ट्रंप का पाकिस्तान प्रेम बढ़ने के बाद भारत और अमेरिका के संबंध में कैसे हैं? विदेश मंत्री जयशंकर ने विस्तार से बताया |

राष्ट्रीय जजमेंट

विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने कहा कि भारत-अमेरिका संबंधों को केवल चीन के नजरिये से आंकना उनका ‘‘बहुत अधिक सरलीकरण’’ है और कई बार यह ‘‘भ्रामक’’ भी हो सकता है। उनसे यह पूछा गया था कि भारत-अमेरिका के संबंध किस हद तक चीन के संदर्भ में उसका रुख जाहिर करते है। जयशंकर ने सोमवार को मैनहट्टन में 9/11 स्मारक के पास ‘वन वर्ल्ड ट्रेड सेंटर’ में न्यूजवीक के मुख्यालय में उसके मुख्य कार्यकारी अधिकारी देव प्रगाद के साथ बातचीत के दौरान कहा, ‘‘मुझे लगता है कि भारत-अमेरिका संबंधों को सिर्फ चीन से जोड़ देना एक बहुत ही बड़ा सरलीकरण है। वास्तव में, यह न केवल सरलीकरण है, बल्कि कई बार भ्रामक भी होता है।’’ उन्होंने कहा कि भारत-अमेरिका संबंध ‘‘कई अन्य पहलुओं’’ से जुड़े हुए हैं, जैसे कि बड़ा भारतीय समुदाय जो अमेरिका में महत्वपूर्ण योगदान देता है। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि यह ‘गेम-चेंजर’ साबित होगा। इसका चीन से कोई लेना-देना नहीं है।’’ विदेश मंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि वाशिंगटन और दिल्ली के बीच बहुत मजबूत आर्थिक संबंध हैं। उन्होंने कहा, ‘‘हमारे व्यापार के आंकड़ों को देखें और उस व्यापार की हमारी संबंधित अर्थव्यवस्थाओं के लिए प्रासंगिकता को देखें। हमारे प्रौद्योगिकी संपर्क को देखें।’’ जयशंकर ने कहा कि रक्षा या सुरक्षा सहयोग को भी चीन से जोड़ने की प्रवृत्ति है, लेकिन ‘‘मैं आपसे दूसरे पहलू की ओर देखने के लिए कहता हूं। हम वैश्विक नौवहन के लिए अरब सागर को सुरक्षित रखने के वास्ते काम करते हैं।’’ उन्होंने कहा कि वर्तमान वैश्विक परिदृश्य की कुछ वास्तविकताएं हैं और उनमें से एक यह है कि अमेरिका और चीन के बीच का रिश्ता अब वैसा नहीं रहा जैसा पहले हुआ करता था। इसमें अब काफी अधिक प्रतिस्पर्धात्मकता आ गई है। जयशंकर ने कहा, ‘‘साफ तौर पर कहूं तो, जहां तक हमारा सवाल है, हम इन दोनों देशों (अमेरिका और चीन) को इस नजरिए से देखते हैं कि उन्होंने एक-दूसरे को लेकर अपनी-अपनी सोच तय कर ली है। निश्चित रूप से इसमें रणनीति भी शामिल होगी। वे एक-दूसरे के प्रति एक व्यापक रणनीतिक दृष्टिकोण रखते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘हम ईमानदारी से यह देखना चाहेंगे कि इस परिदृश्य में हमारे हित किस प्रकार आगे बढ़ते हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘मुझे लगता है कि कई मायनों में आप देख सकते हैं कि हमारी अमेरिका के साथ बहुत समानताएं हैं। साथ ही हम चीन के सबसे बड़े पड़ोसी हैं। हम उनके साथ भूमि सीमा साझा करते हैं। हम चीन के साथ स्थिर संबंध चाहते हैं।” विदेश मंत्री ने यह भी स्वीकार किया कि बीजिंग हमारा एक बहुत बड़ा व्यापारिक भागीदार है, हालांकि यह व्यापार संतुलित नहीं है।
विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भारत और अमेरिका के बीच व्यापार वार्ता के सफल निष्कर्ष पर पहुंचने की उम्मीद जाहिर की है। उन्होंने कहा, ‘‘ मुझे लगता है कि हमें अगले कुछ दिन तक इस पर नजर रखनी होगी।’’ जयशंकर ने सोमवार को कहा, ‘‘आपने व्यापार के बारे में बात की, हां, हम एक बहुत ही जटिल व्यापार वार्ता के मध्य में हैं.. या शायद उससे भी थोड़ा आगे बढ़ चुके हैं।’’ मैनहट्टन में 9/11 स्मारक के पास वन वर्ल्ड ट्रेड सेंटर स्थित न्यूजवीक के मुख्यालय में उसके मुख्य कार्यपालक अधिकारी (सीईओ) देव प्रगाद के साथ बातचीत के दौरान विदेश मंत्री ने यह बात कही। उन्होंने कहा, ‘‘ स्पष्ट रूप से मुझे उम्मीद है कि हम इसे सफल निष्कर्ष तक ले जाएंगे। मैं इसकी गारंटी नहीं दे सकता, क्योंकि चर्चा में एक अन्य पक्ष भी शामिल है।’’
जयशंकर भारत-अमेरिका संबंधों और दोनों देशों के बीच व्यापार वार्ता पर पूछे गए सवाल का जवाब दे रहे थे। विदेश मंत्री ने कहा, ‘‘ जिस तरह अमेरिका या अमेरिका में रहने वाले लोगों के भारत के बारे में विचार हो सकते हैं, उसी तरह भारत में रहने वाले लोगों के भी अमेरिका के बारे में विचार हैं। हमें एक तरह का मिलन बिंदु खोजना होगा। मेरा मानना ​​है कि यह संभव है।’’ भारत-अमेरिका व्यापार वार्ता को लेकर एक अन्य प्रश्न पर जयशंकर ने कहा कि पिछले कुछ महीनों में कई गहन चर्चाएं हुई हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ मैं यह नहीं बता सकता कि किस देश ने कितने दौर की वार्ताएं की हैं, लेकिन मुझे लगता है कि हम उन देशों में से होंगे जिन्होंने सबसे अधिक वार्ताएं की हैं।’’ वहीं बिल क्लिंटन के राष्ट्रपति काल से लेकर वर्तमान में ट्रंप प्रशासन तक भारत-अमेरिका संबंधों पर जयशंकर ने कहा कि द्विपक्षीय संबंध मुख्य तौर पर सकारात्मक रहे हैं। उन्होंने कहा कि पिछले 25 वर्ष में संबंध मजबूत रहे हैं क्योंकि अर्थव्यवस्था, प्रौद्योगिकी, शिक्षा, सुरक्षा और ऊर्जा जैसे संरचनात्मक कारक इस संबंध के लिए काम करते हैं। जयशंकर ने कहा कि रिश्तों में मतभेद होते ही हैं। उन्होंने कहा, ‘‘ ऐसा होता ही है। वास्तव में, हर राष्ट्रपति के कार्यकाल में… मैं कुछ ऐसा सोच सकता हूं जो उस समय टकराव का कारण रहा हो…।’’
विदेश मंत्री ने मिसाल के तौर पर कहा कि पाकिस्तान को एफ16 विमान बेचने की अमेरिका की योजना भी एक विवाद का मुद्दा रही थी। उन्होंने कहा, ‘‘ रिश्ते में कोई न कोई समस्या होती ही है… मेरा मानना है कि मतभेद भी हो सकते हैं। मुझे लगता है कि इससे निपटने की क्षमता और उस प्रवृत्ति को सकारात्मक दिशा में जारी रखने की क्षमता ही मायने रखती है।’’ इस बीच, अमेरिका के राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के भारत के साथ व्यापार समझौता जल्द होने की बात से सहमति जताते हुए व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने सोमवार को प्रेस वार्ता में कहा कि वाणिज्य मंत्री हॉवर्ड लुटनिक ओवल कार्यालय में राष्ट्रपति ट्रंप के साथ थे और ‘‘वे इन समझौतों को अंतिम रूप दे रहे हैं।’’ उन्होंने कहा, ‘‘ भारत के संदर्भ में आप राष्ट्रपति और उनके दल, व्यापार से जुड़े उनके दल से इस संबंध में जल्द ही कुछ सुनेंगे।

Comments are closed.

This website uses cookies to improve your experience. We'll assume you're ok with this, but you can opt-out if you wish. Accept Read More