसी भी जांच या कार्रवाई में बोर्ड, संबंधित NGO और अन्य पक्षों को निष्पक्ष सुनवाई का मौका मिलेगा।

गौरतलब है कि DUSIB एक्ट, 2010 लागू होने के बाद से दिल्ली में नाइट शेल्टर NGO के माध्यम से चलाए जा रहे हैं। ये शेल्टर सर्दियों में बेघरों को आश्रय देने का काम करते हैं, लेकिन प्रबंधन में बिचौलियों की भूमिका और पारदर्शिता की कमी लगातार सवालों के घेरे में रही है। यूनियन का कहना है कि कॉन्ट्रैक्ट कर्मचारियों के साथ भी श्रम अधिकारों का खुला उल्लंघन हो रहा है।

कोर्ट ने फिलहाल स्वतंत्र या कोर्ट-निगरानी वाली जांच की मांग को टालते हुए सरकारी तंत्र पर भरोसा जताया, लेकिन चेतावनी दी कि यदि उचित कार्रवाई नहीं हुई तो मामला दोबारा कोर्ट के समक्ष आएगा। इस आदेश से रैन बसेरों की व्यवस्था में पारदर्शिता और जवाबदेही की नई उम्मीद जगी है

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