क्या है सेप्सिस जो छोटे से इन्फेक्शन से जानलेवा बीमारी बन जाती, किडनी-लीवर तक कर देती फेल, जानिए

राष्ट्रीय जजमेंट

लखनऊ: छोटी सी संक्रमण से शुरू होकर जानलेवा स्थिति तक पहुंचने वाली बीमारी सेप्सिस अब एक गंभीर स्वास्थ्य चिंता बन चुकी है. शरीर में संक्रमण के जवाब में जब इम्यून सिस्टम ओवररिएक्ट करता है और शरीर के अंगों को नुकसान पहुंचाने लगता है, तो यह स्थिति सेप्सिस कहलाती है. यदि समय पर इलाज न हो, तो यह किडनी, लिवर और दिल जैसे जरूरी अंगों को फेल कर सकती है. आइए जानते हैं इसके लक्षण और कैसे करें बचाव.अंग की खराबी के लक्षणःजैसे-जैसे सेप्सिस बढ़ता है, यह अंग के कार्य को खराब कर सकता है, जिससे मूत्र उत्पादन में कमी, पेट में दर्द, पीलिया और थक्के जमने की समस्या जैसे लक्षण पैदा हो सकते हैं.त्वचा में परिवर्तनःसेप्सिस के कारण त्वचा धब्बेदार या बदरंग हो सकती है, जो पीली, नीली या धब्बेदार दिखाई दे सकती है और छूने पर त्वचा असामान्य रूप से गर्म या ठंडी महसूस हो सकती है.गैस्ट्रोइंटेस्टाइनल लक्षणःसेप्सिस से पीड़ित कुछ व्यक्तियों को मतली, उल्टी, दस्त या पेट में परेशानी का अनुभव होता है.सेप्टिक शॉकःसबसे गंभीर मामलों में, सेप्सिस सेप्टिक शॉक में बदल सकता है, जिसमें बेहद कम रक्तचाप, परिवर्तित चेतना और कई अंग विफलता के लक्षण होते हैं. सेप्टिक शॉक एक जीवन-घातक आपातकाल है.संक्रमणःमूल संक्रमण में फेफड़ों के संक्रमण या यूटीआई के साथ मूत्र संबंधी लक्षणों के मानले में खांसी जैसे लक्षण हो सकते हैं, जो सेप्सिस में बदल सकते हैं.ये जांच है जरूरीनैदानिक मूल्यांकन (Clinical Evaluation): सबसे पहले डॉक्टर मरीज का मेडिकल इतिहास पूछते हैं और शरीर की जांच करते हैं. सेप्सिस के आम लक्षणों में बुखार, तेज दिल की धड़कन, तेजी से सांस लेना और मानसिक स्थिति में बदलाव (जैसे उलझन या कमजोरी महसूस होना) शामिल हैं.संक्रमण की पहचान: सेप्सिस तभी होता है जब शरीर में कोई संक्रमण होता है, जो शरीर के अंदर फैलने लगता है. इसलिए डॉक्टर यह पता लगाते हैं कि कहीं शरीर में कोई संभावित या पक्का संक्रमण तो नहीं है.ब्लड टेस्ट और लैब जांचें: सेप्सिस की पुष्टि के लिए खून की जांच जरूरी होती है. इन टेस्ट से यह पता चलता है कि शरीर में कितनी सूजन है, इंफेक्शन कहां है और कौन सा बैक्टीरिया या वायरस इसके पीछे है.इमेजिंग जांच (जैसे एक्स-रे या स्कैन): कई बार संक्रमण को सही जगह पहचानने के लिए एक्स-रे, अल्ट्रासाउंड या सीटी स्कैन जैसी इमेजिंग जांचें भी की जाती हैं.सेप्सिस के कुछ महत्वपूर्ण तथ्यबुजुर्गों और नवजात शिशुओं में सेप्सिस होने पर मृत्यु दर भी अधिक होती है. जिसका प्रमुख कारण यह है कि इसमें रोगों से लड़ने के लिए प्रतिरक्षा तंत्र कमजोर होता है.सेप्सिस से बचे 50 प्रतिशत तक लोग दीर्घकालिक शारीरिक एवं मनोवैज्ञानिक बीमारी से पीड़ित होते हैं.भारत में प्रतिवर्ष सेप्सिस से लगभग 1 करोड़ 10 लाख व्यक्ति ग्रसित होते हैं जिनमें लगभग 30 लाख व्यक्तियों की मृत्यु हो जाती है.भारत में सेप्सिस से मृत्यु दर लगभग प्रति 100,000 लोगों पर 213 है, जो वैश्विक औसत दर से काफी अधिक है.सेप्सिस के कारण भारत पर काफी आर्थिक बोझ पड़ता है. प्रत्यक्ष चिकित्सा लागत, जिसमें अस्पताल में भर्ती होना, दवाएं और दीर्घकालिक देखभाल शामिल है एवं अप्रत्यक्ष लागत के साथ, सालाना लगभग 1 लाख करोड़ रूपये व्यय होते है.एक हालिया अध्ययन से यह भी पता चला है कि भारत में आईसीयू के आधे से अधिक मरीज सेप्सिस से पीड़ित हैं, और मल्टी-ड्रग प्रतिरोधी बैक्टीरिया के कारण होने वाले सेप्सिस की व्यापकता चिंताजनक रूप से 45 प्रतिशत से भी अधिक है.रोगाणुरोधी प्रतिरोध (Multi Drug Resistance), विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि रोगाणुरोधी प्रतिरोध एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है, दवा प्रतिरोधी संक्रमणों से सालाना कम से कम 7 लाख मौतें होती हैं, जो कि सेप्सिस से जुड़ी होती हैं.सेप्सिस से बचाव:प्रभावी सेप्सिस प्रबंधन रोगी के परिणामों में सुधार लाने और मृत्यु दर को कम करने के लिए महत्वपूर्ण है, जिसके लिए तेजी से हस्तक्षेप और समन्वित देखभाल की आवश्यकता होती है.शीघ्र पहचानः सेप्सिस की शीघ्र पहचान महत्वपूर्ण है. स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं को तेजी से उपचार शुरू करने के लिए, बदली हुई मानसिक स्थिति, तेजी से सांस लेने और हाइपोटेंशन सहित शुरुआती संकेतों और लक्षणों की पहचान करने के लिए प्रशिक्षित किया जाता है.संक्रमण स्रोत नियंत्रणः संक्रमण के स्रोत का प्रबंधन करना आवश्यक है. इसमें फोड़े-फुन्सियों को निकालने, संक्रमित ऊतक को हटाने, या अन्यथा सेप्सिस के अंतर्निहित कारण को संबोधित करने के लिए सर्जिकल प्रक्रियाएं शामिल हो सकती हैं.रक्तचाप को बनाए रखने बीपी को बढाने की दवाइयों के समचित उपयोग किया जाता है, जिससे नॉरइपिनेफेसिन जैसी दवाइयां सम्मिलित हैं.सेप्सिस संक्रमण का समय पर इलाज जरूरी है. इलाज में देरी से मरीज के अंग फेल हो सकते हैं. यह जानकारी बुधवार को संस्थान के प्रेक्षागृह में सेप्सिस जागरुकता पर कार्यशाला को संबोधित कर रहे लोहिया संस्थान के निदेशक डॉ. सीएम सिंह ने दी.निदेशक ने कहा कि सेप्सिस संक्रमण के प्रति शरीर की एक खतरनाक और जानलेवा प्रतिक्रिया है. जिसमें शरीर संक्रमण से लड़ने के बजाय अपने ही अंगों को नुकसान पहुंचाने लगता है. मरीज के अंग खराब हो सकते हैं. मरीज की जान को खतरा हो सकता है. उन्होंने बताया कि जब शरीर में बैक्टीरिया, वायरस या फफूंद की वजह से संक्रमण होता है तो वह सबसे पहले रोग प्रतिरोधक क्षमता पर हमला करता है.वहीं संस्थान में डीन एकेडमिक्स डॉ. विनीता मित्तल ने कहा कि सेप्सिस का तुरंत इलाज जरूरी है. देरी से मरीज सेप्सिस शॉक में जा सकता है. सेप्सिस के शुरुआती लक्षणों को पहचानना और तुरंत डॉक्टर से संपर्क करना बहुत जरूरी है. पुरानी बीमारी जैसे डायबिटीज, ब्लड प्रेशर से जूझ रहे मरीजों को सेप्सिस के प्रति अधिक सर्तक रहने की जरूरत है.

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