आखिर महारैली में मायावती ने क्यों योगी सरकार की तारीफों के पुल बांधे, 2027 चुनाव में क्या दिखेगा असर?

राष्ट्रीय जजमेंट

लखनऊ: उत्तर प्रदेश की राजनीति में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) की सुप्रीमो मायावती ने गुरुवार को लखनऊ के कांशीराम स्मारक स्थल पर आयोजित महारैली से एक बार फिर जोरदार संदेश दिया है. यह रैली बसपा संस्थापक कांशीराम की पुण्यतिथि पर हुई, जिसमें लाखों की भीड़ उमड़ने का दावा किया गया. लंबे अरसे बाद इस बड़े आयोजन ने न केवल बसपा की संगठनात्मक ताकत का प्रदर्शन किया, बल्कि यूपी के सियासी समीकरणों को हिला दिया.मायावती ने रैली में योगी आदित्यनाथ सरकार की खुली तारीफ की, जबकि समाजवादी पार्टी (सपा) पर तीखे प्रहार किए. यह नरम रुख भाजपा के लिए खतरे की घंटी के रूप में देखा जा रहा है. राजनीति विशेषज्ञों का मानना है कि बसपा का भाजपा विरोध कमजोर होने से सपा के वोटबैंक पर असर पड़ेगा. इस रैली के राजनीतिक, सामाजिक और चुनावी आयामों का विस्तृत विश्लेषण किया जा रहा है.2021 में रैली के बाद 1 सीट पर सिमट गई थी बसपाः कांशीराम की पुण्यतिथि पर यह आयोजन बसपा के लिए प्रतीकात्मक महत्व रखता है. 2021 में इसी मैदान पर हुई रैली के बाद 2022 के विधानसभा चुनाव में बसपा महज एक सीट पर सिमट गई थी. अब 2027 के चुनावों से पहले यह शक्ति प्रदर्शन बसपा की कोर वोटर बेस दलितों को एकजुट करने का प्रयास माना जा रहा है.योगी सरकार का आभार जताने के मायनेः मायावती ने भाषण में कहा, “हम मौजूदा सरकार के आभारी हैं. भाजपा सरकार ने सपा सरकार की तरह जनता का पैसा नहीं दबाया.” उन्होंने कांशीराम स्मारक की देखभाल के लिए योगी सरकार को धन्यवाद दिया, जो सपा शासन में उपेक्षित था. साथ ही, सपा पर कांशीराम नगर जिले का नाम बदलने, PDA (पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक) नारे को खोखला बताने और दलित-विरोधी होने का आरोप लगाया. मायावती ने स्पष्ट किया कि बसपा 2027 में अकेले चुनाव लड़ेगी, कोई गठबंधन नहीं. उन्होंने बाबा साहेब अंबेडकर के संविधान की रक्षा का वादा किया और जातिवादी दलों भाजपा, सपा, कांग्रेस पर हमला बोला. लेकिन भाजपा के प्रति टोन अपेक्षाकृत नरम रहा.दलित को साध लिया तो भाजपा के लिए होगी मुश्किलः राजनीतिक विश्लेषक का कहना है कि भाजपा के लिए यह रैली दोहरी तलवार साबित हो रही है. एक ओर, मायावती की तारीफ से योगी सरकार को वैधता मिली. खासकर दलित वोटों में, जहां भाजपा ने 2017-2022 में कुछ घुसपैठ की थी लेकिन, बसपा का भाजपा-विरोध कमजोर होने से मुस्लिम वोट सपा की ओर मजबूत होंगे. वास्तव में 2024 लोकसभा चुनाव में बसपा का सपा-कांग्रेस गठबंधन टूटा था, जिससे दोनों पार्टियां कमजोर हुईं. अब मायावती का सपा-केंद्रित हमला भाजपा को फायदा पहुंचा सकता है, लेकिन अगर बसपा दलित वोटों को एकजुट कर लेती है तो भाजपा के 37% दलित समर्थन (2022 चुनाव डेटा) पर असर पड़ेगा. ऐसा कुछ भी नहीं है कि मायावती के बीजेपी की तारीफ करने से हमारा कोई नुकसान होगा. हमारे मुख्यमंत्री तारीफ के योग्य हैं तो तारीफ की जाएगी. इसमें कोई नई बात नहीं है.-जुगुल किशोर, प्रदेश प्रवक्ता-बीजेपीनरम हिंदुत्व की ओर झुकाव: मायावती का भाषण दलित एकजुटता पर केंद्रित था. उन्होंने कहा कि आरक्षण अभी पूरा नहीं हुआ और बाबासाहेब के सपनों को पूरा करने के लिए बहुजन समाज को जागरूक रहना होगा. आकाश आनंद (मायावती के भतीजे) ने भी आरक्षण और दलित उत्थान पर जोर दिया. लेकिन आलोचकों का कहना है कि यह ‘नरम हिंदुत्व’ की ओर झुकाव है, क्योंकि योगी तारीफ में दलित अत्याचारों (जैसे हरिओम हत्याकांड) का जिक्र नहीं हुआ. रैली ने दलित युवाओं को संगठित किया, जो 2022 में सपा या भाजपा की ओर खिसक गए थे. तीन लाख से अधिक लोग जुटे, जो बसपा की ग्रामीण पैठ दर्शाता है.भाजपा के वोट बैंक पर असरः राजनीतिक विश्लेषक की मानें तो बसपा की यह रैली भाजपा को चिंता बढ़ाने वाली है. बसपा का कम विरोध सपा के PDA फॉर्मूले को मजबूत करेगा. सपा के मुस्लिम-यादव वोट (25-30%) अगर दलितों (21%) से जुड़ जाएं तो भाजपा का 40% हिंदुत्व वोटबैंक खतरे में होगा. मायावती का अकेले लड़ने का ऐलान गठबंधन की संभावनाओं को खत्म करता है, लेकिन यह रणनीति जोखिम भरी है. क्योंकि 2022 में बसपा को 12.87% वोट मिले थे.

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