दिल्ली- एनसीआर में आवारा कुत्तों का आतंक: सुप्रीम कोर्ट का सख्त आदेश, पशु प्रेमियों का विरोध

नई दिल्ली: दिल्ली-राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में आवारा कुत्तों के बढ़ते हमलों और रेबीज के खतरे ने सुप्रीम कोर्ट को सख्त कदम उठाने के लिए मजबूर कर दिया है। सोमवार को एक ऐतिहासिक फैसले में, कोर्ट ने दिल्ली सरकार, दिल्ली नगर निगम, नई दिल्ली नगरपालिका परिषद, नोएडा, गाजियाबाद और गुरुग्राम के नगर निकायों को आठ हफ्तों के भीतर सभी आवारा कुत्तों को रिहायशी इलाकों से हटाकर शेल्टर होम में स्थानांतरित करने का निर्देश दिया। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि किसी भी हालत में इन कुत्तों को सड़कों पर वापस नहीं छोड़ा जाएगा। इस फैसले ने जहां जनसुरक्षा को लेकर राहत की उम्मीद जगाई है, वहीं पशु अधिकार संगठनों और कार्यकर्ताओं के तीखे विरोध ने इसे विवादों में ला खड़ा किया है।

सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख: जनसुरक्षा पहली प्राथमिकता

जस्टिस जे.बी. पारदीवाला और जस्टिस आर. महादेवन की खंडपीठ ने सुनवाई के दौरान बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गों की सुरक्षा को सर्वोपरि बताते हुए कहा, “सड़कों को आवारा कुत्तों से पूरी तरह मुक्त करना हमारी पहली प्राथमिकता है। रेबीज और कुत्तों के काटने की घटनाएं अस्वीकार्य हैं।” कोर्ट ने दिल्ली में रेबीज के बढ़ते मामलों और कुत्तों के हमलों पर गहरी चिंता जताई। एमसीडी के आंकड़ों के अनुसार, जनवरी से जून 2025 तक दिल्ली में रेबीज के 49 मामले और 35,198 पशु काटने की घटनाएं दर्ज की गईं। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, भारत में हर साल रेबीज से करीब 60,000 लोगों की मौत होती है, जो वैश्विक आंकड़ों का 36% है।

कोर्ट ने मौजूदा पशु जन्म नियंत्रण नियमों को ‘बेतुका’ करार देते हुए कहा कि नसबंदी के बाद कुत्तों को सड़कों पर वापस छोड़ने से समस्या का समाधान नहीं होता। जस्टिस पारदीवाला ने कड़े शब्दों में कहा, “क्या पशु प्रेमी उन बच्चों को वापस ला सकते हैं, जो रेबीज से मर गए? हमें भावनाओं से नहीं, जनहित से काम लेना है।” कोर्ट ने पशु अधिकार संगठनों को चेतावनी दी कि अभियान में बाधा डालने वालों के खिलाफ अवमानना की कार्रवाई होगी।

आदेशों का ब्लूप्रिंट: शेल्टर होम, हेल्पलाइन और कड़ी निगरानी

सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली और एनसीआर के नगर निकायों को तत्काल शेल्टर होम स्थापित करने का निर्देश दिया। इन शेल्टर होम्स में नसबंदी, टीकाकरण और देखभाल के लिए प्रशिक्षित कर्मचारियों की नियुक्ति, सीसीटीवी निगरानी और कुत्तों के भागने को रोकने के लिए सख्त सुरक्षा व्यवस्था सुनिश्चित करने को कहा गया। पहले चरण में छह हफ्तों में 5,000 कुत्तों को पकड़ने का लक्ष्य रखा गया है।

कोर्ट ने कुत्तों के काटने की शिकायतों के लिए एक समर्पित हेल्पलाइन नंबर शुरू करने और शिकायत मिलने पर चार घंटे के भीतर कार्रवाई करने का आदेश दिया। साथ ही, रेबीज वैक्सीन की उपलब्धता, स्टॉक और उपचार केंद्रों की जानकारी सार्वजनिक करने के लिए कहा गया। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट को बताया कि दिल्ली में पहले एक स्ट्रे डॉग रिलोकेशन साइट तैयार की गई थी, लेकिन पशु अधिकार कार्यकर्ताओं के विरोध के कारण इसे लागू नहीं किया जा सका। कोर्ट ने इस पर नाराजगी जताते हुए कहा कि बच्चों और नागरिकों की जान को खतरे में नहीं डाला जा सकता।

दिल्ली नगर निगम की प्रतिबद्धता

दिल्ली के मेयर सरदार राजा इकबाल सिंह ने कोर्ट के आदेश का स्वागत करते हुए कहा, “दिल्ली नगर निगम सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों को समयबद्ध और उत्तरदायी ढंग से लागू करने के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है।” एमसीडी ने एक समर्पित उप-समिति का गठन किया है, जो शेल्टर होम्स की स्थापना और संचालन के लिए नीति-ढांचा तैयार करेगी। मेयर ने पशु प्रेमियों से सहयोग की अपील करते हुए कहा, “शेल्टर होम में कुत्तों को सर्दी, गर्मी और बारिश से सुरक्षित वातावरण मिलेगा। पशु प्रेमी वहां जाकर उनकी देखभाल और खानपान में योगदान दे सकते हैं।”

एमसीडी ने पशु कल्याण संगठनों, पशु चिकित्सा विशेषज्ञों और नागरिक प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श शुरू कर दिया है, ताकि एक समावेशी और संतुलित दृष्टिकोण अपनाया जा सके। मेयर ने जोर देकर कहा कि जनसुरक्षा और पशु कल्याण के बीच संतुलन बनाना उनकी प्राथमिकता है।

पशु अधिकार संगठनों का तीखा विरोध

सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने पशु अधिकार संगठनों और कार्यकर्ताओं में रोष पैदा कर दिया है। पेटा इंडिया की सीनियर डायरेक्टर डॉ. मिनी अरविंदन ने इसे ‘अवैज्ञानिक और अप्रभावी’ करार देते हुए कहा, “दिल्ली में करीब 10 लाख सामुदायिक कुत्ते हैं, जिनमें से आधे से भी कम की नसबंदी हुई है। इन्हें जबरन हटाना समुदायों में आक्रोश और कुत्तों के लिए पीड़ा का कारण बनेगा।” उन्होंने तर्क दिया कि नसबंदी और रेबीज टीकाकरण का प्रभावी कार्यक्रम ही इस समस्या का स्थायी समाधान है।

पशु अधिकार कार्यकर्ता और भाजपा नेता मेनका गांधी ने कोर्ट के फैसले को “गुस्से में लिया गया अजीबोगरीब निर्णय” करार दिया। उन्होंने कहा, “दिल्ली में एक भी सरकारी शेल्टर होम नहीं है। 3 लाख कुत्तों को रखने के लिए 15,000 करोड़ रुपये और 1.5 लाख कर्मचारियों की जरूरत होगी। यह दो महीने में असंभव है।” मेनका ने चेतावनी दी कि कुत्तों को हटाने से स्थानीय समुदायों में झगड़े होंगे और आसपास के राज्यों से नए कुत्ते दिल्ली में आ जाएंगे, जिससे समस्या और बढ़ेगी। उन्होंने कहा, “हर गली में चारा देने वाले कुत्तों को जाने नहीं देंगे। इससे रोज झगड़े होंगे और सामाजिक अस्थिरता पैदा होगी।”

सुप्रीम कोर्ट के आदेश को लागू करना दिल्ली सरकार और नगर निकायों के लिए आसान नहीं होगा। विशेषज्ञों का मानना है कि शेल्टर होम्स के लिए बुनियादी ढांचा, वित्तीय संसाधन और प्रशिक्षित कर्मचारियों की कमी इस अभियान को जटिल बना सकती है। मेनका गांधी के अनुसार, 3 लाख कुत्तों को शेल्टर में रखने के लिए हजारों करोड़ रुपये और लाखों कर्मचारियों की जरूरत होगी, जो दिल्ली सरकार के लिए चुनौतीपूर्ण है।

पेटा इंडिया ने सुझाव दिया कि अवैध पालतू जानवरों की दुकानों और प्रजनकों पर रोक लगाने, नसबंदी कार्यक्रम को प्रभावी करने और लोगों को आश्रयों से कुत्तों को गोद लेने के लिए प्रोत्साहित करने जैसे कदम अधिक कारगर होंगे। संगठन ने चेतावनी दी कि बड़े पैमाने पर विस्थापन से कुत्तों में क्षेत्रीय झगड़े और भुखमरी जैसी समस्याएं बढ़ेंगी।

सुप्रीम कोर्ट ने मामले की अगली सुनवाई छह हफ्ते बाद तय की है और सभी प्राधिकरणों से कार्रवाई की प्रगति रिपोर्ट मांगी है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि इस अभियान में किसी भी तरह की ढिलाई बर्दाश्त नहीं की जाएगी। दिल्ली सरकार और एमसीडी ने तत्काल कार्रवाई शुरू करने का भरोसा दिया है, लेकिन पशु प्रेमियों और स्थानीय समुदायों के विरोध के बीच इस आदेश का अमल एक जटिल चुनौती बना हुआ है।

यह फैसला दिल्ली-एनसीआर में आवारा कुत्तों की समस्या पर लगाम लगाने की दिशा में एक बड़ा कदम माना जा रहा है, लेकिन पशु कल्याण, सामुदायिक भावनाओं और संसाधनों की कमी जैसे सवाल इसे एक संवेदनशील और जटिल मुद्दा बनाते हैं। आने वाले हफ्तों में इस अभियान की दिशा और प्रभाव पर सभी की नजरें टिकी रहेंगी।

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