पाकिस्तान से आये हिंदुओं के दर्द को भी सुन लीजिए सरकार!

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नई दिल्ली। ‘भईया, हम अपनी इज्जत बचाकर हिंदुस्तान भाग कर आए हैं। पाकिस्तान में हर वक्त हमको डर सताता रहता है। कब हमारी इज्जत का सौदा कर दिया जाए। कब हमारा धर्म परिवर्तन करा दिया जाए। हमारी बेटियां पढ़ने नहीं जा पाती।
हम भी बाहर निकलने में सौ बार सोचते हैं। पाकिस्तानी दहशतगर्दों की निगाहें हर वक्त हमारी आबरू पर होती है. हम हिन्दू हैं शायद यही अपराध है हमारा। पाकिस्तान से तो हमको उम्मीद नहीं है लेकिन हिन्दुस्तान तो ऐसा मुल्क नहीं है, लेकिन हमको यहां भी अपनापन नहीं मिल रहा है।
हमको कोई काम नहीं दे रहा। हमारे पास पहचान पत्र नहीं है। यहां के लोग हमें पाकिस्तानी-पाकिस्तानी कह कर पुकारते हैं। सरकार से आज तक हमको कोई भी पहचान पत्र मुहैया नहीं कराया।
हमारे बच्चों को स्कूल में दाखिला नहीं मिलता। हम वहां लौटकर नहीं जाना चाहते। हम जियेंगे तो हिंदुस्तान में और मरेंगे तो हिंदुस्तान में। यहां से हमारी लाश ही वापस जाएगी हम नहीं.’…. ये बात पाकिस्तान से भारत आए करीब 50 लोगों के परिवार कि एक सदस्या करमा कौर ने बतायी।
प्रदेश के सबसे पुराने औद्योगिक शहर में पिछले नौ साल से शरणार्थी के रूप में रह रहे पाकिस्तान से आए सिक्ख हिंदू परिवारों का दर्द भी उनसे कम नहीं है। फ्रंटियर कॉलोनी में नगर निगम की जमीन पर झुग्गी डालकर रहने वाले ये परिवार नारकीय जीवन जीने के लिए मजबूर हैं। हैरानी की बात यह है कि हिंदुस्तान में भी इन सिक्ख हिंदुओं को कोई अपने पास बैठाने को तैयार नहीं है। पाकिस्तानी दहशतगर्दों से अपनी बहू-बेटियों की आबरू बचाने के लिए टूरिस्ट वीजा पर भागकर आए इन परिवारों को यहां भी भेदभाव झेलना पड़ रहा है.
शरणार्थियोंने कहा कि हिंदुस्तान तो राम और कृष्ण की धरती है जहां हर युग में अत्याचार का अंत किया गया था। फिर इस धरती पर यदि हमारे साथ उपेक्षा हो तो वह समझ से परे है. हम तो राम को भी मानते हैं और रहीम को भी. गुरु गोविंद सिंह भी हमारे पूज्य हैं और कृष्ण भी। उनकी नजर में कोई छोटा है और बड़ा।
शरणार्थियोंने बताया कि पाकिस्तानी दहशतगर्दों और हुकूमत से परेशान होकर वह परिवार के साथ 28 अप्रैल 2008 को समझौता एक्सप्रेस से डेढ़ महीने के वीजा पर भारत आए थे. इसके बाद वीजा की अवधि एक साल तक और बढ़वाई गई. वहां के हालात को देख कोई भी शरणार्थी दोबारा पाकिस्तान नहीं जाना चाहता। उनका कहना है कि भारत सरकार उन्हें नागरिकता दे या दे अब तो यहां से उनकी अर्थी ही उठेगी.
आजादी के बाद इस देश की आत्मा का बंटवारा हो गया. उसी बंटवारे का दंश ये लोग आज तक झेल रहे हैं. ये लोग पाकिस्तान के सिंध प्रांत के जेकोकोबाद शहर के हैं। इस शहर में हिंदुओं की अपेक्षा मुसलमानों की आबादी अधिक है। उनका कहना है कि पूरे पाकिस्तान में हिंदुओं पर अत्याचार होते हैं लेकिन वहां की प्रिंट इलेक्ट्रानिक मीडिया अत्याचार को उजागर नहीं करती. आजादी के बाद से पाकिस्तान में हिंदुओं के प्रति दोहरी नीति अपनाई जाती है।
वहां हिंदुओं की कोई आवाज सुनने वाला नहीं है। टीवी9 भारतवर्ष की टीम ने जब 13 वर्षीय कमला कौर और 8 वर्षीय आकाश से पाकिस्तान जाने के बारे में पूछा तो उनका कहना था कि वहां तो हमेशा बंदूकें चलती हैं। परिवार वाले भी उन्हें बताते हैं. ऐसे में कौन जाएगा मरने।
पाक के सिंध प्रांत से आए करीब 1500 से अधिक परिवार दिल्ली-एनसीआर में रहते हैं। परिवार का पालन-पोषण करने के लिए पुरुष रेहड़ी पटरी लगाते हैं तो महिलाएं घरों में झाड़ू-पोंछा लगाती हैं। शरणार्थियों के अनुसार फरीदाबाद में फ्रंटियर कॉलोनी के अलावा नीलम-बाटा रोड पर हार्डवेयर चौक के पास करीब डेढ़ सौ परिवार झुग्गियों में रहते हैं. इसके अलावा दिल्ली के आजादपुर मंडी के पास 40-50 परिवार,
मजनू का टीला में 250, रोहिणी सेक्टर-7 की झुग्गियों में करीब 500 परिवार रहते हैं। उन्हीं से ये लोग अपना दुख दर्द बांटते हैं. सभी ने केंद्र सरकार से भारतीय नागरिकता के लिए आवेदन किया है लेकिन अभी तक सरकार की ओर से कोई जवाब नहीं मिला है। स्थानीय प्रशासन की रिपोर्ट पर उनका वीजा जरूर 27 मई 2019 तक बढ़ा दिया गया है।

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