रूस से तेल खरीद को लेकर भारत-चीन-ब्राजील पर लगने वाले प्रतिबंध का क्या होगा असर?

राष्ट्रीय जजमेंट

रूस-यूक्रेन युद्ध के चलते पश्चिमी देशों, विशेषकर अमेरिका और यूरोपीय संघ ने रूस पर व्यापक प्रतिबंध लगाए हैं। अब NATO से जुड़े देशों की ओर से यह संकेत दिया गया है कि यदि भारत, चीन और ब्राजील रूस से तेल खरीदना जारी रखते हैं, तो उन पर 100 प्रतिशत सेकेंडरी सैंक्शंस (द्वितीयक प्रतिबंध) लगाए जा सकते हैं। इस चेतावनी का भू-राजनीतिक, आर्थिक और रणनीतिक दृष्टि से इन तीनों देशों पर गहरा असर हो सकता है।भारत के संदर्भ में देखें तो देश पिछले दो वर्षों से रूस से रियायती दरों पर कच्चा तेल खरीद रहा है, जिससे उसे विदेशी मुद्रा भंडार को मजबूत करने और मुद्रास्फीति को नियंत्रित रखने में मदद मिली। यदि सेकेंडरी सैंक्शंस लगते हैं तो भारत के वित्तीय संस्थानों, बैंकिंग चैनलों और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को नुकसान पहुंचेगा। इसके अलावा भारतीय कंपनियों को SWIFT सिस्टम और डॉलर आधारित भुगतान से बाहर किया जा सकता है।इसके अलावा, भारत की ऊर्जा सुरक्षा पर बड़ा संकट खड़ा होगा क्योंकि सस्ती तेल आपूर्ति बाधित होगी और मध्य-पूर्व से आयात पर फिर निर्भरता बढ़ेगी। इससे पेट्रोल-डीजल की कीमतें और घरेलू महंगाई बढ़ सकती हैं। इसके अलावा, भारत के लिए सामरिक रूप से रूस के साथ संबंधों को तोड़ना आसान नहीं होगा क्योंकि रक्षा, अंतरिक्ष और ऊर्जा क्षेत्रों में दोनों के गहरे संबंध हैं। साथ ही भारत पर अमेरिका और यूरोप से नजदीकियां बढ़ाने के लिए दबाव और बढ़ेगा, जिससे उसकी रणनीतिक स्वायत्तता कमजोर हो सकती है।वहीं चीन के संदर्भ में देखें तो वह रूस से ऊर्जा, गैस और अन्य कच्चे माल का सबसे बड़ा खरीदार बन चुका है। यदि उस पर सेकेंडरी सैंक्शंस लगते हैं तो उसका वैश्विक सप्लाई चेन बुरी तरह प्रभावित होगा। देखा जाये तो यूरोप और अमेरिका चीन के बड़े व्यापारिक भागीदार हैं। इनसे कटाव चीन की निर्यात आधारित अर्थव्यवस्था के लिए घातक होगा। उम्मीद है कि चीन संभवतः इस कदम को अमेरिकी वर्चस्व के खिलाफ आर्थिक युद्ध मानेगा और अपने वैकल्पिक भुगतान तंत्र (जैसे CIPS) को और मज़बूत करेगा। नाटो के संभावित कदम का एक प्रभाव यह भी हो सकता है कि रूस और चीन की घनिष्ठता और बढ़ सकती है।वहीं ब्राजील के संदर्भ में देखें तो वह रूस से बड़ी मात्रा में उर्वरक (fertilizer) और ऊर्जा उत्पाद खरीदता है। यदि यह सप्लाई बाधित हुई तो उसकी एग्रीकल्चर आधारित अर्थव्यवस्था को नुकसान होगा। ब्राजील के निर्यात, खासकर अमेरिका और यूरोप के लिए, बाधित हो सकते हैं। इसके अलावा, लूला दा सिल्वा की सरकार रूस के साथ संबंधों को संतुलित रखना चाहती है, लेकिन पश्चिमी दबाव के कारण उसे अपनी विदेश नीति में बदलाव करना पड़ सकता है। इससे ब्रिक्स की एकता पर भी असर पड़ेगा क्योंकि भारत, चीन और ब्राजील एक साथ दंडित होंगे।संभावित वैश्विक असर की बात करें तो तीनों देशों पर प्रतिबंध से वैश्विक ट्रेड, सप्लाई चेन और ऊर्जा बाजार में अस्थिरता और महंगाई का नया दौर आ सकता है। साथ ही यह कदम BRICS, SCO जैसे मंचों को मजबूती देगा ताकि पश्चिम के वर्चस्व से मुक्त नई भुगतान प्रणाली, करेंसी और व्यापार व्यवस्था विकसित हो सके। इससे दुनिया में डॉलर के प्रभुत्व को चुनौती देने की प्रक्रिया तेज हो सकती है।नाटो के सेकेंडरी सैंक्शंस के खतरे से निपटने की भारत, चीन और ब्राजील की संभावित रणनीति की बात करें तो भारत मध्य-पूर्व, अमेरिका और अफ्रीकी देशों से तेल आयात बढ़ा सकता है ताकि रूस पर निर्भरता घटे। इसके अलावा, भारत रिन्यूएबल एनर्जी (सौर, पवन) और ग्रीन हाइड्रोजन में निवेश तेज़ कर ऊर्जा आयात पर दीर्घकालिक निर्भरता कम कर सकता है। साथ ही भारत अमेरिका और यूरोपीय देशों के साथ कूटनीतिक स्तर पर बातचीत कर सकता है कि उसके रूस से तेल खरीद का मकसद सिर्फ ऊर्जा सुरक्षा है, न कि रूस को समर्थन देना। भारत QUAD, I2U2 जैसे मंचों के ज़रिए अमेरिका के साथ संबंध संतुलित रखने की कोशिश भी करेगा। इसके अलावा, भारत रुपया-रूबल, रुपया-युआन या बार्टर सिस्टम के ज़रिए रूस से व्यापार जारी रख सकता है। साथ ही भारत BRICS करेंसी या अन्य वैकल्पिक भुगतान प्रणाली को मजबूती से समर्थन दे सकता है।चीन के संभावित कदमों की बात करें तो वह युआन आधारित भुगतान प्रणाली (CIPS) को विस्तार देगा और रूस के साथ अपने आर्थिक संबंधों को और मज़बूत करेगा। साथ ही चीन रूस-चीन ऊर्जा पाइपलाइन प्रोजेक्ट्स (Power of Siberia) पर निर्भरता और बढ़ाएगा। इसके अलावा, चीन अंतरराष्ट्रीय सप्लाई चेन का विकेंद्रीकरण कर सकता है ताकि यूरोपीय बाजारों से सीधा दबाव कम हो। साथ ही चीन आंतरिक खपत और घरेलू बाजार को प्राथमिकता देकर निर्यात निर्भरता घटाने की रणनीति अपनाएगा। इसके अलावा, चीन BRICS, SCO और अन्य गैर-पश्चिमी देशों के साथ आर्थिक साझेदारी को और मज़बूत करेगा। यह भी उम्मीद है कि चीन अमेरिकी डॉलर के विकल्प के तौर पर डिजिटल युआन या ब्रिक्स करेंसी को आगे बढ़ाएगा।वहीं ब्राजील के संभावित कदमों की बात करें तो आपको बता दें कि वह रूस से उर्वरक और तेल खरीद घटाकर वैकल्पिक सप्लायर्स (कनाडा, सऊदी अरब) की ओर झुक सकता है। साथ ही यूरोप और अमेरिका के साथ व्यापारिक संबंधों को प्राथमिकता देगा ताकि अपने कृषि निर्यात को सुरक्षित रख सके। इसके अलावा, लूला दा सिल्वा सरकार रूस और पश्चिम के बीच बैलेंस साधने की कोशिश करेगी। देखा जाये तो ब्राजील कूटनीतिक स्तर पर यह दिखाने की कोशिश करेगा कि वह रूस से व्यापार कर रहा है, लेकिन पश्चिम विरोधी राजनीति नहीं कर रहा। साथ ही ब्राजील घरेलू खाद उत्पादन और नई उर्वरक तकनीकों में निवेश कर रूस पर निर्भरता घटाने का प्रयास करेगा।देखा जाये तो सेकेंडरी सैंक्शंस का खतरा भारत, चीन और ब्राजील के लिए एक अवसर और चुनौती दोनों है। ये देश अपने-अपने तरीके से इस संकट का समाधान खोज सकते हैं, लेकिन एक बात साफ है कि वैश्विक आर्थिक और राजनीतिक समीकरण तेजी से बदल रहे हैं। इस संकट के बहाने विश्व व्यवस्था डॉलर के प्रभुत्व से हटकर नए ध्रुवों की ओर बढ़ सकती है। एक बात और…यदि NATO वास्तव में भारत, चीन और ब्राजील पर 100% सेकेंडरी सैंक्शंस लागू करता है तो इसका असर सिर्फ तीन देशों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह वैश्विक भू-अर्थशास्त्र और राजनीति की दिशा को बदल सकता है।

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