आईएसबीटी के पुनर्विकास का हवाला देकर 8 और रैन बसेरों के स्थानांतरण के लिए डूसिब सुप्रीम कोर्ट पहुंचा

नई दिल्ली: दिल्ली अर्बन शेल्टर इंप्रूवमेंट बोर्ड ने सराय काले खां और आनंद विहार में बेघरों के लिए संचालित आठ रैन बसेरों को स्थानांतरित करने की अनुमति के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। डूसिब ने आनंद विहार और सराय काले खां में इंटर-स्टेट बस टर्मिनल के पुनर्विकास का हवाला देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। यह पहली बार नहीं है जब डूसिब ने रैन बसेरों को लेकर सुप्रीम कोर्ट का रुख किया हो; इससे पहले भी जी-20 सम्मेलन के दौरान सौंदर्यकरण नाम पर ध्वस्तीकरण और दांडी पार्क में सांप-बिच्छुओं के खतरे का हवाला देकर डूसिब ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया था।

डूसिब ने 2023 से रैन बसेरों को ध्वस्त करने का सिलसिला शुरू किया था। 15 फरवरी 2023 को सराय काले खां स्थित रैन बसेरा नंबर 235 और 11 मार्च 2023 को आठ अन्य रैन बसेरे (कोड नंबर 100, 115, 247, 105, 256, 257, 135, 227) ध्वस्त कर दिए गए। इन कार्रवाइयों को जी-20 सम्मेलन के लिए सौंदर्यकरण से जोड़ा गया, जिसके बाद मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। कोर्ट ने स्पष्ट आदेश दिया था कि बिना उसकी अनुमति के किसी भी रैन बसेरे को ध्वस्त नहीं किया जाएगा।

इसके बाद अगस्त 2023 में डूसिब ने दांडी पार्क और यमुना बाजार के छह रैन बसेरों (कोड नंबर 216, 217, 240, 241, 97, 215) को सांप और बिच्छुओं के खतरे का हवाला देकर स्थानांतरित करने की अनुमति मांगी। अब एक बार फिर डूसिब ने सराय काले खां के छह (कोड नंबर 236, 250, 251, 254, 255, 249) और आनंद विहार के दो (कोड नंबर 214, 242) रैन बसेरों को स्थानांतरित करने की मांग की है।

डूसिब ने सराय काले खां और आनंद विहार के इन आश्रय गृहों की 680 बिस्तरों की क्षमता को बढ़ाकर 1504 बिस्तरों की क्षमता वाले रैन बसेरों में स्थानांतरित करने का प्रस्ताव दिया है। इन बेघरों को निजामुद्दीन बस्ती, फूल मंडी बिल्डिंग (मोरी गेट), चाबी गंज, हनुमान मंदिर, यमुना बाजार, गंदा नाला (कश्मीरी गेट), और मोतिया खान स्थित रैन बसेरों (कोड नंबर 10, 22, 23, 26, 27, 28) में स्थानांतरित करने की योजना है।

सुप्रीम कोर्ट में डूसिब की याचिका पर अब सभी की निगाहें टिकी हैं। सामाजिक कार्यकर्ता व सेंटर फॉर हॉलिस्टिक डेवलपमेंट के कार्यकारी निदेशक सुनील कुमार आलेडिया ने डूसिब के इस कदम की कड़ी आलोचना की है। उनका कहना है कि बेघरों को बार-बार उजाड़ने के बजाय डूसिब को स्थायी और सुरक्षित आश्रय गृहों का निर्माण करना चाहिए। डूसिब की जिम्मेदारी बेघरों के पुनर्वास और उनके जीवन स्तर को सुधारने की है, लेकिन बार-बार रैन बसेरों को ध्वस्त करने और स्थानांतरित करने के फैसले ने इसकी मंशा पर सवाल खड़े किए हैं। डूसिब ने एक भी नया रैन बसेरा नहीं बनाया, जबकि कई रैन बसेरों को ध्वस्त कर दिया है। इन कार्रवाइयों से न केवल बेघरों के लिए आश्रय की कमी हुई, बल्कि लाखों रुपये के सार्वजनिक संसाधनों का भी नुकसान हुआ। सुप्रीम कोर्ट के फैसले से यह तय होगा कि दिल्ली के बेघरों को सुरक्षित आश्रय मिलेगा या वे एक बार फिर सड़कों पर जीने को मजबूर होंगे।

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