बांग्लादेश को तोड़ कर भारत ने समुद्र तक सीधी पहुँच बना ली तो क्या करेंगे मुहम्मद यूनुस ?

राष्ट्रीय जजमेंट

भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के बारे में बांग्लादेश के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस की विवादित टिप्पणियों से उपजा विवाद बढ़ता ही जा रहा है। हम आपको बता दें कि बांग्लादेश को क्षेत्र में ‘‘महासागर का एकमात्र संरक्षक’’ बताते हुए यूनुस ने चीन से बांग्लादेश में अपना आर्थिक प्रभाव बढ़ाने की अपील की थी और उल्लेख किया था कि भारत के पूर्वोत्तर राज्यों का चारों ओर से जमीन से घिरा होना इस संबंध में एक अवसर साबित हो सकता है। हम आपको बता दें कि भारत-बांग्लादेश 4096 किलोमीटर सीमा साझा करते हैं। इनमें पश्चिम बंगाल में 2,217 किलोमीटर, त्रिपुरा में 856 किलोमीटर, मेघालय में 443 किलोमीटर, असम में 262 किलोमीटर और मिजोरम में 318 किलोमीटर का सीमाई इलाका पड़ता है। देखा जाये तो मोहम्मद यूनुस ने चीन से जो कुछ कहा वह एक सोचा समझा प्रस्ताव था। यह चीन को दिया गया कोई निवेश प्रस्ताव नहीं बल्कि भारत की संयुक्त रूप से घेराबंदी करने का प्रस्ताव था। हालांकि मोहम्मद यूनुस बांग्लादेश की भौगोलिक स्थिति का लाभ उठाने के चक्कर में यह भूल गये कि भूगोल पर उस देश का उदय भारत के प्रयासों से ही हुआ था और भारत यदि चाहे तो फिर से भूगोल बदल सकता है। यही नहीं, मोहम्मद यूनुस ने बांग्लादेश के लिए महासागर का एकमात्र संरक्षक होने संबंधी जो टिप्पणी की है उससे ऐसा लगता है कि वह घमंड में चूर हो गये हैं जबकि भारत चाहे तो बांग्लादेश को तोड़ कर समुद्र तक अपनी सीधी पहुँच बना सकता है।
जहां तक मोहम्मद यूनुस के बयान पर पूर्वोत्तर राज्यों के नेताओं की प्रतिक्रिया की बात है तो आपको बता दें कि सबसे पहले भड़कते हुए असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा ने इस बयान को अपमानजनक एवं घोर निंदनीय करार देते हुए कहा था कि मोहम्मद यूनुस के ऐसे भड़काऊ बयानों को हल्के में नहीं लिया जाना चाहिए, क्योंकि ये (बयान) गहन रणनीतिक विचारों और दीर्घकालिक एजेंडे को दर्शाते हैं। हिमंत बिस्व सरमा ने साथ ही कहा था कि यह टिप्पणी ‘‘भारत के रणनीतिक ‘चिकन नेक’ गलियारे से लगातार जुड़ी कमजोरी की बात’’ को रेखांकित करती है। सरमा ने पूर्वोत्तर को शेष भारत से जोड़ने वाले वैकल्पिक सड़क मार्गों की तलाश को प्राथमिकता देने का आह्वान भी किया ताकि ‘चिकन नेक’ संबंधी समस्याओं से प्रभावी ढंग से निपटा जा सके। सरमा ने साथ ही कहा कि ऐतिहासिक रूप से, भारत के आंतरिक तत्वों ने भी पूर्वोत्तर को मुख्य भूमि से भौतिक रूप से अलग-थलग करने के लिए इस महत्वपूर्ण मार्ग को काटने का खतरनाक सुझाव दिया है, इसलिए ‘चिकन नेक’ गलियारे के नीचे एवं उसके आस-पास और भी मजबूत रेलवे और सड़क नेटवर्क विकसित करना जरूरी है। सरमा ने कहा था कि इससे इंजीनियरिंग संबंधी बड़ी चुनौतियां उत्पन्न हो सकती हैं लेकिन ‘‘दृढ़ संकल्प और नवोन्मेष’’ के साथ यह संभव है।
हम आपको बता दें कि रणनीतिक रूप से अहम ‘सिलीगुड़ी गलियारे’ को इसके आकार के कारण ‘चिकन नेक’ कहा जाता है। यह पश्चिम बंगाल के उत्तर में स्थित भूमि की एक पट्टी है, जिसकी चौड़ाई 20 किलोमीटर से थोड़ी अधिक है। पूर्वोत्तर को शेष भारत से जोड़ने वाली यह संकरी पट्टी नेपाल और बांग्लादेश के बीच में है तथा भूटान और चीन इससे ज्यादा दूर नहीं है। इस चिकन नेक को काटने की धमकियां भारत को बरसों से मिलती रही है इसलिए एक सवाल तो उठता ही है कि भारत ने वैकल्पिक मार्ग का निर्माण अब तक क्यों नहीं शुरू किया है?वहीं त्रिपुरा में टिपरा मोथा पार्टी का नेतृत्व करने वाले प्रद्योत बिक्रम माणिक्य देबबर्मा ने तो मोहम्मद यूनुस के बयान पर और भी तीखी प्रतिक्रिया जताते हुए सुझाव दिया है कि चिकन नेक का विकल्प खोजने में इंजीनियरिंग के नए और चुनौतीपूर्ण विचारों पर अरबों डॉलर खर्च करने की बजाय हमें बांग्लादेश को तोड़ कर समुद्र तक अपनी पहुंच बना लेनी चाहिए। दूसरी ओर, मणिपुर के पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इस मुद्दे पर कहा है कि बांग्लादेश की अंतरिम सरकार पूर्वोत्तर को एक “रणनीतिक मोहरे” के रूप में फंसाने का प्रयास कर रही है। उन्होंने बांग्लादेशी सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस से भारत के बारे में बिना सोचे-समझे टिप्पणी नहीं करने को कहा। उन्होंने कहा कि यह “न केवल मूर्खतापूर्ण है, बल्कि इसके दुष्परिणाम भी होंगे”। एन. बीरेन सिंह ने कहा, “यह स्पष्ट है कि मोहम्मद यूनुस और बांग्लादेश की उनकी अंतरिम सरकार अपनी भू-राजनीतिक महत्वाकांक्षाओं की पूर्ति के लिए पूर्वोत्तर को रणनीतिक मोहरे के रूप में पेश करने का प्रयास कर रही है। इस तरह के भड़काऊ और गैरजिम्मेदाराना बयान एक नेता के लिए अनुचित हैं और मैं उनकी टिप्पणियों की कड़े शब्दों में निंदा करता हूं।” उन्होंने कहा, “यह बिल्कुल स्पष्ट है कि भारत की एकता और क्षेत्रीय अखंडता पर कोई समझौता नहीं किया जा सकता और इसे कोई चुनौती नहीं दे सकता। मोहम्मद यूनुस को संयम बरतना चाहिए; भारत जैसे देश के बारे में बिना सोचे-समझे टिप्पणी करना न केवल मूर्खतापूर्ण है, बल्कि इसके ऐसे परिणाम होंगे जिनका उन्हें बाद में पछतावा हो सकता है।”इसके अलावा, असम के जोरहाट से सांसद और लोकसभा में कांग्रेस के उपनेता गौरव गोगोई ने ‘एक्स’ पर एक पोस्ट में कहा, ‘‘यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि भारत की विदेश नीति इस हद तक कमजोर हो गई है कि जिस देश की आजादी का भारत ने सक्रिय रूप से समर्थन किया था, वह भी अब रणनीतिक विरोध की ओर झुक रहा है।’’ वहीं मेघालय सरकार में कैबिनेट मंत्री एएल हेक ने पूर्वोत्तर राज्यों को कमतर आंकने के लिए बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मुहम्मद यूनुस की आलोचना की है। हेक ने कहा, “हम किसी भी बाहरी ताकत को हमारे देश में विशेष रूप से उत्तर पूर्व में हस्तक्षेप करने की अनुमति नहीं देंगे। हम बाहरी लोगों को हस्तक्षेप करने की अनुमति क्यों दें?” हेक के अनुसार, बांग्लादेश के नेता द्वारा दिया गया बयान बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हम आपको बता दें कि पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों के नेताओं ने भी बांग्लादेश के नेता के बयान पर तीखी प्रतिक्रिया जताई है।बहरहाल, जहां तक भारत सरकार की प्रतिक्रिया की बात है तो आपको बता दें कि इस पर मोदी सरकार ने कोई सीधी टिप्पणी नहीं की है क्योंकि भारत अपनी सुरक्षा चिंताओं की रक्षा करने में पूरी तरह सक्षम है। जहां तक मोहम्मद यूनुस की ओर से खेले गये कूटनीतिक दांव की बात है तो संभव है कि यह पहल उन्हें चीन से आर्थिक लाभ दिला देगी लेकिन उन्हें ध्यान रखना होगा कि भारत को नाराज़ करने से बांग्लादेश के लिए दीर्घकालिक जटिलताएँ पैदा हो सकती हैं।

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